संगठन क्लास 13.07.2025 | VCD 2369 | Self Study | Adhyatmik Gyan

संगठन क्लास 13.07.2025 | VCD 2369 | Self Study | Adhyatmik Gyan

  • Blog
  • 12 July 2025
  • No Comment
  • 30
NotebookLM Mind Map
aivv ऊंचे ते ऊंच कौन

आध्यात्मिक विश्वविद्यालय संगठन (AIVV) के संदर्भ में “ऊंचे ते ऊंच कौन?” इस प्रश्न पर, बाबा ने कई महत्वपूर्ण बातें बताते हैं:

  • सर्वोच्च सत्ता – शिव (परमपिता):

    • बाबा ने स्पष्ट रूप से बताते हैं कि त्रिमूर्ति में ऊंचे ते ऊंच शिव हैं। उन्हें ही “ऊंचे ते ऊंच” कहा गया है और उन्हीं को याद किया जाता है।
    • शिव को “ज्ञान का अखूट भंडारी” (ज्ञान का अटूट भंडार) बताया गया है।
    • उन्हें “परमपिता” (Supreme Father) भी कहा गया है, जो “आत्माओं का बाप” (आत्माओं के पिता) हैं।
    • परमपिता केवल त्रिकालदर्शी हैं, लेकिन वे योगी नहीं हैं; वे राजयोग सिखाते हैं, जो कोई और नहीं सिखा सकता। वे साकार रूप में प्रवेश करके ही राजयोग सिखाते हैं, सिर्फ निराकारी रूप में नहीं।
    • “ऊंचे ते ऊंच बाप” को 32 गुणों वाला दिखाया गया है, और ये गुण साकार में होते हैं, ज्योति बिंदु के नहीं। यह वह “साकार सो निराकार” है जो संगम युग में निरंतर निराकारी स्टेज धारण कर लेता है। 
  • शंकर ऊंचे ते ऊंच नहीं हैं:

    • बाबा इस बात पर जोर देते हैं कि शंकर “ऊंचे ते ऊंच” नहीं हैं। उन्हें “पतितम कामी कांटा” (सबसे पतित, कामी कांटा) बताया गया है।
    • शंकर को “पुरुषार्थी” (प्रयास करने वाला) कहा गया है क्योंकि वह स्वयं “ऊंचे ते ऊंच” (शिव) को याद करते हैं। जब तक वे “ऊंचे ते ऊंच” का समान रूप धारण नहीं करते, तब तक वे “नीच” (निम्न) हैं।
  • परमात्मा” नामक तीसरी आत्मा:

    • गीता के उदाहरण से बताया गया है कि तीन प्रकार की आत्माएं हैं: एक “अक्षर” (जो कभी पतित नहीं होती, यानी परमपिता शिव), बाकी सभी मनुष्य आत्माएं और प्राणी जिनकी शक्ति जन्म-जन्मांतर क्षीण होती रहती है।
    • लेकिन एक तीसरी आत्मा भी है जो इन दोनों प्रकार की आत्माओं से श्रेष्ठ है, और इसे गीता में “परमात्मा” कहा गया है।
    • यह आत्मा “त्रिकालदर्शी बनने के साथ-साथ मास्टर त्रिकालदर्शी अब्वल नंबर बनती है”।
    • इस आत्मा को “परम पार्ट बजाने वाली आत्मा” या “हीरो पार्ट धारी आत्मा” कहा जाता है।
    • यह “परमात्मा” क्षरित होने वाली आत्माओं में से एक ऐसी पुरुषार्थी आत्मा है जो अपने प्रयासों से “परमपिता के समकक्ष परमपिता के समान शक्ति धारण कर लेती है”।
    • इस आत्मा का नाम “परमपिता” के बाद आता है, क्योंकि परमपिता का महत्व हमेशा पहले रखना चाहिए। परमपिता ज्ञान के भंडारी हैं लेकिन योगी नहीं हैं, जबकि यह तीसरी आत्मा पुरुषार्थ से योग की चरम स्थिति को प्राप्त करती है।

संक्षेप में, शिव (परमपिता) ही निरपेक्ष रूप से “ऊंचे ते ऊंच” हैं, जो ज्ञान के दाता और राजयोग के शिक्षक हैं। वहीं, शंकर को “ऊंचे ते ऊंच” नहीं माना जाताक्योंकि वे स्वयं शिव को याद करते हैं और पुरुषार्थ करते हैं। इसके अतिरिक्त, स्रोतों में एक विशेष “परमात्मा” नामक मनुष्य आत्मा का भी उल्लेख है, जो अपने पुरुषार्थ से परमपिता शिव के समान शक्ति और अवस्था को प्राप्त कर लेती है, और उसे भी इस सृष्टि में एक अद्वितीय, “हीरो पार्ट धारी” आत्मा माना जाता है, लेकिन वह परमपिता से भिन्न ह

त्रिमूर्ति का स्वरूप

आध्यात्मिक विश्वविद्यालय संगठन (AIVV) के संदर्भ में “त्रिमूर्ति का स्वरूप” पारंपरिक हिंदू मान्यताओं से भिन्न और अधिक गहन आध्यात्मिक अर्थ रखता है। स्रोत इस अवधारणा को कई स्तरों पर स्पष्ट करते हैं:

  1. त्रिमूर्ति में ऊंचे ते ऊंचकौन – शिव (परमपिता):
    • स्रोत स्पष्ट करते हैं कि त्रिमूर्ति मेंशिव ही “ऊंचे ते ऊंच बाप” हैं। उन्हें “ज्ञान का अखूट भंडारी” (ज्ञान का अटूट भंडार) बताया गया है।
    • शिव को “32 किरणों वाला” और “32 गुणों” से युक्त दिखाया गया है, और ये गुण साकार में होते हैं, सिर्फ ज्योति बिंदु के नहीं। उन्हें ही “साकार सो निराकार” कहा गया है, जो संगम युग में निरंतर निराकारी स्टेज धारण कर लेता है।
    • वे राजयोग सिखाते हैं, जो कोई और नहीं सिखा सकता, और वे यह साकार रूप में प्रवेश करके ही सिखाते हैं, सिर्फ निराकारी रूप में नहीं।
  2. शंकर का स्वरूप और भूमिका:
    • शंकर को “ऊंचे ते ऊंच” नहीं माना जाता। उन्हें “पतितम कामी कांटा” कहा गया है।
    • शंकर को “पुरुषार्थी” बताया गया है क्योंकि वह स्वयं “ऊंच ते ऊंच शिव” को याद करते हैं। जब तक शंकर “ऊंच ते ऊंच” का समान रूप धारण नहीं करते, तब तक वे “नीच” हैं।
    • शंकर वाली आत्मा में “तीन आत्माओं का संकरण” (संयोग/मिलन) होता है। ये तीन आत्माएं हैं:आत्माओं का बाप शिव, बड़ी मां ब्रह्मा के रूप में प्रैक्टिकल पार्ट बजाने वाली सहनशील माता दादा लेखराज ब्रह्मा की सोल (जो पुरुष चोला दुर्योधन दुशासन का छोड़ने के बाद किसी माता में प्रवेश करती है और पूजनीय बनती है), औरपूजनीय जगदंबा
    • कार्यात्मक रूप से, शंकर त्रिनेत्री के द्वारा बुद्धि रूपी तीसरे नेत्र का समझने और समझाने का कार्य करते हैं
  3. त्रिमूर्ति हाउस और आत्माओं के स्वभाव-संस्कारों का मेल:
    • “त्रिमूर्ति हाउस” को “एक हाउस” (एक घर) माना गया है, जोशरीर रूपी घर” की यादगारहै।
    • यह उन “तीन आत्माओं” के स्वभाव और संस्कारों के मिलन का प्रतीक है, जो “मिलकर के एक के समान हो जाते हैं”। इन आत्माओं कोबड़ी मम्मी जगदंबा”, छोटी मां लक्ष्मी”, औरराम वाली आत्मा”के रूप में पहचाना गया है।
    • यह भी बताया गया है कि जब जगदंबा (जो महाकाली का रूप धारण करती है) और लक्ष्मी (जो महागौरी का रूप धारण करती है) स्वभाव-संस्कार से मिलकर एक हो जाती हैं, तो उन्हेंमहालक्ष्मीकहा जाता है। उनके स्वभाव और जन्म-जन्मांतर के संस्कार मिलकर एक हो जाते हैं, जिससे वे “समान संकल्प वाली” बन जाती हैं।
  4. त्रिमूर्ति के कार्यात्मक पहलू (सृष्टि, पालन, संहार का रूपांतरित अर्थ):
    • AIVV के अनुसार, ब्रह्मा, शंकर और विष्णु के विशिष्ट कार्य होते हैं जो नई दुनिया की स्थापना से संबंधित हैं:
      • ब्रह्मा द्वारासुनने और सुनाने का कार्य होता है।
      • शंकर द्वाराबुद्धि रूपी तीसरे नेत्र से समझने और समझाने का कार्य होता है।
      • विष्णु द्वाराप्रैक्टिकल परिवर्तन का कार्य, विशेषकर संस्कारों के परिवर्तन का कार्य होता है, जो पवित्रता की शक्ति (प्योरिटी की पावर) से आता है।

संक्षेप में, AIVV के अनुसार, शिव ही निरपेक्ष रूप से “ऊंचे ते ऊंच” हैं, जो ज्ञान और राजयोग के दाता हैं। पारंपरिक त्रिमूर्ति के देवता (ब्रह्मा, विष्णु, शंकर) मानवीय आत्माओं और उनके कार्यात्मक भूमिकाओं के प्रतीक हैं। शंकर “ऊंचे ते ऊंच” नहीं हैं, बल्कि एक पुरुषार्थी आत्मा हैं जिसमें शिव, ब्रह्मा की आत्मा और जगदंबा का संकरण होता है। “त्रिमूर्ति हाउस” तीन प्रमुख मानवीय आत्माओं (जगदंबा, लक्ष्मी, राम) के स्वभाव-संस्कारों के मिलन और उनकी एकता का प्रतिनिधित्व करता है। यह स्वरूप बताता है कि सर्वोच्च सत्ता (शिव) अलग है, जबकि मानवीय आत्माएं अपने पुरुषार्थ और विशेष भूमिकाओं के माध्यम से सृष्टि के परिवर्तन में निमित्त बनती हैं।

विजयमाला का आवाहन- aivv www.adhyatmikgyan.in

आध्यात्मिक विश्वविद्यालय संगठन (AIVV) के संदर्भ में “विजयमाला का आवाहन” एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जोसंगठन, एकता, और नई दुनिया की स्थापना में पवित्रता की केंद्रीय भूमिकापर जोर देती है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक व्यावहारिक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसका लक्ष्य एकपवित्र और संगठित मानव समुदायका निर्माण करना है।

स्रोत इस अवधारणा को विस्तार से समझाते हैं:

  1. विजयमाला का अर्थ और आवाहन का उद्देश्य:
    • “विजयमाला का आवाहन करो” का अर्थ हैपूरी माला के सभी मणियों (आत्माओं) का आवाहन करना। यह उन सभी आत्माओं को एक साथ लाने का आह्वान है जो नई दुनिया के निर्माण में विजयी होने वाली हैं।
    • यह आवाहन इसलिए किया जाता है ताकि “पूरी माला के मणों का तो एक साथ आवाहन नहीं किया जा सकता” और इसलिए “रानी मक्खी को ले आते हैं… उसके पीछे पीछे सारी मक्खियां आ जाती है”। इसका तात्पर्य यह है कि कुछ मुख्य आत्माओं के नेतृत्व और उनके द्वारा स्थापित आदर्शों के माध्यम से ही संपूर्ण समुदाय को एकत्रित किया जा सकता है।
  2. शहद की मक्खियों का संगठन – एकता और पवित्रता का प्रतीक:
    • विजयमाला के संगठन को समझाने के लिएशहद की मक्खियों के संगठन का उदाहरणदिया गया है। इसे “दुनिया में सबसे बढ़िया संगठन” माना जाता है।
    • यह संगठनएक रानी मक्खी के आदेश परचलता है, जहाँ सभी मक्खियाँ (सुरक्षा करने वाली, शहद इकट्ठा करने वाली, अंडे बच्चों को पालने वाली) अपना-अपना कार्य पूरी निष्ठा और समन्वय से करती हैं।
    • इसकी “पक्की यूनिटी” का रहस्य “प्योरिटी” (पवित्रता) में निहित है। स्रोत स्पष्ट करते हैं कियूनिटी काहे से आती है परिटी से यूनिटी आती है”। यही कारण है कि विजयमाला का आवाहन किया जाता है, क्योंकि पवित्रता ही वास्तविक एकता का आधार है।
  3. महालक्ष्मी और शिव शक्ति अवतार की भूमिका:
    • “महालक्ष्मी” (जो जगदंबा का महाकाली रूप और लक्ष्मी का महागौरी रूप स्वभाव-संस्कार से मिलकर एक हो जाती हैं) का विशेष महत्व है। जब ये दो आत्माएं “समान संकल्प वाली” हो जाती हैं, तो उन्हें महालक्ष्मी कहा जाता है।
    • यह भी बताया गया है कि भगवान (शिव शंकर भोलेनाथ) तभी “प्रैक्टिकल पार्ट धारी सफल होता है जब महालक्ष्मी उनसे आकर मिलती है”।
    • “भारत माता शिव शक्ति अवतार अंत का यही नारा है”। यह नारा इस बात पर जोर देता है किशिव शक्ति का प्रत्यक्ष होना ही संगम युग में ड्रामा के अंत का संकेत है। यह शिव शक्ति, जिसमें पवित्रता और एकता का बल है, विजयमाला के निर्माण और नई दुनिया की स्थापना के लिए अनिवार्य है।
  4. राजधानी की स्थापना और धारणा का महत्व:
    • “ईश्वरीय राजधानी” की स्थापना के लिएप्योरिटी से प्रैक्टिकल प्योरिटीका होना आवश्यक है, जिससे यूनिटी बनती है।
    • धारणा (प्रैक्टिकल जीवन में ज्ञान को धारण करना) ही मुख्य है, न कि केवल भागदौड़, प्रदर्शनियाँ या कॉन्फ्रेंस। ब्रह्मा कुमार कुमारियों और एडवांस पार्टी के संदर्भ में बताया गया है किज्ञान अच्छा होने के बावजूद “ज्ञान दाता में धारणा नहीं दिखाई देती”, जिससे ब्राह्मणों का संगठन बनने की बजाय बिगड़ रहा है।
    • विजयमाला का निर्माण तभी संभव है जबप्रैक्टिकल धारणा”हो, जो राजधानी स्थापन करने वाली “धारणा शक्ति” है।
  5. विभिचारी ज्ञान से बचाव और “हियर नो इविल”:
    • विजयमाला के निर्माण में बाधा उत्पन्न करने वाला एक महत्वपूर्ण कारकविभिचारी ज्ञान”है। यह तब उत्पन्न होता है जब कोई “एक से ज्ञान सुनना चाहिए” के बजाय “अनेकों से ज्ञान सुना” सुनता है। इससे आत्माएँ कमज़ोर होकर अन्य धर्मों में कन्वर्ट हो जाती हैं।
    • एकता और संगठन बनाए रखने के लिएहियर नो इविल” (बुरी बातें न सुनना)का सिद्धांत अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि कोई “गलत बातों” को सुनता रहता है, तो उसे “100 गुना दंड चढ़ जाता है” और वह “नाफरमान बरदार बच्चा” बन जाता है। पवित्रता और एकता बनाए रखने के लिए ऐसी बातों से “किनारा कर लेना चाहिए” और वाद-विवाद से बचना चाहिए।
    • यह सिद्धांत विजयमाला रूपी संगठन की शुचिता और शक्ति को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

कुल मिलाकर, विजयमाला का आवाहन” आध्यात्मिक विश्वविद्यालय संगठन के लिए पवित्रता-आधारित एकता की पुकार है, जो मधुमक्खियों के समान संगठित, कार्यकुशल और दृढ़ संकल्पित आत्माओं से बनी है। यह एक ऐसी आध्यात्मिक सेना है जो मानवीय आत्माओं के स्वभाव-संस्कारों को एक करके, शिव शक्ति के रूप में प्रत्यक्ष होकर, नई दुनिया रूपी स्वर्ग का द्वार खोलने और ईश्वरीय राजधानी की स्थापना में निमित्त बनती है।

विजयमाला का आवाहन- aivv www.adhyatmikgyan.in

आध्यात्मिक विश्वविद्यालय संगठन (AIVV) के संदर्भ में “दुःख और वाइब्रेशन” की अवधारणा अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि स्रोत स्पष्ट करते हैं किवाइब्रेशन ही नई दुनिया के निर्माण का आधार है, और दुःख विभिन्न प्रकार के नकारात्मक वाइब्रेशन उत्पन्न करते हैं जो इस निर्माण में बाधक हैं।

स्रोत इस विषय पर गहराई से प्रकाश डालते हैं:

  • दुःख के प्रकार और नकारात्मक वाइब्रेशन का स्रोत:
    • स्रोत स्पष्ट करते हैं किदुःख का वाइब्रेशनविभिन्न विकारों और नकारात्मक भावनाओं से उत्पन्न होता है। इनमेंकाम विकार का दुःख, क्रोध का दुःख, ईर्ष्या का दुःख, अहंकार का दुःख, और लोभ का दुःखशामिल हैं।
    • यह भी बताया गया है कि कमजोर आत्माएं अधिक दुःख का अनुभव करती हैं। ये दुःख ही नकारात्मक वाइब्रेशन के मुख्य स्रोत हैं।
    • उदाहरण के लिए, “गलत बातों को सुनने सुनाने का वाइब्रेशन” भी नकारात्मकता उत्पन्न करता है, जिसके कारण सुनने वाले पर “100 गुना दंड चढ़ जाता है”।
  • वाइब्रेशन को पकड़ना और उसका प्रभाव:
    • स्रोत में “वाइब्रेशन को पकड़ने की बात है” कहकर समझाया गया है कि जैसे भूत प्रेत आत्माएं कमजोर आत्माओं के दुःख के वाइब्रेशन को पकड़ लेती हैं।
    • मोर और मोरनी का उदाहरण दिया गया है: मोर (जो ज्ञान डांस करता है) के आंसू, जिनमें दुःख भरा होता है, को मोरनी पी लेती है, और इसी “दुख के वाइब्रेशन को पकड़” करअंदर में दिल में धारण कर लेती हैजिससे राधा-कृष्ण जैसे बच्चों का जन्म होता है। यह एक सांकेतिक उदाहरण है कि किस प्रकार सूक्ष्म वाइब्रेशन से सृष्टि का निर्माण होता है।
  • नई दुनिया का निर्माण वाइब्रेशन से:
    • सबसे महत्वपूर्ण अवधारणा यह है किवाइब्रेशन से नई दुनिया बनती है”। इसका अर्थ है कि एक शुद्ध और सकारात्मक दुनिया (स्वर्ग) का निर्माण केवल शुद्ध वाइब्रेशन से ही संभव है, न कि इंद्रियों के स्थूल संबंधों से।
    • इसीलिए बाबा कहते हैं कि “दुख की दुनिया में मरेंगे नरक में मरेंगे तो नरक में जन्म लेंगे स्वर्ग में मरेंगे तो स्वर्ग में जन्म लेंगे”। यह भी वाइब्रेशन के अनुरूप जन्म लेने की बात है।
  • दुःख का हरण और सकारात्मक वाइब्रेशन का महत्व:
    • विष्णु के चित्र में शेष सैया पर लेटे हुए विष्णु के पांव दबाती लक्ष्मी का उदाहरण देते हुए समझाया गया है कि लक्ष्मी (या बुद्धि रूपी पांव)दुख को हरण करने वाली है”। यह दुःख के वाइब्रेशन को समाप्त करने और पवित्रता स्थापित करने की शक्ति का प्रतीक है।
    • “प्योरिटी से प्रैक्टिकल प्योरिटी से यूनिटी बना” – यह दर्शाता है कि संगठन की एकता और शक्तिपवित्रतासे आती है, जो स्वाभाविक रूप से दुःख और नकारात्मक वाइब्रेशन को दूर करती है।
  • आध्यात्मिक विश्वविद्यालय संगठन में “दुःख और वाइब्रेशन” का स्थान:
    • संगठन का लक्ष्यनई दुनिया की नई राजधानी”स्थापित करना है। यह राजधानी “राजा की धारणा शक्ति” से आती है, जो अपनी “प्योरिटी से प्रैक्टिकल प्योरिटी से यूनिटी बना” करती है। इसका सीधा तात्पर्य यह है कि इस राजधानी का आधार दुःख मुक्त, शुद्ध वाइब्रेशन होंगे।
    • “हियर नो इविल” का सिद्धांत: संगठन मेंनकारात्मक वाइब्रेशन से बचावके लिए “उल्टी सुलटी बातें सुनने और सुनाने का धंधा ही छोड़ दो” का निर्देश दिया गया है। ऐसा न करने पर 100 गुना दंड चढ़ता है और ऐसे बच्चे “नाफरमान बरदार बच्चा” बन जाते हैं। यह नियम संगठन की पवित्रता और एकता को बनाए रखने के लिए अनिवार्य है।
    • “परमात्म प्रत्यक्षता बम”: यहसबसे बड़ा बमबताया गया है। यह कोई भौतिक बम नहीं, बल्कि परमात्मा की प्रत्यक्षता का वाइब्रेशनल प्रभाव है जो दुनिया में सकारात्मक परिवर्तन और विनाश (पुरानी, दुःख भरी दुनिया का) लाएगा। यह दुःख और रावण संप्रदाय द्वारा उत्पन्न की गई नकारात्मक वाइब्रेशन का अंतिम समाधान है।
    • ब्रह्मा कुमार कुमारियों और एडवांस पार्टी के संगठन में विघटन का कारण भी यही है कि “ज्ञान दाता में धारणा नहीं दिखाई देती”।प्रैक्टिकल धारणा की कमीदुःख के वाइब्रेशन को जन्म देती है, जिससे संगठन बनता नहीं, बल्कि बिगड़ता जाता है।

संक्षेप में, आध्यात्मिक विश्वविद्यालय संगठन के लिए “दुःख और वाइब्रेशन” की समझ अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह समझना कि विभिन्न प्रकार के दुःख नकारात्मक वाइब्रेशन उत्पन्न करते हैं जो आत्माओं को कमजोर करते हैं और पुरानी, दुःख भरी दुनिया को बनाए रखते हैं। इसके विपरीत, पवित्रता और धारणा से उत्पन्न सकारात्मक वाइब्रेशन हीनई, स्वर्गिक दुनिया (ईश्वरीय राजधानी)के निर्माण का आधार हैं। इसलिए, संगठन का हर सदस्य नकारात्मक वाइब्रेशन से बचकर और सकारात्मक वाइब्रेशन का संचार करके इस महान कार्य में अपना योगदान दे सकता है।

धर्म परिवर्तन (कन्वर्शन), aivv www.adhyatmikgyan.in

आध्यात्मिक विश्वविद्यालय संगठन (AIVV) के संदर्भ मेंधर्म परिवर्तन (कन्वर्शन)की अवधारणा को स्रोत विशेष रूप से नकारात्मक रूप में देखते हैं, और इसेआत्मा की कमजोरी तथा व्यभिचारी ज्ञानके प्रभाव का परिणाम मानते हैं। संगठन का लक्ष्य एक ऐसी नई दुनिया और राजधानी की स्थापना करना है जो इस धर्म परिवर्तन से मुक्त हो, जिसकी नींवपवित्रता और एकत्वपर टिकी हो।

स्रोत धर्म परिवर्तन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं:

  • धर्म परिवर्तन के कारण और स्वरूप:
    • स्रोत स्पष्ट करते हैं कि आत्माएँ द्वापर युग में कमजोर ब्राह्मण होने के कारण द्वैतवादी धर्मों में परिवर्तित होती रहती हैं।
    • कमजोर आत्माएँअधिक आसानी से दूसरे धर्मों के प्रभाव में आ जाती हैं और परिवर्तित हो जाती हैं।
    • व्यभिचारी ज्ञानको धर्म परिवर्तन का मुख्य कारण बताया गया है। बाबा ने बताया है कि “एक से ज्ञान सुनना चाहिए अनेकों से ज्ञान सुना तो विचारी ज्ञान हो जावेगा”। यह व्यभिचारी ज्ञान की शूटिंग संगम युग में होती है और फिर ड्रामा में इसका बड़ा रूप धारण हो जाता है, जिससे आत्माएँ इब्राहिम, बुद्ध, क्राइस्ट आदि धर्म पिताओं के ज्ञान में परिवर्तित हो जाती हैं।
    • दूसरे का ज्ञान सुनकरप्रभावित होनाही कन्वर्ट होना है।
  • धर्म परिवर्तन के शिकार कौन:
    • स्रोत बताते हैं कि “उन कन्वर्ट होने वालों मेंसभी भारतवासियों का नंबर है“। वे चाहे सूर्यवंशी हों, चंद्रवंशी हों, इस्लाम वंशी हों, या बौद्धि वंशी हों, सभी भारतवासी कन्वर्ट होते हैं।
    • भारतवासी आत्माएँ इस्लाम, बुद्ध, क्रिश्चियन धर्मों में परिवर्तित होती रहती हैं जब-जब धर्म पिताएँ आते हैं।
  • कुछ अपवाद और आदर्श:
    • कुछसशक्त आत्माएँजैसे सिद्धार्थ का बाप, उसका ग्रैंड फादर, और उसका भी फादर, जो बीज रूप बाप वाली आत्माएँ हैं, वे जीवन रहते कन्वर्ट नहीं होतीं। हालाँकि, उनके खून (संतान) द्वारा किए गए कमाल (जैसे महात्मा बुद्ध की ख्याति) उनके दिल को खींचता रहता है, और वही खिंचाव अगले जन्मों में उन्हें बौद्ध धर्म में जन्म लेने के लिए प्रेरित करता है, लेकिन जीवन रहते वे धर्म परिवर्तित नहीं करतीं।
    • भारत की माताएँ और कन्याएँ (जिन्हें ‘गौएँ’ कहा गया है) इसका आदर्श प्रस्तुत करती हैं। उन्हें “पवित्रता को धारण करने वाली” और “सती” कहा गया है, जो एक पति परमेश्वर को मानकर जीवनभर एक ही ‘खूंटे’ (परंपरा/सत्य) से बंधी रहती हैं, और कभी डिवोर्स नहीं देतीं। यह उनके धर्म और पवित्रता में अटल रहने का प्रतीक है। यदि घर की गृहणी श्रेष्ठ है तो परिवार स्वर्ग बन जाता है, और यदि झूठी व अपवित्र है तो नरक।
  • आध्यात्मिक विश्वविद्यालय संगठन में धर्म परिवर्तन का निषेध:
    • संगठन का लक्ष्यनई दुनिया की नई राजधानी”की स्थापना करना है। यह राजधानी “राजा की धारणा शक्ति” पर आधारित होगी, जो अपनीप्योरिटी से प्रैक्टिकल प्योरिटी से यूनिटी बना”करेगी। ऐसी राजधानी में कोई विकारी पांव भी नहीं रख सकेगा। यह स्थिरता और शुद्धता धर्म परिवर्तन के बिल्कुल विपरीत है।
    • हियर नो इल” (Hear No Evil)का सिद्धांत धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण व्यावहारिक निर्देश है। बाबा का फरमान है किशिव बाबा के सिवाय और किसी की बातें सुननी ही नहीं चाहिए। यदि कोई फालतू या उल्टी-सुलटी बातें सुनता है, तो उस पर100 गुना दंडचढ़ जाता है, क्योंकि इससे गलत बातों को सुनने-सुनाने का वाइब्रेशन बनता है। ऐसे बच्चे “नाफरमान बरदार” कहलाते हैं।
    • वाद-विवाद से बचनाभी महत्वपूर्ण है, क्योंकि गलत बात का जवाब देने से भी वाद-विवाद चल पड़ता है, जिससे समय बर्बाद होता है और यह भी नाफरमानी है।
    • यह स्पष्ट किया गया है किएक के सिवाय और कोई से ज्ञान सुनना ही नहीं है”। उल्टी-सुलटी बातें सुनने और सुनाने का धंधा छोड़ना ही स्वयं का कल्याण है।
  • संगठन में धारणा की कमी का प्रभाव:
    • ब्रह्मा कुमार कुमारियों और एडवांस पार्टी के संगठन में विघटन का एक कारण यह भी बताया गया है किज्ञान दाता में धारणा नहीं दिखाई देती”। दुनिया प्रैक्टिकल धारणा को पकड़ती है, केवल ज्ञान को नहीं। प्रैक्टिकल धारणा की कमी से अलबेलापन आता है, जिससे माया और प्रकृति मजबूत होती हैं, और धरनी कंपायमान होती है। यह भी एक प्रकार से सच्ची धारणा से भटकना और कमजोर पड़ना है, जो परोक्ष रूप से धर्म परिवर्तन जैसी अस्थिरता को दर्शाता है।

सारांश में, आध्यात्मिक विश्वविद्यालय संगठन की शिक्षाएँ धर्म परिवर्तन को एक नकारात्मक प्रक्रिया के रूप में देखती हैं जोआत्मा की कमजोरी, व्यभिचारी ज्ञान और पवित्रता की कमीके कारण होती है। इस धर्म परिवर्तन से बचने और एक शुद्ध नई दुनिया की स्थापना के लिए, संगठनएक ही स्रोत से ज्ञान सुनने, अनावश्यक बातों से दूर रहने, पवित्रता धारण करने और दृढ़ धारणापर जोर देता है।

धर्म परिवर्तन (कन्वर्शन), aivv www.adhyatmikgyan.in

आध्यात्मिक विश्वविद्यालय संगठन के संदर्भ मेंसद्गुरु की निंदाको अत्यंत गंभीर पाप और संगठन की मूलभूत शिक्षाओं के विपरीत माना गया है। स्रोत इसे आत्मा के पतन और धर्म परिवर्तन का सीधा मार्ग बताते हैं।

यहां सद्गुरु की निंदा के विषय में स्रोतों का विस्तृत विवरण है:

  • सद्गुरु की निंदा की गंभीरता:
    • स्रोतों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि “सद्गुरु की निंदा कान से सुननी भी नहीं चाहिए“। इसकी तुलनागौ हत्या (गौ घात)जैसे घोर पाप से की गई है, जहाँ कहा गया है कि “कान्हा हो पाप गौ घात समाना”। यह तुलना इसकी असाधारण गंभीरता को दर्शाती है, जहाँ मानव गौओं (भारत की कन्याओं और माताओं) की पवित्रता और अटल निष्ठा को सर्वोपरि माना गया है।
    • सद्गुरु (जो यहाँ शिव बाबा को दर्शाते हैं) की निंदा सुनना या उस पर ध्यान देना, उनकी एकमात्र और सर्वोच्च सत्ता को नकारने के समान है। शिव बाबा को ही “ज्ञान का अखूट भंडारी” और “ऊंच ते ऊंच” बताया गया है, जिनकी ही शरण में जाना चाहिए और अन्य देहधारी धर्म गुरुओं या पिताओं को “गोली मारने” (अर्थात त्यागने) की बात कही गई है।
  • हियर नो इविल” (Hear No Evil) का सिद्धांत और सद्गुरु की निंदा:
    • सद्गुरु की निंदा न सुनने का सिद्धांतहियर नो इविल”के व्यापक निर्देश का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। बाबा का स्पष्ट फरमान है किशिव शिव बाबा के सिवाय कोई दूसरे की बातें सुननी नहीं है”
    • यदि कोई “उल्टी-सुलटी” या “फालतू” बातें सुनता रहता है, तो उसके ऊपर“100 गुना दंड चढ़ जाता है”। ऐसा करने से गलत बातों को “सुनने सुनाने का वाइब्रेशन” बनता है। ऐसे बच्चों को “नाफरमान बरदार बच्चा” कहा जाता है, क्योंकि वे बाबा के फरमान (निर्देश) का उल्लंघन करते हैं।
    • स्रोतों में यह भी निर्देश है कि ऐसीइविल बातों को सुनना ही नहीं है”औरउनको जवाब भी नहीं देना है”। यदि कोई गलत बात कहे तो तुरंत उसका जवाब देने से “वाद विवाद चल पड़ता है”, जिससे समय व्यर्थ होता है और यह भी नाफरमानी है।
  • व्यभिचारी ज्ञान और धर्म परिवर्तन से संबंध:
    • सद्गुरु की निंदा सुनना या अन्य के ज्ञान से प्रभावित होना सीधे तौर परव्यभिचारी ज्ञान”से जुड़ा है। बाबा ने बताया है कि “एक से ज्ञान सुनना चाहिए अनेकों से ज्ञान सुना तो व्यभिचारी ज्ञान हो जावेगा”।
    • यहव्यभिचारी ज्ञानही धर्म परिवर्तन (कन्वर्शन) का मूल कारण है। यदि कोई दूसरे का ज्ञान सुनकरप्रभावित हो गए तो प्रजा बन जावे”औरकन्वर्ट हो गए”। यह प्रभाव संगम युग में ही अपना फाउंडेशन डालता है और बाद में ड्रामा में बड़ा रूप धारण कर लेता है, जिससे आत्माएं इब्राहिम, बुद्ध, क्राइस्ट आदि धर्म पिताओं के ज्ञान में परिवर्तित हो जाती हैं।
    • इसलिए, सद्गुरु की निंदा न सुनना, केवल एक ही स्रोत (शिव बाबा) से ज्ञान प्राप्त करना और उससे प्रभावित रहना, आत्मा को व्यभिचारी ज्ञान और धर्म परिवर्तन से बचाता है, और उसे अपनी मूल पहचान तथा श्रेष्ठ स्थिति में बनाए रखता है।
  • वांछित आचरण और कल्याण:
    • इस नकारात्मकता से बचने के लिए, सदस्यों कोकिनारा कर लेना चाहिए”और “उल्टी सुलटी बातें सुनने और सुनाने का धंधा ही छोड़ दो”।
    • ऐसा करनाअपने ऊपर अपने आप कृपा करनी है”के समान है। जब आत्मा बाप के डायरेक्शन पर चलती है, तभी उसका कल्याण होता है।
    • संगठन का लक्ष्यनई दुनिया की नई राजधानी”की स्थापना करना है जो “प्योरिटी से प्रैक्टिकल प्योरिटी से यूनिटी” बनाएगी। सद्गुरु की निंदा से दूर रहना और केवल एक सत्य पर केंद्रित रहना इस नई दुनिया की स्थापना और उसकी दृढ़ता के लिए आवश्यक है, क्योंकि यह आत्मा की शक्ति को क्षीण होने से बचाता है और एकता को मजबूत करता है।
नई दुनिया की स्थापना, aivv www.adhyatmikgyan.in

आध्यात्मिक विश्वविद्यालय संगठन के संदर्भ मेंनई दुनिया की स्थापनाएक केंद्रीय अवधारणा है, जिसे भगवान द्वारा सीधे की जा रही है और इसमें आत्माओं की पवित्रता, एकता और धारणा शक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह स्थापना वर्तमान ‘पुरानी दुनिया’ के विनाश के साथ-साथ ही होती है।

स्रोतों के अनुसार नई दुनिया की स्थापना से संबंधित मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

  • स्थापना के निमित्त (Instruments of Establishment):
    • भगवान भारत में जब आते हैं तोभारत की कन्याओं और माताओं को आधार बनाते हैं नई दुनिया की स्थापना करने के लिए। यही कन्याएँ और माताएँस्वर्ग का गेट खोलने के निमित्त बनती हैं
    • इन्हें “भारत की गौएं” कहा गया है जो अपने मात-पिता द्वारा बांधे गए खूंटे से सारा जीवन बंधकर रहती हैं, कभी डिवोर्स नहीं देतीं और पवित्रता को धारण करती हैं।
    • शिव शक्ति अवतारका नारा भी नई दुनिया के अंत और स्थापना से जुड़ा है, जहाँ शिव शक्ति निकलेगी और संगम युग में ड्रामा का अंत हो जाएगा।
    • ब्रह्मा को निमित्त नहीं बनाया जाता, न ही दाढ़ी मूँछ वाले शंकर को, बल्कि कन्याएँ और माताएँ ही निमित्त बनती हैं।
  • नई दुनिया की प्रकृति (Nature of the New World):
    • नई दुनिया कोनई राजधानीकहा गया है। यह ब्राह्मणों की दुनिया काऐसा संगठनबन जाएगा जिसमें कोई भिखारी पांव भी नहीं रख सकेगा।
    • यह दुनियावाइब्रेशन से बनती है। जैसा कि कहा गया है, “दुख की दुनिया में मरेंगे नरक में मरेंगे तो नरक में जन्म लेंगे स्वर्ग में मरेंगे तो स्वर्ग में जन्म लेंगे”।
    • यहसबसे सशक्त राजधानीहोगी, जिसकी शोहरत दिन-ब-दिन बढ़ती जाएगी और दुनिया के अन्य राज्याधीश व धर्माधीश अपनी राजाई छोड़ देंगे।
  • स्थापना के मूल सिद्धांत (Core Principles of Establishment):
    • नई दुनिया की स्थापनाप्योरिटी से प्रैक्टिकल प्योरिटी से यूनिटीबनाने पर आधारित है।यूनिटी प्योरिटी से आती है
    • इसके लिएराजा की धारणा शक्तिचाहिए। दुनिया ज्ञान को नहीं, बल्किप्रैक्टिकल धारणा को पकड़ती है
    • एकमजबूत संगठनबनाने पर जोर दिया गया है, जैसा कि शहद की मक्खियों के छत्ते का उदाहरण दिया गया है जहाँ एक रानी के ऑर्डर पर पूरा छत्ता चलता है औरपक्की यूनिटी होती है
    • यह स्थापनाबुद्धि रूपी पावऔरआंसू पीने (दुख को हरण करने) से जुड़ी है, जिससेवाइब्रेशन से राधा-कृष्ण जैसे बच्चों का जन्म होता है
  • स्थापना में दैवीय भूमिकाएँ (Divine Roles in Establishment):
    • ब्रह्माद्वारासुनने सुनाने का कार्य
    • शंकर (त्रिनेत्री)के द्वाराबुद्धि रूपी तीसरे नेत्र का समझने और समझाने का कार्य
    • विष्णुद्वाराप्रैक्टिकल परिवर्तन का कार्य, अर्थातसंस्कार परिवर्तन का कार्य। यह परिवर्तनप्योरिटी की पावरसे होता है, न कि भागदौड़ से।
  • चुनौतियाँ और समाधान (Challenges and Solutions):
    • स्थापना के साथ ही साथ विनाश जुड़ा हुआ है। यज्ञ के आदि में भी स्थापना के साथ-साथ विनाश ज्वाला प्रज्वलित हुई थी।
    • ब्राह्मणों का संगठन आजकल बिगड़ता जा रहा है, क्योंकि केवल शोर शराबा और भागदौड़ (प्रोजेक्टर, प्रदर्शनी, मेले, कॉन्फ्रेंस) की जा रही है, जिससे यूनिटी नहीं बन रही।
    • अलबेलापनऔर माया का प्रभाव बच्चों को अपनी धारणा से भटका सकता है। इस अलबेलेपन से बचना औरधरत पर धर्म न छोड़ना (शिवाजी का नारा) आवश्यक है।
    • यहपरीक्षा का टाइमहै, इसलिएटाइम वेस्ट नहीं करना चाहिए। “कार्यम साधयामि देहं वा पातयामि” (या तो काम करके छोड़ेंगे या देह छोड़ देंगे) का संकल्प रखना चाहिए।

संक्षेप में, आध्यात्मिक विश्वविद्यालय संगठन में नई दुनिया की स्थापना केवल एक भौतिक निर्माण नहीं है, बल्किपवित्रता और एकता पर आधारित चैतन्य राजाओं की राजधानीहै, जिसके निमित्त भारत की कन्याएँ और माताएँ बनती हैं। यहधारणा शक्तिऔरआंतरिक परिवर्तनसे आती है, और इसकी स्थापना वर्तमान पुरानी दुनिया केविनाशके साथ-साथ ही होती है।

नई दुनिया की स्थापना, aivv www.adhyatmikgyan.in

आध्यात्मिक विश्वविद्यालय संगठन के संदर्भ मेंसंगठन और यूनिटी (एकता)केंद्रीय अवधारणाएँ हैं, जो नई दुनिया की स्थापना और आध्यात्मिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बताई गई हैं। स्रोतों के अनुसार, यह केवल एक भौतिक संगठन नहीं है, बल्किआध्यात्मिक धारणा और पवित्रता पर आधारित एक आंतरिक एवं बाह्य व्यवस्थाहै।

यहाँ स्रोतों से प्राप्त जानकारी के मुख्य बिंदु दिए गए हैं:

  • संगठन का आदर्श स्वरूप और उसकी शक्ति:
    • नई दुनिया की राजधानी कोब्राह्मणों की दुनिया का ऐसा संगठन”कहा गया है जिसमेंकोई भिखारी पांव भी नहीं रख सकेगा”। यह संगठनसबसे सशक्त राजधानी”होगा जिसकीशोहरत दिन-ब-दिन बढ़ती जावेगी”
    • यूनिटी का महत्व:यह स्पष्ट किया गया है कियूनिटी काहे से आती है? प्योरिटी से यूनिटी आती है”। अर्थात, पवित्रता ही एकता का आधार है।
    • शहद की मक्खियों का उदाहरण:संगठन कीपक्की यूनिटी”का सर्वोत्तम उदाहरणशहद की मक्खियों का”दिया गया है, जहाँएक रानी के आर्डर पर पूरा छत्ता चलता है”औरसब तरह की मक्खियां अपना-अपना कार्य करती है”। यह दर्शाता है कि एक मजबूत और व्यवस्थित संगठन में हर सदस्य अपनी भूमिका निभाता है और केंद्रीय नेतृत्व के प्रति निष्ठा रखता है।
    • विजयमाला का आवाहन:विजयमाला का आवाहन करो”का अर्थ भीशहद की मक्खियोंके समानसंगठित और एकजुट समूहका निर्माण करना है, जहाँरानी मक्खी को ले आते हैं… उसके पीछे पीछे सारी मक्खियां आ जाती है”। यह बताता है कि एक मजबूत नेता के पीछे सभी आत्माओं को एकजुट होना है।
  • वर्तमान संगठन की चुनौतियाँ और उनका कारण:
    • स्रोतों में यह स्वीकार किया गया है किब्राह्मणों का संगठन बनता नहीं है बिगड़ता जा रहा है”
    • इसका मुख्य कारणभागदौड़ से कुछ होने वाला नहीं”औरबहुत शोर शराबा किया, प्रोजेक्टर दिखाओ, प्रदर्शनी दिखाओ, मेले-मला खड़े करो, कॉन्फ्रेंस करो”जैसी बाहरी गतिविधियों पर अधिक जोर देना है, जिससेयूनिटी बन रही है या बिगड़ती जा रही है”। यह दर्शाता है कि केवल बाहरी दिखावा या प्रचार संगठन को मजबूत नहीं करता, बल्कि आंतरिक धारणा और एकता महत्वपूर्ण है।
    • विभिचारी ज्ञान:एक से ज्ञान सुनना चाहिए अनेकों से ज्ञान सुना तो विचारी ज्ञान हो जावेगा”। यह विभिचारी ज्ञानसंगम युग में शूटिंगकरता है और बाद के जन्मों में धर्मान्तरण का कारण बनता है। यह संगठन की एकता को तोड़ने वाला एक प्रमुख कारक है।
    • धारणा की कमी:ज्ञान तो अच्छा है, लेकिनज्ञान दाता में धारणा नहीं दिखाई देती”तोदुनिया प्रैक्टिकल धारणा को पकड़ती है या ज्ञान को पकड़ेगी? है धारणा को पकड़ेगी”राजधानी स्थापन करने वाली धारणा शक्ति”की कमी संगठन को कमजोर करती है।
    • अलबेलापन:बच्चों मेंअलबेलापन”आने से भी संगठन कमजोर होता है और वेमाया प्रकृतिके प्रभाव में आ जाते हैं, जिससेधरणी हिलेगी कंपायमान होगी अनिश्चय बुद्धि बनेगी”
  • संगठन और यूनिटी के लिए आवश्यक गुण और क्रियाएँ:
    • प्योरिटी से प्रैक्टिकल प्योरिटी से यूनिटी: यह नई राजधानी की स्थापना का मूल मंत्र है।
    • बुद्धि रूपी पांव और आंसू पीना (दुख को हरण करना): विष्णु के चित्र में लक्ष्मी द्वारा बुद्धि रूपी पांव और आंसू पीने की बात संगठन में दुख हरण करने और वाइब्रेशन से नई दुनिया बनाने की शक्ति को दर्शाती है।
    • संस्कार परिवर्तन:संस्कार परिवर्तन का कार्य”विष्णु द्वाराप्योरिटी की पावर”से होता है। यह संगठन की आंतरिक शुद्धि और मजबूती के लिए आवश्यक है।
    • नकारात्मकता से बचाव:
      • हियर नो इविल”: शिव बाबा के सिवाय कोई दूसरे की बातें सुननी नहीं है”। गलत बातों को सुनने से“100 गुना दंड चढ़ जाता है”। इसलिएकिनारा कर लेना चाहिए”
      • टॉक नो इविल”: गलत बातों काजवाब भी नहीं देना है”औरवाद विवाद छोड़ दो”। यह अनावश्यक संघर्ष और संगठन के भीतर मतभेदों से बचने के लिए महत्वपूर्ण है।
      • टाइम वेस्ट नहीं करना चाहिए”: वर्तमान समयपरीक्षा का टाइम”है, इसलिएकार्यम साधयामि देहं वा पातयामि”के संकल्प के साथ अपने कर्तव्य पर ध्यान देना चाहिए। यह दृढ़ संकल्प संगठन की प्रगति के लिए आवश्यक है।
  • दैवीय भूमिकाएँ संगठन में:
    • ब्रह्माद्वारासुनने सुनाने का कार्य”
    • शंकर (त्रिनेत्री)के द्वाराबुद्धि रूपी तीसरे नेत्र का समझने और समझाने का कार्य”
    • विष्णुद्वाराप्रैक्टिकल परिवर्तन का कार्य, संस्कार परिवर्तन का कार्य”। ये तीनों भूमिकाएँ संगठन के सुचारु संचालन और आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए आवश्यक हैं।

सारांश में, आध्यात्मिक विश्वविद्यालय संगठन में संगठन और यूनिटी केवल ढाँचागत या संख्यात्मक वृद्धि नहीं है, बल्किपवित्रता, धारणा, और एकनिष्ठ ज्ञान पर आधारित आंतरिक एकताहै। यह एकता हीनई दुनिया की “नई राजधानी”की नींव रखेगी, जो दुनिया में सबसे शक्तिशाली और स्थायी होगी। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आंतरिक शुद्धि, अलबेलेपन से बचना, और बाप के फरमानों का पालन करना आवश्यक है।

विनाश और स्थापना,aivv www.adhyatmikgyan.in

आध्यात्मिक विश्वविद्यालय संगठन के वृहत् संदर्भ मेंविनाश और स्थापनादो अत्यंत महत्वपूर्ण और परस्पर जुड़े हुए पहलू हैं, जो नई दुनिया के निर्माण की प्रक्रिया का अभिन्न अंग हैं। स्रोतों के अनुसार, ये दोनों प्रक्रियाएँ एक साथ चलती हैं, जहाँ पुरानी, पतित दुनिया का अंत होता है और एक नई, पवित्र दुनिया की नींव रखी जाती है।

यहाँ स्रोतों से प्राप्त जानकारी के मुख्य बिंदु दिए गए हैं:

  1. विनाश (Destruction):
  • भौतिक विनाश:यह प्रकृति के तामसी बनने और माया रावण के प्रभाव से होता है।
    • प्राकृतिक आपदाएँ:प्रकृति जब तामसी बनती है, तो पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि भी तामसी रूप धारण करते हैं। पृथ्वी बड़े-बड़े भूकंप लाती है जिसका उद्देश्य “सफाया करना” है।
    • मानव-निर्मित विनाश: “माया रावण के इशारे पर रावण संप्रदाय के बच्चे बम फोड़ना शुरू करते हैं” जैसे एटम बमों का विस्फोट, जिससे धरती हिलती है।
    • दैवीय अंत:यह “ड्रामा का अंत” है जो “शिव शक्ति अवतार” के निकलने से होता है।
  • आध्यात्मिक/नैतिक विनाश:
    • विभिचारी ज्ञान: “एक से ज्ञान सुनना चाहिए अनेकों से ज्ञान सुना तो विचारी ज्ञान हो जावेगा”। यह विभिचारी ज्ञान संगम युग में ही “शूटिंग” करता है और बाद के जन्मों में आत्माओं को दूसरे धर्मों में “कन्वर्ट” होने का कारण बनता है, जिससे भारतवासी आत्माओं की पवित्रता और मूल पहचान का विनाश होता है। यह “सद्गुरु निंदा” सुनने और “अल्टी-सल्टी बातें” सुनने से भी होता है, जिससे 100 गुना दंड चढ़ता है और आत्मा “नाफरमान बरदार” बनती है।
    • पुरानी राजाई का अंत:वर्तमान विश्व की शक्तिशाली राजधानियाँ (जैसे अमेरिका) अंत तक ईश्वरीय राजधानी से टक्कर लेंगी, लेकिन उनमें ईश्वरीय राजधानी जैसी यूनिटी नहीं होगी, जिससे “एक-एक करके सब मात खाते चले जावे” और उनकी राजाई का अंत होगा।
    • परमात्म प्रत्यक्षता बम”:यह सबसे बड़ा “बम” बताया गया है जिसे आस्तिक (भगवान को मानने वाले) फोड़ेंगे। यह संभवतः आध्यात्मिक ज्ञान की प्रत्यक्षता और सत्य की स्थापना से उत्पन्न होने वाला परिवर्तन है जो पुराने, झूठे विश्वासों और व्यवस्थाओं का विनाश करता है।
  1. स्थापना (Establishment):
  • नई दुनिया की नई राजधानी:आध्यात्मिक विश्वविद्यालय संगठन का उद्देश्य “ब्राह्मणों की दुनिया का ऐसा संगठन” बनाना है, जिसे “नई दुनिया की नई राजधानी” कहा जाएगा। यह “दुनिया की सबसे सशक्त राजधानी होगी” जिसकी “शोहरत दिन-ब-दिन बढ़ती जावेगी”। इस राजधानी में “कोई भिखारी पांव भी नहीं रख सकेगा”, जो इसकी पवित्रता और आत्म-निर्भरता को दर्शाता है।
  • पवित्रता और यूनिटी पर आधारित:
    • नई राजधानी की स्थापना का आधार “प्योरिटी से प्रैक्टिकल प्योरिटी से यूनिटी” है।
    • भारत की “कन्याएं माताएं रूपी धरणी” (जिन्हें असली गौएं और सती कहा गया है जो पवित्रता को धारण करती हैं) ही “नई दुनिया की स्थापना करने के लिए” और “नई दुनिया रूपी स्वर्ग का गेट खोलने के लिए निमित्त” बनती हैं।
    • यह “शहद की मक्खियों” के संगठन जैसा होगा जहाँ “एक रानी के आर्डर पर पूरा छत्ता चलता है” और “एकदम पक्की यूनिटी होती है”, जो पवित्रता से आती है।
  • आध्यात्मिक विश्वविद्यालय संगठन की भूमिका:
    • संगठन “राजधानी स्थापन करने वाली धारणा शक्ति” का निर्माण करता है।
    • त्रिमूर्ति की भूमिकाएँ:ब्रह्मा “सुनने सुनाने का कार्य” करते हैं, शंकर “बुद्धि रूपी तीसरे नेत्र का समझने और समझाने का कार्य” करते हैं, और विष्णु “प्रैक्टिकल परिवर्तन का कार्य, संस्कार परिवर्तन का कार्य” करते हैं। विष्णु का “संस्कार परिवर्तन का कार्य” “प्योरिटी की पावर” से होता है, जो स्थापना का मूल आधार है।
    • वाइब्रेशन से नई दुनिया का निर्माण: “वाइब्रेशन से नई दुनिया बनती है”। जैसे मोरनी मोर के ज्ञान डांस में भरे दुख के वाइब्रेशन को पीकर राधा कृष्ण जैसे बच्चों को जन्म देती है, उसी प्रकार पवित्र वाइब्रेशन से नई दुनिया बनती है। विष्णु के चित्र में लक्ष्मी द्वारा बुद्धि रूपी पांव और आंसू पीने की बात भी “दुख को हरण करने वाली” वाइब्रेशन को दर्शाती है।
  • महत्वपूर्ण गुण:संगठन की स्थापना के लिए बच्चों में “धारणा शक्ति”, “अलबेलेपन” से बचना और “कार्यम साधयामि देहं वा पातयामि” (काम करके छोड़ेंगे या देह छोड़ेंगे) जैसा दृढ़ संकल्प आवश्यक है।
  1. विनाश और स्थापना का संबंध:
  • सहवर्ती प्रक्रिया:स्रोतों में स्पष्ट रूप से कहा गया है किस्थापना के साथ ही साथ विनाश जुड़ा हुआ है”। यह “यज्ञ के आद” में भी देखा गया था जहाँ “स्थापना के साथ-साथ विनाश ज्वाला भी प्रज्वलित हुई थी”। इसका अर्थ है कि पुरानी, पतित दुनिया का अंत और नई, पवित्र दुनिया का उदय एक ही समय में होता है, जैसे रात्रि के बाद दिन आता है।
  • कारण और प्रभाव:नई दुनिया की ईश्वरीय राजधानी में जो अभूतपूर्व यूनिटी और पवित्रता होगी, वही अन्य सभी राजधानियों के विनाश का कारण बनेगी, क्योंकि वे इस शक्ति का सामना नहीं कर पाएंगी। इस प्रकार, स्थापना की शक्ति ही विनाश को प्रेरित करती है।

संक्षेप में, आध्यात्मिक विश्वविद्यालय संगठन का लक्ष्य केवल एक भौतिक संस्था बनाना नहीं है, बल्किपवित्रता, धारणा और एकनिष्ठ ज्ञान पर आधारित एक ऐसी आंतरिक और बाह्य “नई राजधानी” (स्वर्गीय दुनिया) की स्थापना करना है, जो वर्तमान पतित दुनिया के विनाश के साथ-साथ होगी। यह विनाश न केवल भौतिक आपदाओं और युद्धों के रूप में होगा, बल्कि आध्यात्मिक रूप से कमजोर और विभिचारी ज्ञान से दूषित व्यवस्थाओं और आत्माओं का भी अंत होगा। संगठन की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसके सदस्य स्वयं को कितना शुद्ध, एकजुट और बाप के फरमानों के प्रति समर्पित रखते हैं।

Practical Knowledge,aivv www.adhyatmikgyan.in

आध्यात्मिक विश्वविद्यालय संगठन के सन्दर्भ में “व्यवहारिक ज्ञान” का तात्पर्य केवल सैद्धांतिक समझ से नहीं, बल्किज्ञान को अपने जीवन में व्यावहारिक रूप से धारण करने और कार्यों में उतारनेसे है। स्रोत इस बात पर जोर देते हैं कि इस संगठन की सफलता और नई दुनिया की स्थापना के लिए यह व्यावहारिक पक्ष अत्यंत महत्वपूर्ण है।

यहाँ व्यवहारिक ज्ञान के प्रमुख पहलू दिए गए हैं:

  • धारणा की प्रधानता: सूत्रों में स्पष्ट किया गया है कि केवल ज्ञान अच्छा कहने या सुनने से कुछ नहीं होता, बल्किज्ञानदाता में धारणादिखाई देनी चाहिए। दुनिया ज्ञान को नहीं, बल्किव्यावहारिक धारणाको पकड़ती है। यह व्यावहारिक धारणा ही वह शक्ति है जो राजधानी (नई दुनिया) की स्थापना करेगी।
  • शुद्धता (पवित्रता) और एकता (यूनिटी): व्यवहारिक ज्ञान का एक मुख्य आधारपवित्रता को धारण करनाहै। भारतीय कन्याएं और माताएं जो अपने जीवन मेंधर्म की धारणाओं को व्यावहारिक रूप में धारण करती हैं, वे ही नई दुनिया रूपी स्वर्ग का द्वार खोलने का निमित्त बनती हैं।एकता (यूनिटी) पवित्रता से आती है। ब्राह्मणों की दुनिया का संगठन तभी सशक्त होगा और नई दुनिया की राजधानी कहलाएगा, जब उसमें राजा कीव्यावहारिक पवित्रता से उत्पन्न धारणा शक्तिहोगी।
  • क्रियान्वयन बनाम केवल प्रचार: संगठन मेंसुनने-सुनाने का कार्य, समझने-समझाने का कार्य, औरसंस्कार परिवर्तन का व्यावहारिक कार्यसभी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन केवल भाग-दौड़, शोर-शराबा, प्रोजेक्ट दिखाना, प्रदर्शनियां लगाना या कॉन्फ्रेंस करना, जैसा कि ब्रह्मा कुमार/कुमारियों ने किया, उनसे एकता नहीं बन रही है, बल्कि बिगड़ती जा रही है। इससे पता चलता है कि बाहरी गतिविधियों के बजायआंतरिक और व्यावहारिक परिवर्तनपर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है।
  • सतीत्व की शक्ति और दुःख का हरण: भारतीय गौएं (कन्याएं/माताएं) जोपवित्रता धारण करती हैंऔर एक पति परमेश्वर को मानती हैं, उन्हें सती कहा जाता है।सत्य और सती में इतनी शक्ति होती हैकि वे दुःख को हरण कर लेती हैं। यह व्यावहारिक पवित्रता की शक्ति का प्रत्यक्ष उदाहरण है।
  • व्यवहारिक आचरण के नियम: “हियर नो इविल” (बुरी बातें न सुनो) और “टॉक नो इविल” (बुरी बातें न बोलो) जैसे निर्देश सिर्फ सुनने के लिए नहीं हैं, बल्किव्यावहारिक रूप से उनका पालन करनाहै। फालतू बातें सुनना या उनका जवाब देनानाफरमान बच्चेका लक्षण है और इससे 100 गुना दंड चढ़ता है। इसका अर्थ है कि संगठन के सदस्यों कोअनुशासित और शुद्ध आचरणका पालन करना चाहिए।
  • कार्य करके दिखाना: केवल बातें बनाना नहीं, बल्किकार्य करके दिखानामहत्वपूर्ण है। जैसे शिवाजी का नारा था “कार्यम् साधयामि देहं वा पातयामि” (कार्य सिद्ध करूँगा या देह त्याग दूँगा), उसी तरह शिव बाबा के कार्य को पूरा करने के लिएव्यावहारिक कर्मठताआवश्यक है।
  • अलबेलेपन से बचना: विजयमाला का आह्वान करने के बादअलबेलेपन (लापरवाही) में न सो जानामहत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे माया प्रकृति को मजबूत कर सकती है। यह निरंतरजागरूक और सक्रिय रहनेका व्यावहारिक निर्देश है।
  • परमात्म प्रत्यक्षता बम: यहआस्तिकों द्वारा फोड़ा जाने वाला सबसे बड़ा बमबताया गया है। इसका अर्थ यह है कि परमात्मा की प्रत्यक्षता या शक्ति का प्रकटीकरण भक्तों कीव्यावहारिक निष्ठा, पवित्रता और एकताके माध्यम से होगा।

कुल मिलाकर, आध्यात्मिक विश्वविद्यालय संगठन में “व्यवहारिक ज्ञान” का अर्थ हैज्ञान को अपने जीवन में पूरी तरह से आत्मसात करना और उसे अपने आचरण, संबंधों और संगठन की संरचना में प्रकट करना, जिससे पवित्रता, एकता और नई दुनिया की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हो सके।

Related post

अमृतवेले का महत्त्व- Adhyatmik Gyan

अमृतवेले का महत्त्व- Adhyatmik Gyan

अमृतवेला: महत्त्व और लाभ यह मार्गदर्शिका अमृतवेला के महत्व, लाभों और अभ्यास को समझने के लिए बनाई गई है, जैसा कि…
संगठन क्लास 08.06.2025 | VCD 2416 |आत्मा का उत्थान | विचार सागर मंथन | Questions Answer | Adhyatmik Gyan

संगठन क्लास 08.06.2025 | VCD 2416 |आत्मा का उत्थान…

आध्यात्मिक विश्वविद्यालय संगठन: अध्ययन मार्गदर्शिका यह अध्ययन मार्गदर्शिका “AIVV संगठन क्लास 08.06.2025 | VCD 2416” स्रोत सामग्री की आपकी समझ की…
रूहानी मिलिट्री l Ruhani Military l रूहानी मिलिट्री के योद्धा कैसे बनें? -आध्यात्मिक ज्ञान

रूहानी मिलिट्री l Ruhani Military l रूहानी मिलिट्री के…

रूहानी मिलिट्री ✨ रूहानी मिलिट्री अलर्ट! – एक गहन विश्लेषण भूमिका: रूहानी मिलिट्री का यह संदेश केवल एक उपमा नहीं, बल्कि…