आध्यात्मिक ज्ञान

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श्री कृष्ण जन्माष्टमी

     श्रावण मास में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भारत वर्ष में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है श्री कृष्ण के लिए कहते हैं कि वह 16 कला समपूर्ण समपूर्ण अहिंसक डबल ताज़धारी थे उनकी बाल्यावस्था का गायन पूजन बहुत होता है उनको पालने में झुलाना, खीरे को काटकर जन्म दिखाना इत्यादि तरीके से कृष्ण जन्मोत्सव मनाते हैं भगवान श्री कृष्ण का जन्म रात्रि में हुआ था इसलिए जन्माष्टमी के दिन कृष्ण के बाल रूप की पूजा और अर्चना रात्रि में ही की जाती है

     श्री कृष्ण के जन्म का वर्णन जिस प्रकार शास्त्रों में दिया गया है की उनकी जन्म कंस की काल कोठी में हुआ परन्तु सारी दुनिया को अपने स्नेह और रक्षा के सूत्र में बांधने वाले को भला कोई बांध सका क्या? इसीलिए दिखाते है की सात-सात तालों को तोड़ कर भी किस प्रकार वासुदेव बाल कृष्ण को अपनी बुद्धि रूपी टोकरी में बिठाकर जेल के कपाट खोल कर, नई सृष्टि को सुदृढ़ और सुरक्षित करने हेतु बाहर लाये, श्री कृष्ण जन्माष्टमी के सन्दर्भ में कुछ अन्य जानकारीयां…. 

krishn janmastami 2024

क्या द्वापर में कृष्ण का अवतार हुआ था ?

      श्री कृष्ण का अवतरण कोई द्वापर युग की बात नहीं है, अभी इस समय की बात है अभी श्री कृष्ण पूरी तो है नहीं,तो क्या कहेंगे कंस पूरी ही है इस समय पर ही कंस, जरासिंध, अकासुर, शिशुपाल जैसे असुर मौजूद है, तो भगवान भी इसी समय पर ही मौजूद होंगेजैसे कंस ने श्री कृष्ण का अस्तित्व समाप्त करने के लिए अनेक योजनाएं बनाई सर्वशक्तिवान होते हुए भी भगवान ने आमने-सामने की लड़ाई नहीं लड़ी 

  जैसे की शास्त्रों में दिखाते हैं की भगवान श्री राम ने जंगलों में गुप्त रहकर रावण से युद्ध किया भगवान श्री कृष्ण ने गांव-गांव में रखकर ही युक्ति से कंस को धरासाही किया

     भगवान शंकर ने सारी दुनिया में भाग-भाग कर ही भस्मासुर को युक्ति युक्त से भसिभुत किया यह भगवान की सबसे बड़ी खासियत है चाहे कोई कितना भी दुराचारी पापी ही क्यों न हो सबको सुधरने का मौका देते है महाभारत प्रसिद्ध शिशुपाल की कहानी को तो आप जानते ही होंगे ! सौ बार तक भगवान ने उसको माफ़ किया जो आमने सामने की टकराहट को यथासंभव टाला जा सके और होने वाले नुकसान को बचाया जा सके, ठीक इसी प्रकार भगवान भी युक्ति रच कर गुप्त रूप में आज भी इन असुरों का सामना कर रहे हैं जिसके लिए कहते हैं सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे भगवान की लीलाओं का वास्तविक अर्थ न समझ पाने के कारण उनके कर्तव्यों को भी साधारण समझ लेते है और भगवान पर भी कलंक लगाने लगते हैं, की माखन चुराया, गोपियों को भगाया, चीर हरण किया इत्यादि

      जैसे की कहते हैं कलंक लगाने वाले और निंदा करने वालों का भी भगवान उद्धार करते है क्योंकि वह जानते है की कलंक लगने वाले तो अज्ञानी ठहरे न हीरे को भी जानते नहीं तो पत्थर समझ कर फेंक देते है इसी प्रकार गीता के श्लोक –अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्। परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम्।।9.11।।, इस श्लोक के अनुसार अभी वर्तमान कल्युगांत का समय में निराकार शिव जिस साधारण तन में आए हुए हैं उसको ना पहचानने के कारण कलंक लगा रहे हैं परंतु सदा कल्याणकारी सुप्रीम शोल जो सदा सत्य है कभी असत्य बनते ही नहीं जिसको सारी दुनिया सदा शिव  के नाम से जानती है वे अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए सदा तत्पर रहते हैं उसको नहीं पहचाने के कारण उंगलियों उठा देते हैं लेकिन उनका कहना है कि हमारी निंदा हमारी जो करें मित्र हमारा सो होए  इसलिए सारे कलंको को उन्होंने स्वेच्छा से धारण कर लिया और कलंकीधर के अंतिम भगवान पार्ट धारी के रूप में प्रत्यक्ष होंगे  

श्री कृष्ण जन्माष्टमी रात्रि को ही क्यों मनाई जाती है?

        वास्तव में, यह कलयुगांत का समय ही घोर अज्ञान अंधकार की रात्रि का समय है  जब हर मनुष्य मात्र, आत्मा और परमात्मा को भूल अज्ञान की नींद में सोए रहते हैं तब भगवान सृष्टि पर दिव्य जन्म लेते हैंइसीलिए जन्माष्टमी रात्रि को मनाई जाती है 

     इस अज्ञान की रात्रि में भगवान आकर हम सबको ज्ञान का दीपक देकर हमें जगाते हैं जिसकी यादगार घर में जागरण करते हैं

     और यह ज्ञान की मीठी वाणी ही वास्तव में भगवान की मुरली है परन्तु मुरलीधर गोपाल पर यह आरोप लगाया जाता है कि उन्होंने मुरली सुनाकर गोपियों को भगाया ! वास्तव में यह ज्ञान की मीठे तान की बात है जो इस समय शिव शंकर के द्वारा दी जा रही है जो अत्यंत मधुर और अनोखी ज्ञान की बातें हैं जिसे सुनकर आत्मा रूपी गोपियां आकर्षित होकर उस ज्ञान मुरली धर के पास खींच कर आती हैं जिस काम के आधार पर संसार में कृष्ण अर्थात आकर्षण करने वाला नाम सार्थक हो जाता है 

      जिस प्रकार कृष्ण के नाम का अर्थ हमने समझा कि आकर्षण करने वाला उसी प्रकार भगवान का दूसरा नाम गोपाल गोपाल का अर्थ है गौ माना  सीधी साधी अर्थात कन्यायें और माताएं जो गौ की तरह एक खूंटे से जीवन भर बंध कर रहती हैं अर्थात चैतन्य ह्युमन गौ की पालना अर्थात उनकी रक्षा करने वाला है भगवान तो कैसे रक्षा करता है इसी की यादगार द्वापर युग में कृष्ण को द्रौपदी के चीर हरण से रक्षण दिखाया गया है वह है एक पौराणिक कथा किंतु कलयुग के अंत में जब काम विकार की अति हो जाती है  तब इन आत्माओं रूपी द्रोपियों की पुकार सुनकर स्वयं शिव शंकर गुप्त रूप में आकर इनकी लाज बचा रहे हैं 

  भगवान आकर यह शिक्षा दे रहे हैं कि नश्वर देह, देह के संबंधियों तथा नश्वर पदार्थों से मिलने वाला सुख, क्षण भंगुर है स्वयं को आत्मा समझ इन कर्मेंइंद्रियों, पर विजय पाने और भगवान ऐसी सच्चा प्यार करने में जो सुख है वह अविनाशी है जिस भगवान ने नारी के लाज की रक्षा की उसी भगवान के ऊपर गोपियों के वस्त्र धारण करने का आरोप है वास्तव में यह कर्तव्य अभी प्रैक्टिकल में आये हुए शिव शंकर भोलेनाथ के द्वारा आत्माओं का सच्चा परिचय देकर और अपने मन वचन कर्म से आत्मनुभूति करा कर इस नश्वर देह रूपी वस्त्र के भान का हरण करने का यादगार है. गीता में भी आया है वासांसि जीर्णानि यथा विहाय, नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णा- न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।2.22।। अर्थात मनुष्य जैसे पुराने कपड़े त्याग कर नए कपड़े पहन लेते हैं ऐसे ही आत्मा पुराने शरीर को त्यागकर नया धारण करती हैदेह को कपडे से तुलना कि गयी है हमने पहले ही समझा है की यह देह हमारा शत्रु है तो भगवान इस शत्रु से हमें छुड़ाता है

कृष्ण को सर्प के ऊपर नाचते हुए दिखाते हैं इसका वास्तविक अर्थ क्या?

श्री कृष्ण जी का जन्म

      सर्प विषय विकारों का प्रतीक है तो उसके ऊपर नाचना अर्थात विकारों पर विजाय पाना शास्त्रों में एक महादेव को ही दिखाया है जिन्होंने सब विकारों का मुखिया काम विकार को जीत लिया इसीलिए शंकर के शरीर पर सर्प लपेटे हुए दिखाते हैं अर्थात विषय विकारों से भरी आत्माओं के बीच रहते हुए भी उनके संग के रंग से परे रहते हैं इसके लिए कहते हैं चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग। तो वास्तव में वह कृष्ण अर्थात आकर्षण करने वाला स्वरूप कोई और नहीं परन्तु शिव शंकर ही है जो अभी ज्ञान की मुरली सुनाकर सभी आत्मा रूपी गोप गोपिकाओं को आकर्षण कर रहे हैं

कृष्ण को मटकी फोड़ते हुए क्यों दिखाया है ?

     मटकी फोड़ना माना, ज्ञान की गुह्य राजों को संसार के सामने उजागर करना कृष्ण को माखन चुराते हुए दिखाते हैंइसका भी आध्यात्मिक राज है – माखन माना सार रूपी श्रेष्ठता उसको चुराना माना भगवान अभी इस सृष्टि पर आकर, सारे संसार में से श्रेष्ठ आत्माओं को संसार से अलग करके अर्थात चुन करके उनके द्वारा नई सृष्टि का निर्माण कर रहे हैं

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