इस चित्र में तो यह बात बिल्कुल क्लीयर है। सबसे उपर हेडिंग भी दिया हुआ है- स्वर्ग के रचयिता और उनकी दैवी रचना”। यहाँ ध्यान से देखेंगे तो पता चलेगा कि ‘के रचयिता’ यह बहुवचन में है। ‘स्वर्ग का रचयिता‘ नहीं लिखा है। अगर स्वर्ग का रचयिता लिखा होता तो रचयिता एक हो सकता था; लेकिन यहाँ लिखा है- ‘स्वर्ग के रचयिता क्योंकि सृष्टि परिक्रिया के लिए रचना रचने वाले दो चाहिए। बच्चों की रचना दो के बगैर नहीं हो सकती। इसलिए यहाँ लिखा हुआ है- स्वर्ग के रचयिता।
ऐसे नहीं कि शिवज्योतिबिंदु से कोई रचना पैदा हो जाएगी। शिवज्योतिबिंदु तो निराकार आत्मा का नाम है। वो तो एक है; लेकिन निराकार से तो निराकारी वर्सा मिलेगा। तब ही बाबा ने मुरली में प्रश्न किया है- “निराकार से क्या निराकारी वर्सा चाहिए?” (मु. 7.10.73 पृ. 4 मध्यांत) क्योंकि निराकार की रचना भी होने का सवाल नहीं है; क्योंकि निराकार आत्मा तो अनादि अविनाशी है तो उसको रचे जाने का सवाल नहीं है। रची वो चीज़ जाती है जो पहले न हो। रचयिता भी साकार चाहिए, रचना भी साकार चाहिए। क्रियेटर और क्रियेशन दोनों ही साकार में होने चाहिए। इसलिए यहाँ लिखा हुआ है- स्वर्ग के रचयिता अर्थात् ल.ना. और आगे लिखा है- और उनकी दैवी रचना, जो स्वर्ग के रचने वाले ल. ना. बहुवचन में बताए गए, उनकी देवी रचना। देवी रचना माना देवताई रचना। उनके जो बच्चे पैदा होंगे वो देवता होंगे। अगर शिव की देवी रचना कहें तो शिव तो भगवान है। भगवान से तो भगवान भगवती की पैदाइश होगी या देवताओं की पैदाइश होगी? देवताओं से देवताओं की पैदाइश होती है और भगवान से भगवान भगवती बनेंगे।
इसलिए बाबा ने मुरली में कहा है- • ल. ना. को गॉड-गडिज़ कहते हैं अर्थात् गॉड द्वारा यह पर्सा पाया है।” (मु. 7.2.76 पृ.1 मध्यांत) “इन ल.ना. को निराकार ने ऐसा बनाया।” (मु. 24.5.64. पृ.2 अंत) •”कहते हैं ना कि गॉड-गडिज का राज्य था। भगवती श्री लक्ष्मी, भरवान श्री नारायण का राज्य कहा जाता है। थे तो अब कहाँ गए?… अभी भी वह भिन्न नाम-रूप में यहाँ है यह राज सभी अभी तुम जानते हो। यह बातें समझने से बच्च को खुशी होनी चाहिए कि बाप हमको पढ़ा ऐसा बना रहे हैं। नम्बरवन हीरो हीरोइन यह है।” (भु. 9.12.71 पृ.1 मध्यांत)
भगवान भगवती का टाइटिल संगमयुगी ल.ना. का है जिन्हें नारी से लक्ष्मी और नर से नारायण अर्थात् नर-नारायण कहा जाता है। सतयुग में जो देवता के रूप में बच्चे पैदा होंगे वो भगवान भगवती नहीं कहे जाएँगे क्योंकि भगवान भगवती वो तो टाइटिल है सब धर्मवालों के लिए। बाबा ने मुरली में कहा है-“यह ल. ना. चैतन्य में थे तो सुख ही सुख था। सब धर्म वाले इनको पूजते, गार्डनऑफ अल्लाह कहते हैं।” (मु. 2.10.70 पृ.3 मध्य) वो तो सारे विश्व के माता-पिता हैं। कोई उनको मात पिता माने या न माने ‘स्वर्ग के रचयिता और उनकी दैवी रचना यह हेडिंग ही इस बात को साबित करता है कि रचयिता पहले होना चाहिए और रचना बाद में होनी चाहिए। यह सारा ही चित्र रचयिता के बाद रचना के क्रम से बना हुआ है। इसलिए बाबा ने मुरली में कहा है- “पहले है परमपिता परमात्मा रचयिता।” (मु. 20.10.73 पृ.1 मध्य) यह जो बीच में लना का चित्र है यह संगमयुगी ल. ना. का चित्र है। जब संगमयुग पूरा होना होगा तो राधा कृष्ण का भी बच्चों के रूप में जन्म होगा, वो उनकी रचना हैं।
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