श्रीमत से सद्गति, मनुष्य-मत से दुर्गति

What is Shrimat / श्रीमत से सद्गति, मनुष्य-मत से दुर्गति

श्रीमत क्या है? 

     आबू से ब्रह्मा मुख से चलाई गई शिवबाबा की प्रमाणित मुरलियों को ही श्रीमत कहा जावेगा। इस मुरली की भेंट में किसी दीदी, दादी, दादा आदि मनुष्यमात्र की वाणी को शुभ राय ही कहा जावेगा, न कि श्रीमत; क्योंकि कोई भी छाती ठोक कर नहीं कह सकता कि मैं पावन, श्रेष्ठाचारी देवता या भगवान भगवती बन चुका हूँ। अतः स्पष्ट है कि सभी आत्माएँ नम्बरवार पतित और अष्ट हैं। नम्बरवार भ्रष्ट मनुष्यों की मत अर्थात् डायरैक्शन पर चलने वाले नम्बरवार भ्रष्ट ही बनेंगे। इसलिए शिवबाबा ने सावधान किया है- “कोई भी देहधारी को गुरू न बनाओ।” (मु.3.4.75 पृ.३ मध्य); क्योंकि बाबा ने मुरली में बोला है “परमपिता की ही श्रेष्ठ मत है, और सबकी है आसुरी मत। बाप है अकेला सत्य”

  • “माया की प्रवेशता के कारण मनुष्य जो कुछ कहेंगे वह असत्य ही कहेंगे। जिसको आसुरी मत कहा जाता है। बाप की है ईश्वरीय मत। …… एक ईश्वर की मत को ही श्रीमत कहेंगे।” (मु. 8.3.73 पृ.1 आदि) 
  •  “और सभी की मत है कुमत। कलियुगी आसुरी मत। उनसे कुमत ही बनेंगे।……. और कोई की मत ली तो धोखा खाया।” (मु.2.4.73 पृ.2 अंत, 3 आदि)
  •  “श्रीमत है ही एक परमपिता परमात्मा की। बाकी सभी (की) है आसुरी मत, जिससे असुर ही बनते हैं।” (मु.2.6.73 पृ.3 मध्य) “शुद्रुकुल में है मनुष्य मत, ब्राह्मण कुल में है ईश्वरीय मत।” (मु.25.6.74 पृ.1 मध्य) अव्यक्त बाबा ने कहा है- 
  • “कहीं-2 श्रीमत शब्द कॉमन रीति प्रयोग करते हैं। वास्तव में बापदादा द्वारा बच्चों प्रति डायरैक्ट उच्चारे हुये महावाक्य ही श्रीमत हैं, जो बापदादा की डायरैक्ट मुरलियों द्वारा अब भी रोज़ मिलते रहते हैं। बाकी आत्माओं की आत्माओं के प्रति शुभ राय कहेंगे, न कि श्रीमत। इसलिए छोटे-बड़े भाई-बहनों द्वारा मिली हुई राय को श्रीमत कहना श्रीमत के महत्त्व को कम करना है।”
     उन ब्रह्माकुमार-कुमारियों का बड़ा दुर्भाग्य है जो संगमयुगी लास्ट जन्म के अल्पकालीन पद, मान, मर्तबा और सुख-साधन, सामग्री के मोहान्धकार में फंसने के कारण ईश्वरीय वाणी की भी अवहेलना करके देहधारियों के डायरैक्शन पर चलने के लिए मजबूर हैं। यहाँ तक कि कैदियों की तरह उन बेचारों को किसी व्यक्ति विशेष से मिलने, बात-चीत करने या पत्र-व्यवहार करने की इज़ाज़त नहीं। महाभारत प्रसिद्ध जरासिंधी अर्थात् पुराने सिंधियों की जेल का साक्षात् पार्ट चल रहा है। यह उसी कल्पपूर्व की यादगार है, जबकि 5000 वर्ष पहले भी 16000 राजे-रानियाँ इन्हीं जराजीर्ण पुराने सिंधियों के अधीन बन पड़े थे और कल्प-2 अधीन बनते रहेंगे और जरासिंधियों के पार्ट भी इसी तरह खुलते रहेंगे; क्योंकि बाचा ने कहा है अंत में सबके पार्ट खुल जायेंगे।
  • “जो (सूर्यवंशी) वर्से के अधिकारी धनते हैं उन्हों का सर्व के ऊपर अधिकार होता है। यह (श्रीमत के अलावा) कोई भी बात के अधीन नहीं होते।” ….. (अ.वा. 24.1.70 पृ.183 आदि)
  •  “(किसी) व्यक्ति (अर्थात् दीदी, दादी, दादा आदि) के व वैभव के अधीन रहने वाली आत्मा (खुद भी सर्व अधिकारी नहीं बन सकती और) अन्य आत्माओं को भी सर्व अधिकारी नहीं बना सकती।” (अ.वा.26.6.74 पृ.80 म.)
  •  “अधीन न होना अर्थात् शेर व शेरनी की चाल चलना।” (अ.पा. 23.4.77 पृ.95 अंत)

     बाबा ने कभी किसी बहन-भाई को डायरैक्शन देने के लिए निमित्त नहीं बनाया; क्योंकि इस सृष्टि-रूपी रंगमंच का एकमात्र डायरैक्टर शिवबाबा ही है। हम सब बच्चों को उसी डायरैक्टर के डायरेक्शन पर चलना है। किसी देहधारी के इशारों पर नहीं। बाबा ने दीदी, दादियों, दादाओं और टीचरों को यज्ञ एवं यज्ञवत्सों के प्रति सेवाधारी बनने के लिए निमित्त बनाया था। संगमयुग में राजाई चलाने के लिए निमित्त नहीं बनाया था। बाबा ने कहा है-

  • “कई ब्र.कु.कु. में तो बड़ा देह-अभिमान है। उनको सो जैसे कि यहाँ पर ही राजाई चाहिए। ….. बाप तो कहते हैं मैं सर्वेट हैं; परंतु बच्चों में देहअभिमान है जिससे ही गिर जाते हैं।” (मु.3.5.62 रही हुई प्वाइंट्स)
  • सेन्टर किसी को भी राजाई पर ना बैठना है।” (मु. 4.10.73 पृ.4 मध्य)

     यह सर्वविदित है कि “मुख्य प्रशासिका”, “सह प्रशासिका” या “ज़ोनल इंचार्ज” जैसे टाइटिल भी बापदादा के दिये हुये नहीं हैं। बल्कि बापदादा की अवहेलना करते हुये कुछ व्यक्तियों की चापलूसी का परिणाम मात्र है; क्योंकि अव्यक्त बापदादा ने पहली अ. वाणी में (मनमोहिनी) दीदी को यज्ञ सेवा की देख-रेख के लिए निमित्त बनाया था जबकि कुमारिका दादी को उनका मददगार बनाया गया था।

  •  “बाक़ी आज से सभी के लिए कौन निमित्त है वह तो आप जानते ही हैं- दीदी तो है, साथ में कुमारका मददगार है।” (अ.वा.21.1.69 पृ.21 अंत, 22 आदि)

     प्रश्न उठता है कि साकार बाबा की अनुपस्थिति में हम ब्रह्माकुमार-कुमारियों को किसके डायरैक्शन पर चलना चाहिए? इसका सीधा जवाब है ‘मुरली के डायरैक्शन पर’; क्योंकि “मुरली ही हमारी लाठी है, जिसके आधार से हमें चलना है। तभी तो मु.20.5.77 पृ.1 की वाणी में बाबा ने कहा है- “मुरली द्वारा सर्व समस्याओं का हल मिल सकता है।” साफ है कि व्यक्तिगत समस्याओं के समाधान के लिए भी किसी देहधारी गुरु के पास भटकने की दरकार नहीं। अतः बाबा ने 2.6.73 पृ.3 मध्य की मुरली में कहा था- “बाप कहते हैं जो धक्के खाते हैं वे मुझे नहीं जानते हैं। उनको पता नहीं है कि बाप (मुरली की पढ़ाई) पढ़ाकर वर्सा दे रहे हैं।”

  • “गुरुओं ने तो सत्यानाश कर दी है। एक गुरु (ब्रह्मा) मर गया। फिर जो गद्दी पर बैठा उनको गुरुरू कर लेते (अर्थात् उन्हीं की मत पर चल पड़ते हैं)। यह (ज्ञानमार्ग में) तो एक ही सद्गुरु है।” (मु. 19.9.73 पृ.३ अंत) यह कोई साधू- संत आदि नहीं, जिसकी ग‌द्दी चली आई है। यह तो शिवबाबा की गद्दी है। ऐसे नहीं कि यह (ब्र‌ह्मा) जायेगा तो दूसरा कोई गद्दी पर बैठेगा।” (मु.20.5.77 पृ.3 मध्य)
     बाबा ने 24.8.74 पृ.1 अंत की मुरली में कहा है- “दुर्गति कौन करता है? ज़रूर यह गुरू लोग ही कहेंगे।” अतः हम ब्राह्मणों की छोटी-सी दुनिया में भी देहधारी ग‌द्दीनशीन गुरुओं से भी सावधान रहना चाहिए। इनकी सुनाई हुई बालों अथवा डायरैक्शन्स को मुरलियों से रैली किये बिना अंधश्रद्धापूर्वक अमल करने की भूल नहीं करनी चाहिए; क्योंकि बाबा ने हमें खुद सावधान किया है- सुनी-सुनाई बातों पर ही भारतवासियों ने दुर्गति को पाया है।” (मु.30.1.71 पृ.4 आदि)
     अब संगमयुग में श्रीमत की अवहेलना से होने वाली दुर्गति अर्थात् नीचा पद पाने की खराब शूटिंग से हमें अपने को बचाना है। नहीं तो हो सकता है कि “अहो प्रभु तेरी लीला” कहकर पश्चाताप करने वालों की लाइन में खड़ा होना पड़े; क्योंकि – “(ब्रह्मा) मुखवंशावली है तो जो बाबा मुख से कहे यो मानना पड़े।” (मु.8.10.73. पृ.३ मध्यांत)