सर्व आत्माओं का पिता एक है | 7 Day course | आध्यात्मिक ज्ञान

सर्व आत्माओं का पिता एक है पर कौन? There is one Father of all souls, but who?

सर्व आत्माओं का पिता एक है

              यह तो गॉड फादर है जिसके अलग-2 नाम-रूप दे दिए हैं, लेकिन अलग-2 नाम-रूप होते हुए भी एक रूप ऐसा है जो हर धर्म में मान्यता प्राप्त करता है। कैसे? अपने भारतवर्ष में ज्योतिर्लिंगम माने जाते हैं- रामेश्वरम वगैरह। कहते हैं- राम ने भी उपासना की। राम को भगवान मानते हैं, लेकिन उपासना किसकी की? शिव की उपासना की। तो राम भगवान हुए या शिव भगवान हुए? शिव ही हुए। ऐसे ही गोपेश्वरम् मंदिर भी बना हुआ है। गोप कृष्ण को कहा जाता है। इससे साबित हो गया कि कृष्ण भगवान नहीं थे। वास्तव में उनका भी कोई ईश्वर है, जिन्होंने उनको ऐसा बनाया। ऐसे ही केदारनाथ है, बद्रीनाथ है, काशीविश्वनाथ है और यह सोमनाथ है। इन सभी मंदिरों में इस बात की यादगार है कि यहाँ उस निराकार ज्योति को ज्योतिर्लिंगम् के रूप में माना जाता है। नेपाल में पशुपतिनाथ का मंदिर है। कलियुग के अंत में सभी मनुष्यमात्र पशुओं जैसा आचरण करने वाले हो जाते हैं। उन पशुओं को भी पशु से, बंदर से मंदिर लायक बनाने वाली वही निराकार शिवज्योति है। उसी की यादगार में एक शिवलिंग नेपाल में भी स्थापित है।

sarva aatmaon ke pita ek hai

          अच्छा, हिन्दुओं की बात छोड़ दीजिए। मुसलमान लोग मक्का में हज (तीर्थ यात्रा) करने जाते हैं। वहाँ मुहम्मद ने दीवाल में एक पत्थर लाकर रखा था। उसका नाम उन्होंने ‘संग-ए-असवद्’ दिया। अभी भी जब तक मुसलमान लोग उस पत्थर का चुम्बन नहीं कर लेते, सिजदा नहीं माना जाता, उनकी हज की यात्रा पूरी नहीं होती। इसका मतलब वे भी आज तक उस निराकार को मानते हैं, हालाँकि वे पत्थर को नहीं मानते। वे तो मूर्तियाँ व शिवलिंग को तोड़ने वाले रहे हैं। उन्होंने यहाँ भारत में आकर शिवलिंगों को तोड़ा है; लेकिन वहाँ मानते हैं। बौद्धी लोग आज भी चीन जापान में देखे जाते हैं कि वे गोल स्टूल के ऊपर पत्थर की बटिया रखते हैं और उसके ऊपर दृष्टि एकाग्र करते हैं। इससे साबित होता है कि वे भी उस निराकार को मानते हैं। गुरुनानक ने तो कई जगह कहा है- एक ओंकार निरंकार’, ‘सद्गुरू अकाल मूर्त।’ ये तो निराकार को मानते ही हैं। ईसाईयों के धर्मग्रंथ बाईबल में तो कई जगह लिखा हुआ है- ‘गॉड इज़ लाइट’ अर्थात् परमात्मा ज्योति है। कहने का मतलब यह है कि हर धर्म में उस निराकार ज्योति की मान्यता है। अब यह सवाल पैदा होता है कि जब सब धर्मों में उस एक ही रूप की मान्यता है, तो सब धर्म वाले उस एक ही को परमपिता परमात्मा का रूप क्यों नहीं मानते? ये अलग-2 रूप क्यों माने हुए है? यह वास्तविकता किसी की बुद्धि में नहीं आ रही है।

        वह निराकार ज्योति जब इस सृष्टि पर आती है तो जो विशेष आत्माएँ राम और कृष्ण हैइन दो को चुनकर सृष्टि के विनाश और स्थापना के कार्य में मुखिया बनाती है। कृष्ण की सोल आखरी जन्म में दादा लेखराज के रूप में सिन्ध हैदराबाद में जन्म लेती है और उसमें परमपिता परमात्मा शिव प्रवेश करके पहले प्रत्यक्ष ब्रह्मा‘ के रूप में कार्य करते हैंप्यार का पार्ट बजाते हैं। आप कहीं भीकिसी भी ब्रह्माकुमारी आश्रम में जाए तो आप कोई भी ब्रह्माकुमार कुमारी से पूछिए कि बाबा ने कभी किसी को टेढ़ी नजर से देखा या गलत कुवचन कहा या कोई ऐसा है जिसने बाबा के सम्पर्क में पहुँचने के बाद यह अनुभव किया हो कि ब्रह्मा बाबा ने हमको दुःख दियाप्रत्येक ब्रह्माकुमार कुमारी यही कहेगा कि बाबा भले 10 मिनट के लिए मिले होपरन्तु बाबा ने हमको जितना प्यार दिया उतना दुनिया में हमें किसी से अनुभूति नहीं हुई।

   ये थे प्यार की प्रतिमूर्ति ब्रह्मा बाबा जैसे अभी भी टी०वी० में सीरियल आते हैंआप देखते होंगे कि असुरों ने वरदान ले लिए है असुरलेकिन फिर भी माँ से वरदान ले लिया। वास्तव में वह एक रूप दिखाया गया है और इनके ठीक विपरीत एक दूसरा रूप रामवाली आत्मा हैजिसमें कलियुग के अंत में परमपिता परमात्मा प्रवेश करके शंकर‘ के नाम रूप से प्रख्यात होते हैं। देखोजैसे इन कृष्ण का नाम-रूप प्रख्यात हुआ है ब्रह्मा‘, वैसे उन राम का नाम-रूप प्रख्यात होता है शंकर। इन दोनों ही शक्तियों की सहयोगी शक्ति दो आत्माएँ भी हैं।

 

                  कृष्ण की सहयोगी शक्ति है राधा‘ और राम की सहयोगी शक्ति है सीता‘ । इनके वर्तमान रूप के नाम पड़ते हैं ब्रह्मा की सहयोगी शक्ति सरस्वती‘ और शंकर की सहयोगी शक्ति पार्वती‘ ये वर्तमान स्वरूप के नाम हैं। जब कलियुगी दुनिया समाप्त होती हैनई सतयुगी सृष्टि रची जाती हैतो चारों आत्माओं के स्वभाव- संस्कार का सम्मिश्रण होता है। अभी तो हर घर में स्त्री-पुरुष के संस्कार आपस में टकराते हैं। कोई घर ऐसा नहीं होगा जिसमें संस्कार टकराए नहींलेकिन सबसे पहले एक ऐसी भी दुनिया परमपिता परमात्मा ने बनाई थी कि पहले 2 चार आत्माओं के संस्कार मिलकर एक हो गए थे। वे ये आत्माएँ हैं जो सृष्टि के हीरो-हीरोइन हैं और इन आत्माओं का सम्मिश्रण विष्णु की भुजाओं के रूप में दिखाया गया है। कहते हैं ना, ‘मेरे भैया ने शरीर छोड़ दियामेरी दाहिनी भुजा टूट गई। तो दाहिनी भुजा थोड़े ही टूट गईबल्कि जो सहयोगी शक्ति है वह चली गई।

     इसी तरह परमपिता परमात्मा के कार्य में दो दाहिनी भुजा के रूप में सहयोगी बनते हैं ब्रह्मा-सरस्वती माने कृष्ण और राधा। ये कड़ा-कठोर रूप कभी नहीं अपनाते। परिवर्तन के लिए इन्होंने हमेशा प्यार का काम कियाइसलिए इनको परमपिता परमात्मा ने राइट हैण्ड के रूप में स्वीकार कियालेकिन जब राइट हैण्ड से काम नहीं निकलता तो फिर उँगली टेढ़ी भी की जाती है। वे दो रूप है शंकर और पार्वती। आदि शक्तिचामुंडा की रूप धारण करती हैं और शंकर प्रलयंकर रूप धारण करते हैं। यह राम (शंकर) वाली आत्मा सहयोगिनी शक्ति द्वारा प्रलय मचाती है। शक्ति का रूप धारण किए बगैर रावणकुम्भकरणमेघनाद जैसे असुर परिवर्तन नहीं हो सकते। इस ब्राह्मणों के अन्दर ज्यादा से ज्यादा तादाद में ऐसे आसुरी सत्य घुस गएजो रावणकुम्भकरणमेघनाद का पार्ट बजाते हैं। उनको सुधारने के लिए ज्ञान बा भारने वाली राम की आत्मा तैयार होती है। बाण कोई दूसरे नहीं है। परमपिता परमात्मा ने आकर राम के मुख द्वारा उनके लिए जो तीखी बातें बोली हैंउन बातों का अर्थ ही ज्ञान बाणों का काम करती हैं। हमको तो ये महावाक्य प्यारे लगते हैंलेकिन उस तरह की जो आसुरी ब्राह्मण आत्माएँ परिवार में घुसी हुई है. उनको ये बाण लगते हैं। उनको घाव पैदा कर देते हैं तो इस तरीके से जो लव और लो के दो रूप हैंउनमें यह तीसरा रूप समाया हुआ है जो ब्रह्मा-सरस्वतीशंकर और पार्वती रूपी चार आत्माओं का सम्मिश्रण ही विष्णु कहा जाता है। बाकी ऐसा कोई व्यक्ति संसार में कभी हुआ नहीं है जो चार भुजाओं का रहा हो या 10 सिर का रावण रहा हो। 10 सिर के रावण का मतलब है कि दसों धर्म मिल करके संसार में प्रजातंत्र राज्य का ऐसा बेकायदे संगठन बनाते हैंजिससे सारी दुनिया विनाश के कगार पर खड़ी हो जाती है। बाकी परमपिता परमात्मा ने तो आकर राजयोग सिखाकर कायदेसिर देवी राजाओं का राज्य स्थापन किया था।

      परमपिता परमात्मा जो स्कूल खोलते हैंसद्गुरू कहे जाते हैंतो जरूर वे ऐसी ईश्वरीय यूनिवर्सिटी का वाइस चान्सलर बनते होंगेजहाँ वे कोई माला रूपी संगठन की बड़ी-2 पदवियाँ देकर जाते हो। देश-विदेश में जन्म-जन्मांतर के जो राजाएँ बने हैं उन राजाओं को राजाई करने की विद्या उन्होंने सिखाई थी। उसको राजयोग कहा जाता है। वह राजयोग परमपिता परमात्मा गीता ज्ञान के द्वारा अभी सिखा रहे हैं। जन्म-जन्मांतर का राजा बना रहे हैं। लौकिक बाप जो होते हैं वे तो एक जन्म की प्राप्ति कराते हैंवर्सा देते हैंलेकिन यह पारलौकिक बाप जब सृष्टि पर आते हैं तो अपने आत्मा रूपी बच्चों को अनेक जन्मों की राजाई देकर जाते हैं। वह अनेक जन्मों की राजाई अभी दी जा रही है। संसार में अभी कुछ ही वर्षों में ऐसी 108 श्रेष्ठ आत्माएँ प्रत्यक्ष होने वाली हैं. जो सारे संसार में तहलका / खलबली मचाएँगी और सारे संसार की धर्म सत्ता व राज्य सत्तादोनों की बागडोर अपने हाथ में ले लेंगी। यही 108 श्रेष्ठ आत्माएँ आज भी सभी धर्मों में माला के रूप में स्मरण की जाती है।

 

              जब सारी दुनिया माया के पंजे में फँस जाती है तब वे ज्ञानसूर्य परमपिता परमात्मा इस सृष्टि पर आते हैं। माया का पंजा कोई स्त्री नहीं है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अंहकार- ये पाँच विकार मनुष्य के अन्दर भरे हुए हैं। उन पाँचों विकारों में सारी दुनिया जकड़ गई है। आज एक भी मनुष्य ऐसा नहीं है जो इन पाँचों विकारों की जकड़ से बाहर हो जब सारी सृष्टि की ऐसी अत्यधिक बदतर हालत हो जाती है तब परमपिता परमात्मा शिव आते हैं. जिसकी यादगार में यह ‘महाशिवरात्रि’ मनाई जाती है। इस महाशिवरात्रि में जब परमपिता परमात्मा शिव आते हैं तो दुनिया में चारों तरफ अनेक धर्म फैले हुए होते हैं। उन धर्मों में धर्म के नाम पर वितंडावाद ज्यादा है, ज्ञाने कुछ भी नहीं है। ज्ञान के नाम पर अज्ञान-ही-अज्ञान सुनाया जाता है और पैसे व दिखावे को ज्यादा महत्व दिया जाता है। जो धर्म की स्थापना का कार्य है, धारणा की बातें हैं, वे न के बराबर होती हैं। तब ज्ञानसूर्य परमपिता परमात्मा इस सृष्टि पर आकर उस अज्ञान अंधकार का विच्छेदन करते हैं। इसलिए उसकी यादगार में भारतवर्ष में माघ मास को अर्धरात्रि में महाशिवरात्रि मनाई जाती है। जब आखिरी मास होता है, सृष्टि का आखिरी टाइम होता है, कलियुग का अन्त होना होता है तब दुनिया में अज्ञान अंधकार चारों तरफ फैला रहता है। जैसे शक्तिमान सीरियल में आता है- ‘अंधेरा कायम रहेगा। असुर तो यही चाहते हैं कि अंधेरा कायम रहे, दुनिया अज्ञान में रहे और हम अपना आसुरी काम बनाएँ । 

           

      तो ये काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार हैं असुर, जिनका मुखिया है काम विकार। उस काम विकार को परमपिता परमात्मा आकर सबसे पहले शंकर के चोले के द्वारा भस्म कराते हैं। हमने समझ लिया कि काम विकार कोई देवता का रूप होगा। उसको ‘कामदेव’ नाम दे दिया लेकिन वास्तव में वह कोई अलग से देवता नहीं होता। यह हमारे अन्दर की ही कुप्रवृत्ति, कमजोरी व विकृति है जो उस शंकर देव ने पहले भस्म कर दी। भस्म करने वालों में नम्बरवार होते हैं, लेकिन जो उसको सबसे पहले भस्म कर लेता है, वह बात शंकर के लिए दिखाते हैं। उनका ज्ञान का तीसरा नेत्र खुला और काम विकार भस्म हो गया। वह कोई बाहर का काम विकार थोडे ही था। यह तो अंदर की चीज़ थी जो उन्होंने भस्म कर दी, नष्ट कर दी। जब मुखिया भस्म होगा तो बाकी ये जो चार चोर-डकैत हैं, वे तो अपने आप ही भाग जाएँगे।