चित्र का परिचय | ल.ना. और राधा-कृष्ण में संबंध | आध्यत्मिक ज्ञान | 7 Day Course

चित्र का परिचय | ल.ना. और राधा-कृष्ण में संबंध | आध्यत्मिक ज्ञान | 7 Day Course

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  • 17 June 2023
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चित्र का परिचय

      आज के समस्याओं भरे युग में मनुष्य को अपने जीवन के लक्ष्य का पता नहीं है। वैज्ञानिक आविष्कारों के चलते मनुष्य ने कल्पनातीत प्रगति की है; लेकिन फिर भी वह सन्तुष्ट नहीं है। आधुनिक शिक्षा मानव को डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, वैज्ञानिक, नेता या व्यापारी तो बना देती है; किन्तु उसे सच्ची एवं स्थायी सुख-शान्ति की प्राप्ति नहीं करा सकती। अल्पकालिक सुख-शान्ति पाने की जल्दबाज़ी में मनुष्य या तो विषय विकारों में फँस जाता है या फिर भौतिक सुखों से विरक्त होकर संन्यासी बन जाता है; किन्तु सच्ची सुख-शान्ति, न तो विषय विकारों से और न ही संन्यास से प्राप्त होती है। वह तो केवल गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए, ईश्वरीय ज्ञान एवं राजयोग द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है। इसी सच्ची सुख-शांति एवं पवित्रता से परिपूर्ण जीवन का प्रतिनिधित्व करने वाले श्री लक्ष्मी और श्री नारायण एवं उनकी दिव्य रचना को ही इस चित्र में चित्रित किया गया है। दादा लेखराज ब्रह्मा द्वारा दिव्य साक्षात्कारों के आधार पर बनवाए गए चार मुख्य चित्रों में यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र भी शामिल है। इस चित्र में वर्तमान मनुष्य-जीवन के लक्ष्य अर्थात् ‘नर से नारायण और नारी से लक्ष्मी’ को चित्रित किया गया है।

लक्ष्मी-नारायण, 7 Day Course

      दिव्य साक्षात्कार के आधार से बनवाये गये 4 मुख्य चित्रों में से यह ल.ना. का पुराना चित्र भी बाबा के समय में बनाया गया है। इसका प्रमाण यह है कि साक्षात्कार से जो मुख्य चार चित्र बनाये गये हैं उनमें पहले वाले पुराने दो चित्रों त्रिमूर्ति और कल्पवृक्ष में सिर्फ ब्रहमाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय लिखा है और सन् 1965/66 में बने दो चित्रों-लक्ष्मी-नारायणसीढ़ी में ‘प्रजापिता’ शब्द एड कर दिया गया है। क्योंकि बाबा ने मुरली में कहा है-

      ब्रह्माकुमारियों के आगे प्रजापिता अक्षर जरूर लिखना है। प्रजापिता कहने से बाप सिद्ध हो जाता है। (मु. 7.9.77 पृ.2 आदि) 

     मुरलियों के महावाक्यों से यह बात स्पष्ट रूप से सिद्ध होती है कि हम ब्राह्मण सिर्फ ब्रह्मा माँ के ही बच्चे नहीं है, बल्कि हमारा बाप भी है- प्रजापिता हम माता-पिता दोनों की संतान हैं। इस चित्र का साइज है- 30×40″ । ल.ना. के चित्र का उल्लेख करते हुए बाबा ने मुरली में कहा है- 

लक्ष्मी-नारायण का चित्र बहुत अच्छा है। इनमें सारा सेट है। त्रिमूर्ति भी, लक्ष्मी-नारायण भी, राधे-कृष्ण भी हैं। यह चित्र भी कोई रोज़ देखता रहे तो याद रहे शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा हमको यह बना रहे हैं।” (मु. 7.8.65 पृ.2 अंत)

 • “अपना एम ऑब्जेक्ट देखने से ही रिफ्रेशमेंट आ जाती है, → इसलिए बाबा कहते हैं कि यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र हरेक के पास होना चाहिए। यह चित्र दिल में प्यार बढ़ाता है।” (मु. 11.1.66 पृ.3 आदि) 

• “सभी के पर में यह ल. ना. का चित्र जरूर होना चाहिए। कितना एक्युरेट चित्र है। इनको याद करेंगे तो बाबा याद आवेगा। बाबा को याद करो तो यह याद आवेगा।” (मु. 1.1.69 पृ.3 आदि) 

• “बाबा कहते हैं जब भी फुर्सत मिले तो ल.ना. के चित्र सामने आकर बैठो। रात को भी यहाँ आकर सो सकते हो इन ल. ना. को देखते-2 सो जाओ।” (मु. 20.1.74 पृ.2 अंत)

ल.ना. और राधा-कृष्ण में संबंध

    लक्ष्मी-नारायण के चित्र में साधारणतया यह समझानी दी जाती थी कि राधा- कृष्ण ही बड़े होकर ल. ना. बनेंगे। जबकि इस चित्र में जो चित्रण है उसका अर्थ यह नहीं निकलता है कि राधा-कृष्ण बड़े होकर ये ल. ना. बनेंगे, बल्कि इस चित्र का सही अर्थ यह निकलता है कि जो बीच में छपे हुए ल.ना. है और रा.कृ. का जो चित्र नीचे दिया हुआ है इनका रचयिता और रचना का सम्बन्ध है। ल.ना. रचयिता ऊपर बीच में खड़े हुए दिखाये गए हैं। रचयिता माना माँ-बाप और रा.फू. बच्चे, इनकी रचना जो सतयुग में जन्म लेंगे वो नीचे दिखाए गए हैं। बाचा मुरली में अक्सर प्रश्न भी पूछते – लक्ष्मी-नारायण का राधा-कृष्ण से क्या सम्बन्ध है?”

• राधे-कृष्ण साथ फिर ल.ना. का क्या संबंध है, यह बाप ही आकर समझाते हैं। (मु. 29.4.71 पृ.1 मध्य) 

• कृष्ण का तो जब स्वयंवर होता है, नाम ही बदल जाता है। हो, ऐसे कहेंगे लक्ष्मी-नारायण के बच्चे थे। राधे-कृष्ण ही स्वयंवर बाद लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। तब एक बच्चा होता है। फिर उनकी डीनायस्टी चलती है। (मु. 16.8.70 पृ.1 मध्य) 

•जब बाबा मुरली में कहीं-2 सम्बन्ध पूछते हैं तो इससे साबित होता है कि ये रा. कृ. और ल.ना. दी सेम  सोल्स तो नहीं हैं। सम्बंध है तो जरूर वो आत्माएँ कोई सम्बंध में जुड़ी हुई है। माँ-बाप का और बच्चे का सम्बन्ध है। “ल.ना. के चित्र के साथ राधे-कृष्ण भी हो तो समझाने में सहज होगा। यह है करेक्ट चित्र। इसकी लिखत भी बड़ी अच्छी है।” (मु. 2.1.73 पृ.3 अंत) 

“ल.ना. के फीचर्स बदलने नहीं चाहिए। नहीं तो कहेंगे इतने होते है क्या फीचर्स एक ही होनी चाहिए।” (मु. 24.2.73 पृ.3 मध्य )

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