
श्रीमद्भगवद्गीता | अध्याय 1- श्लोक 12 से 19 तक | दोनों सेनाओं की शंख-ध्वनि का कथन | AdhyatmikGyan
- एडवांस श्रीमद्भगवद्गीता
- 27 June 2023
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Toggleतस्य सञ्जनयन् हर्ष कुरुवृद्धः पितामहः। सिंहनादं विनद्य उच्चैः शङ्खं दध्मौ प्रतापवान्।। 1/12
अर्थात –उस दुर्योधन को हर्ष उत्पन्न कराते हुए, कौरवों में वयोवृद्ध, {कायरों के ब्रह्मचर्य में सम्माननीय } {व} प्रतापी माने जाने वाले पितामह भीष्म ने {लाउडस्पीकरों की आवाज़ द्वारा ज्ञान-सूर्य के अखूट, अखंड ज्ञान-प्रकाश को ढकने वाले बादलों-जैसा} जोर से गरजकर, {हिंसक/खूंखार} {जानवरों की दुनिया में बबर} शेर-जैसी गुंजायमान दहाड़ मारते हुए, {सारी दुनिया के झूठे जगद्गुरु के अपने नशे में} {आदि शंकराचार्य कृत ‘भगवान सर्वव्यापी’ की 12-14 सौ वर्षीय दीर्घकालीन अज्ञानता का मुख रूपी} शंख बजाया।
श्लोक से संबंधित मुरली के महावाक्य
• सभी से बड़े-ते-बड़े असुर हैं संन्यासी, जो कहते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है। (जबकि भगवान तो एक होता है।) (मुरली तारीख 7.1.71 पृ.3 अंत)
• साधु-संत आदि सभी पतित भ्रष्टाचारी हैं। सभी से जास्ती हमारी (शिव+ब्रह्मा की) ग्लानि करते हैं। जो कहते हैं- परमात्मा सर्वव्यापी है। (मुरली तारीख 1.1.73 पृ.3 अंत)
• तुम अभी कांटों से फूल बनते हो। संन्यासी ऐसे नहीं कहेंगे यह (दुःखदाई) काँटा है। वह तो कहते हैं परमात्मा सर्वव्यापी है। सभी भगवान के रूप हैं। (मुरली तारीख 12.2.69 पृ.1 मध्यांत)
• सारी दुनिया में सभी के मुख से गंद ही निकलता है। सबसे बड़ा गंद संन्यासियों के मुख से निकलता तो कहते ईश्वर सर्वव्यापी है। कितनी गाली देते हैं (बेहद के) बाप को। भगवान को कच्छ-मच्छ अवतार कह देते। कितना गंद निकालते हैं। इसलिए इनका हिरण्यकश्यप आदि नाम रखा है। (मुरली तारीख 30.1.70 पृ.3 अंत)
• यह है इन सन्यासियों का मिथ्या ज्ञान। परमपिता. से सबको बेमुख कर देते हैं। को ही 84 लाख योनियों में ले गए हैं। इनको कहा जाता है धर्म ग्लानि । इन्होंने ही भारत को दुब्बण में फँसा दिया है। एक (सर्वव्यापी की) ही बात में सारी दुनिया निधणकी बन गई है। वह कौन-सी बात? ईश्वर सर्वव्यापी है, और फिर संन्यासी कहते शिवोहम्, ब्रह्मोहम्। उन्हों को कहा जाता है निधणके। (मुरली तारीख 15.1.58 पृ.2 आदि)
अध्याय -1/12 ( श्लोक उच्चारण )
शब्दार्थ सहित विस्तृत हिंदी व्याख्या
ततः शङ्खाश्च भैर्यश्च पणवानकगोमुखाः । सहसा एव अभ्यहन्यन्त स शब्दः तुमुलः अभवत्।। 1/13
अर्थात – तब { तो बाद में अनेक प्रकार के तुण्डे-2 मतिर्भिन्ना, छोटे-बड़े-मध्यम मुखों वाले ज्ञान) – शंख और भेरियाँ । ढोल, नगाड़े और {जैसे ज्ञान-अज्ञान के बाजे, समाचार-पत्र-पत्रिकाएँ, रेडियो} रणसिंघा {चैनल्स आदि मीडिया, समाज और सरकार के लोगों की बड़ी बुलंद आवाज़े}अचानक ही होने लगीं। उन {सब} का बड़ा भारी शोरगुल होने लगा।
श्लोक से संबंधित मुरली के महावाक्य
● मीडिया से माया का घोर अंधकार फैल जाता है इस दुनिया में घोर पसारा। अरे! सब झूठ बोलने लग पड़ते हैं। ब्रह्माकुमार-कुमारी अपन को कहते हैं- हम ब्रह्मा के वत्स हैं और वो सरकार के नुमाइंदे, वो भी कहते हैं- अरे! हम तो कन्ट्रोल करते हैं सारे भारत को और उनकी भी बुद्धि खराब करने वाले ये मीडिया के लोग, ये अखबार, ये टी.वी चैनल्स, ये इन्टरनेट ये सब झूठ बोलने लग पड़ते हैं। ऐसा ये रावण का राज्य शुरू होता है। (वी.सी.डी. 3420)
• बहुत ग्लानि की बात आती है और वो ग्लानि है वो सुन करके एक दम फां हो जाते हैं। कौन? भारतवासी या विदेशी ? भारतवासी फां हो जाते हैं। तो ये जो बॉम्बस बनाते हैं ग्लानि के, व्यभिचार (-दोष) की ग्लानि सबसे बड़ी ग्लानि हुई ना भारतियों के हिसाब से। समझा ना? तो ये बॉम्बस हैं बेहद के ब्राह्मणों की दुनिया में, ग्लानि के बॉम्बस, किसकी ग्लानि ? ऊँच-ते-ऊँच पार्टधारी जो विश्वपिता है (वी.सी.डी. 2854)
अध्याय -1/13 ( श्लोक उच्चारण )
शब्दार्थ सहित विस्तृत हिंदी व्याख्या
ततः श्वेतैः हयैः युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ । माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शंखौ प्रदध्मतुः ।। 1/14
अर्थात –तब {4 मलविहीन} श्वेताश्चों के मनरूप संगठित चतुर्मुखी ब्रह्मा} से युक्त (अर्जुन के} महान {मुकर्रर शरीर रूपी) रथ में बैठे हुए माता पार्वती-पति {शिवबाबा}और {पांडु रूप पंडा के पुत्र } पाण्डव अर्जुन ने भी अपने दिव्य (ईश्वरीय वाणी बोलने वाले मुख रूपी} शंख बजाए।
श्लोक से संबंधित मुरली के महावाक्य
• इस (ब्रह्मा) में तो है (साकार-निराकार के मेल) बाबा की प्रवेशता। इनको अर्जुन रथ कहते हैं। (मुरली तारीख 2.3.89 पृ.2 आदि)
• इस रथ में (शिव) बाबा रथी बन हमको शिक्षा दे रहे हैं बाकी घोड़े-गाड़ी आदि की बात नहीं है। बाप बच्चों का (सारथी) सर्वेंट है। सर्वेंट तो आगे बैठेगा ना। (मुरली तारीख 15.11.73 पृ.3 अंत)
• यह (शंख रूपी) मुख की बात है। इससे तुम ज्ञान शंख बजाते हो। (मुरली तारीख 15.6.72 पृ.1 अंत)
• बाप यह (मुख की) शंख-ध्वनि करते रहते हैं। उन्होंने फिर भक्तिमार्ग में वह शंख और तुतारे आदि बैठ बनाये हैं। बाप तो इस मुख द्वारा समझाते हैं। (मुरली तारीख 7.11.70 पृ.3 अंत)
● शिव बाबा भी कहते हैं ब्रह्मा द्वारा तुमको अभी अच्छे-2 ज्ञान गोले दे रहा हूँ। मनुष्यों को अच्छी तरह से शंख ध्वनि करो। गीता का पार्ट फिर से बज रहा है और हेविनली (गाड फादर द्वारा) किंगडम स्थापन हो रही है। (मुरली तारीख 16.10.72 पृ.1 आदि)
• पांडवों का स्वयं परमात्मा सारथी था। (मुरली तारीख 20.2.71 पृ4 आदि)
(2017-2018 में ग्लानि की रण-भेरियाँ सुनकर बच्चे तो लोकलाज में आकर ज्ञान सुनाना बंद करने लगते हैं; परन्तु विरोधी दल के द्वारा लगातार मीडिया में हो रही धुँआधार ग्लानि के उत्तर में शिवबाबा ज्ञान सुनाते हैं इसलिए पांडव सेना में पहला शंख सारथी भगवान् और रथी अर्जुन ने साथ-2 बजाया उसके बाद नंबर (वार) महारथी बच्चे बजाते हैं।)
अध्याय -1/14 ( श्लोक उच्चारण )
शब्दार्थ सहित विस्तृत हिंदी व्याख्या
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः। पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः ॥ 1/15
अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः । नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ।।1/16
अर्थात – {धरणी माँ के साथ अन्य गौ रूपा} इन्द्रियों के स्वामी {अमोघवीर्य} शिवबाबा ने {पंचजन/पंचमुखी ब्रह्मा से पांचजन्य, {सच्ची गीता-} ज्ञानधनजेता {होने से योगबल द्वारा विश्वविजेता अर्जुन ने इंद्रदेव-प्रदत्त देवदत्त {नामक, } {सैकड़ों धुरंधर कौरवों-कीचकों-राक्षसों के अकेले हत्यारे} भयंकर कर्म करने वाले {सर्वभक्षी खदूस} भेड़िया समान पेट वाले भीम ने {संसार रूपी जंगल में महाविनाशकारी व्याघ्र की दहाड़ में} {पुण्डरीक-चिह्नित} पौण्ड्र नामक महाशंख, कुंती माता के पुत्र {जो अहिंसावादी धर्मयोद्धा थे, उन} {सदा ही सत्यवादी मुख वाले} राजा युधिष्ठिर ने {सत्य का सदा विजयदाता} अनन्तविजय,{महाविषैले व्यभिचारी वृष्णिवंशी विदेशियों प्रति न्यौला-जैसे} न+कुल ने {जो विश्व में न देशी या विदेशी रहे; किंतु विदेशी धर्माधीशों के मनरूप अवों का वशकर्ता तथा गजगोर समान घोषणा-जैसा} सुघोष और {नानक नामके सिक्ख संप्रदाय में सदा देवात्माओं के सहयोगी ह्यूमन गौशाला रक्षक} सहदेव ने {ज्योतिर्मय आत्मा रूपी मणि जैसी गुरुद्वारी वाणी बोलने वाला मुख रूपी) मणिपुष्पक शंख बजाए ।
श्लोक से संबंधित मुरली के महावाक्य
• महाभारी महाभारत युद्ध हुआ तो महारथियों ने पहले-2 क्या किया? शंख बजाए। अभी भी जो बड़े-2 महारथी हैं, वो क्या कर रहे हैं? जितना जास्ती शंख बजाते जाते हैं, उतना महाभारत का फील्ड भी तैयार होता जाता है। (वी.सी.डी. 1542)
• आत्मा को समझ है कि मेरे में ज्ञान शंख ध्वनि करने की अच्छी ताकत है। हम शंख ध्वनि कर सकते हैं। कोई कहते हैं मैं शंखध्वनि नहीं कर सकता हूँ। बाप कहते हैं ज्ञान की शंखध्वनि करने वाले मुझे अति प्रिय हैं। मेरा परिचय भी ज्ञान से देंगे। (मुरली तारीख 21.10.73 पृ.3 मध्य)
• तुम सब ज्ञान के स्पीकर हो । (मुरली तारीख 2.3.89 पृ.2 मध्य)
• यह सारा ज्ञान तुम्हारी बुद्धि में आ गया है। इसलिए स्वदर्शन-चक्र भी तुमको दिया है। शंख भी तुम्हारा है। यह है मुख से ज्ञान सुनाने की बात। ज्ञान का शंख बजाते हो। (मुरली तारीख 26.7.71 पृ.2 मध्य)
अध्याय -1/15 ( श्लोक उच्चारण )
अध्याय -1/16 ( श्लोक उच्चारण )
शब्दार्थ सहित विस्तृत हिंदी व्याख्या
काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः। धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः ।। 1/17
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते। सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान् दध्मुः पृथक्पृथक्।। 1/18
अर्थात –{दैहिक पुरुषार्थ रूपी} महान {शरीर का} धनुष धारण करने वाले काशी के काशिराज ने और {ऐसे ही} {हाथी-जैसी देहांकारी महाकाली रूपा} महारथी {चोटी की बीजरूपा ब्राह्मणी सो रुद्राणी जगत्-अम्बा रूपी} {द्रुपदपुत्री} शिखण्डी ने एवं {ढीठ और बदला लेने के दृढ़ निश्चयी, निर्लज्ज पांडवी सेनापति} धृष्टद्युम्न ने, {प्रवृत्ति की यादगार विष्णुरूप जैसा} विराट एवं {किसी से कभी भी पराजित न होने वाला} अपराजित, {सदा सत्य के साथी} सात्यकि ने तथा {निश्चित ही ध्रुव पद पाने वाला कांपिल्य नगर का राजा, जो भूल से मित्रद्रोही भी था, उस} द्रुपद ने और द्रौपदी के {सूर्य’ + चन्द्र’ और बौद्धी’, संन्यासी’ व सिक्ख रूप } पाँचों पुत्रों ने एवं {पांडवों का अतिप्रिय} महाबाहु सुभद्रापुत्र {जो अपने मामा, वैसे ही अलौकिक बाप को लेकर बड़ा धुरंधर देह-अभिमानी था- ऐसे अभिमन्यु ने, हे धरणीश्वर! चारों ओर {फैली हुई दिशाओं के {एडवांस ब्राह्मणों ने} अलग-2 {प्रकार के ईश्वरीय एडवांस गीताज्ञान के सनसनी भरे मुख रूपी} शंख बजाए।
श्लोक से संबंधित मुरली के महावाक्य
• बड़ी-बड़ी, अच्छी-अच्छी शंखध्वनि कौन करे? तो ज़रूर जो महारथी होंगे, जिनकी शेर पर सवारी होगी, हाथियों पर सवारी होगी, वो गजगोर करेंगे। (साकार मुरली तारीख 8.9.64)
• बाप बना रहे हैं हमको फिर सो श्रेष्ठाचारी। तो तुम भी ऐसे शंखध्वनि करो। अच्छे-अच्छे जो महारथी लोग हैं नम्बरवार तो हैं ही। (साकार मुरली तारीख 8.9.64)
• धृष्टद्युम्न-वो भी (काम्पिल्य नगर के ज्ञान-) यज्ञ कुण्ड से पैदा होता है। पाण्डवों की सेना का सेनापति गाया जाता है। बाबा भी कहते हैं- तुम बच्चों की है रूहानी मिलेट्री। अण्डरग्राउण्ड गुप्त वारियर्स हो। ये रूहानी मिलेट्री का मार्शल कौन है? शंकर है सेनापति। (वार्तालाप 1041)
• विराट विष्णु के लिए बोला है। विष्णु ही विराट रूप धारण करता है। (वार्तालाप 1445)
• शिखंडी पार्ट किसका है? जगदम्बा का पार्ट है, तो जो जगदम्बा है वो बाण चलाती है या नहीं चलाती है? ज्ञान बाण चलाती है और वो ज्ञान बाण चलाने में किसके इशारे पर काम करती है? कन्याओं के द्वारा बाण मरवाए। बाण किसको मरवाए? बड़े-2 ऋषियों-मुनियों, संन्यासियों को, भीष्मपितामह जैसे संन्यासियों को बाण मरवाए। तो जो बाण मारने का काम है, वो छोटी-2 कन्याओं का है, इसलिए जगदम्बा की छोटी मूर्ति बनाते हैं और यादगार मंदिर भी छोटा बनाते हैं। (वार्तालाप 1789)
अध्याय -1/17, 18 ( श्लोक उच्चारण )
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स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्। नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन्।।1/19
उस {बुलंद ज्ञान-} घोष से आकाश’ और ‘पृथ्वी को जोर से गुँजाते हुए {ज्ञान-घोष होने लगा} और {पूँजीवादी} धृतराष्ट्र के पुत्रों {महाभोगवादी काँग्रेसी-कौरव नेताओं के {कमज़ोरियों से भरे हुए } हृदय ही विदीर्ण हो गए। {और इसीलिए ढेरों कौरवों के हार्टफेल हो गए।}
श्लोक से संबंधित मुरली के महावाक्य
{ रेडियोज़, टेपरिकॉर्ड्स, टी.वीज़, लाउडस्पीकर्स आदि का पृथ्वी में फैला वाद्य-घोष} ‘{आकाशवाणी केंद्र और वेबसाइट्स}
• सच जब निकलता है तो झूठ सामना करते हैं।…तुम (पांडव) किसको सच बताते हो तो (कौरवों
को) जैसे मिर्ची हो लगती है। (मुरली तारीख 9.5.73 पृ.3 अन्त)
अध्याय -1/19 ( श्लोक उच्चारण )
शब्दार्थ सहित विस्तृत हिंदी व्याख्या
upcoming