संगठन क्लास – 23.07.2023 | Vcd 513 | मुरली ता. 16.05.1967 | आध्यात्मिक विश्वविद्यालय AIVV sangthan class vcd 513

संगठन क्लास – 23.07.2023 | Vcd 513 | मुरली ता. 16.05.1967 | आध्यात्मिक विश्वविद्यालय AIVV sangthan class vcd 513

संगठन क्लास – 23.07.2023 | Vcd 513 | मुरली ता. 16.05.1967

हेविन में जाने वाले को कहा जाता है पवित्र! क्या? किसको पवित्र कहा जाता है?

 जो स्वय स्थिति में जाने का इच्छुक हो जाता है उसको कहेंगे कहां जाने का इच्छुक हैं? स्वर्ग में जाने का इच्छुक। और जो देह और देह के संबंधों में ही पड़ा रहता है स्वय स्थिति में आता ही नहीं तो कहां जाने का इच्छुक हैं? नरक में जाने का इच्छुक हैं। हेल में जाने को अपवित्र कहा जाता है। चाहे मन से हेल में जाए चाहे तन से हेल में जाए तन की इन्द्रियों से हेल अथवा नरक में जाए तो पवित्र है या अपवित्र हैं? उसको कहेंगे अपवित्र। गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए भी तुम बुद्धि योग से हेविन की तरफ जाते हैं जानते हो इस कलयुगी नारकीय दुनिया में गृहस्थ व्यवहार किचड़ की दुनिया हैं नारकीय दुनिया हैं! किसकी बनाई हुई दुनिया हैं? नर मनुष्य की दुनिया हैं। मनुष्य जो कुछ करता है जो कुछ बनाता है वो सब दुखदाई बनाता है। नर बनाता है नरक और जो सदाकाल स्वय स्थिति में रहने वाला है कौन? सदाशिव वो स्वर्ग बनाने वाला है।
-मु.ता.16.05.1967 VCD-513

VCD 513

हंस बगुले इकठ्ठे रह नहीं सकते।

समझों! घर में बाप का बुद्धियोग हेवीन की तरफ हैं और बच्चे का बुद्धि योग नरक की तरफ हैं तो दोनों एक घर में कैसे रह सकेंगे! एक हंस और एक बगुला! हंस बगुले इकठ्ठे रह नहीं सकते। इस दुनिया में भी भगवान के बच्चे तो सब हैं सारी दुनिया किसके बच्चे हैं भगवान के बच्चे हैं। कुछ बच्चों की बुद्धि मे समाया हुआ है हम कल स्वर्ग में जावेंगे उनका बुद्धि योग किस तरफ हैं? स्वर्ग की तरफ हैं जिनकी बुद्धि में भगवान की देन ज्ञान बैठ गया वो तो समझते हैं कि हमें अब स्वर्ग में जाना है इस नरक की दुनिया को लात मारना हैं तो उनका बुद्धि योग है स्वर्ग की तरफ। भल मुठ्ठी भर बच्चे हैं और बाकी दुनिया का बुद्धि योग कहाँ है? नरक की तरफ। कोई यहीं इसी दुनिया को स्वर्ग बनाना चाहते हैं तो बाप कहते हैं बच्चे अब इस नारकीय दुनिया को बुद्धि योग से सदा के लिए लात मारों! क्या? याद ही न करों। बच्चे होंगे तो जरूर लात मारेंगे अगर भगवान के कच्चे बच्चे होंगे रावण की तरफ जिनका बुद्धि योग ज्यादा होगा या रावण की पाला में बार बार प्रवेश कर जाते हैं तो उनका बुद्धि योग स्वर्ग की तरफ जावेगा नहीं।तो कुछ बच्चों का बुद्धि योग स्वर्ग की तरफ और कुछ बच्चों का बुद्धि योग बार बार नरक की तरफ घुस जाता है तो क्या कहेंगे दोनों कब तक इकठ्ठे रहेंगे? एक की बुद्धि में नरक की दुनिया की बातें बुद्धि में चलती है और दूसरा बच्चा ऐसा हैं जिसकी बुद्धि में स्वर्ग की बातें चलती है और दोनों को साथ साथ रख दिया जाए तो कब तक रहेंगे? एक हैं गंद चुगने वाला एक हैं मोती चुगने वाला ज्ञान रतन चुगने वाला तो साथ साथ रह न सके।
-मु.ता.16.05.1967 VCD-513

शांतिधाम को तुम इस सृष्टि पर उतार लेते हो! कैसे उतारेंगे?

 इस सृष्टि में शांतिधाम को कैसे उतारेंगे? कोई ऐसा छूमंतर होगा क्या? नहीं होगा?हें? होगा तो! इशारा तो दे दिया है! क्या? इशारा दिया है मधुबन वालों को मधुबन छोड़ना पडे़गा ज्ञान सरोवर वालों को ज्ञान सरोवर छोड़ना पड़ेगा और गीता पाठशाला वालों को गीता पाठशाला छोड़नी पडे़गी! इसका मतलब क्या हुआ?हं? मधुबन वालों को मधुबन इसलिए छोड़ना पड़ेगा कि उनका बुद्धि योग बाहर की दुनिया के मान मर्तबे में जा रहा है उनका बुद्धि योग स्वर्ग की तरफ नहीं है स्वय स्थिति की तरफ नहीं है रावण की दुनिया में उनका बुद्धि योग लगा हुआ है धन संपत्ति इकट्ठा करने में लगे हुए हैं तो उनका तो मधुबन छोड़ना लाजिमी है जो ईंटो का ज्ञान सरोवर बनाके बैठ गए हैं वो समझते हैं कि हम ज्ञान सरोवर में रहने वाले हैं बाकी सारी दुनिया अज्ञान सरोवर में रहने वाली है लेकिन वास्तव में ईंटो के धाम को ज्ञान सरोवर नहीं कहा जाता ज्ञान सरोवर किसे कहा जाता है? ज्ञान मान सरोवर कहते हैं कि मान सरोवर जिल पहाड़ों पर हैं बहुत ऊंची स्टेज जिनकी बनती हैं ज्ञान के आधार पर उनकी ऊंची स्टेज बनती है ज्ञान क्या चीज है ज्ञान माने जानकारी। जानकारी असलियत की याद नकली पने की? असलियत कीचड़ा जानकारी भगवान देता है बाकी सारी दुनिया की बुद्धि में हैं नकली जानकारी और भगवान देता असली जानकारी माना असली ज्ञान। मनुष्य जो ज्ञान सुनाते हैं वो सब झूठा ज्ञान सुनाते हैं उनके पास सच्चा ज्ञान नहीं है क्योंकि सब जन्म मरण के चक्र में फसे हुए हैं मृत्यु होती है तो पूर्व जन्म का सबकुछ भूल जाते हैं तो मनुष्य हैं मृत्यु लोक के इसलिए उनको 84 के चक्र का ज्ञान है नहीं! भगवान मृत्यु लोक में आता ही नहीं है। भगवान तो जन्म में भी नहीं आता है तो मृत्यु में नहीं आता जन्म मृत्यु से परे हैं। जन्म होता हैं लेकिन अलौकिक जन्म होता है देह का जन्म नहीं होता तो जब जन्म मरण के चक्र से ही न्यारा है तो उसको अनेक जन्मों का ज्ञान हैं ही! रहता ही है।वो सदाशिव हैं।
-मु.ता.16.05.1967 VCD-513

ज्ञान का लक्ष्य है उसकी जो एक्जाम हैं वो एक्जाम कौन सा है?

जो ज्ञान का लक्ष्य है जो पढ़ाई का लक्ष्य है जो हमारी पढ़ाई हैं उसकी जो एक्जाम हैं वो हमारा एक्जाम कौन सा है? नष्ट मोहा स्मृति लब्धा! तो तन से मन से धन से संपर्कियों से संबंघीयों से क्या हम 100% नष्ट मोहा बने हैं? हें? नष्ट मोहा बने नहीं और 70 साल इस संगम युग के पूरे हो गए अब थोड़ा सा टाइम बचा है प्रत्यक्षता होने वाली है स्थापना होने वाली है चलो हम नहीं बनेंगे स्थापना में आने वाले बंदे कोई तो बनेगा या नहीं बनेगा? बनेगा। हम स्थापना में आने वाले बंदे नहीं बनेंगे तो कोई न कोई तो बनेगा तो जो बनेगा करेगा उसका नंबर आगे चला जायेगा और हम? हम पिछे रह जायेगे! क्यों पिछे रह जायेंगे? हं लगाव कुछ न कुछ तन से मन से धन से समय संपर्कियों से संबंघीयों से थोड़ा न थोड़ा लगाव लगा हुआ है छुटता नहीं है तो जब तक वो लगाव नहीं छुटता है पक्की आत्मिक स्थिति वाले नहीं बने ये जो आत्मा बने हैं भगवान के बच्चे परमात्मा के बच्चे हैं वोही हमारा परिवार हैं इसके अलावा हमारा ओर दूसरा परिवार नहीं है।
-मु.ता.16.05.1967 VCD-513

भगवान हमारा साथी हैं लेकिन साथी भी नंबरवार है नंबरवार में क्यों आते हैं?

भगवान हमारा साथी हैं तो साथी हमको साथ न दे ये तो हो नहीं सकता लेकिन साथी भी नंबरवार है हम कि अव्वल नंबर के साथी हैं? नंबरवार है। तो नंबरवार में क्यों आते हैं? नंबरवार अगर साथी की लिस्ट में आ जावेंगे तो वर्सा भी नंबरवार का मिलेगा अगर अव्वल नंबर का वर्सा लेना हैं तो पक्का पक्का भगवान का साथी बनना चाहिए। हर परिस्थिति में किसका साथी? भगवान का साथी तो अव्वल नंबर का वर्सा पा लेंगे। तन की ताकत को देखना है कि तन की ताकत किसके सहयोग में जा रही है? घड़ी घड़ी चेक करना ये तन की ताकत है वो सारे दिन में भगवान के कार्य में कितनी लगाई और जो देह की तरफ मनुष्य की तरफ जो देह के सम्बन्धियों  की तरफ़ झुकाव जाता है सम्बन्धियों की तरफ झुकाव जाता है उसमें कितनी लगाईं? कितना समय हमने ईश्वरीय कार्य में दिया और कितना समय देह और देह के सम्बन्धियों संपर्कियों मे दिया।
-मु.ता.16.05.1967 VCD-513

इस नारकीय दुनिया में रहते हुए अब हमें घड़ी घड़ी ये चेकिंग करना है

इस नारकीय दुनिया में रहते हुए अब हमें घड़ी घड़ी ये चेकिंग करना है कि नरक की तरफ हमारी बुद्धि कितनी है 24 घंटे में और आने वाली नईदुनिया की तरफ हमारा बुद्धि योग कितना जाता है? नहीं तो क्या होगा? जबरियन ऐसा माहौल बन जावेगा कि हम मजबूरन इस दुनिया को छोड़ने के लिए मजबूर हो जावेंगे। एक काम होता है अपनी स्वेच्छा से और एक काम होता है कोई धक्का दे और फिर हम करें तो ज्यादा प्राप्ति किसमें होगी? जो स्वेच्छा से जो कार्य करेंगे उससे भगवान भी खुश होगा! तो देखो इसकी जो स्वाभाविक लगन मेरी तरफ लगी हुई है और धर्मराज किसीसे डंडा मारे फिर मजबूर होकर डंडों के दर्द से परेशान होकर के फिर हम उठ जाए तो उसमें हमारा पद निचा हो जायेगा।
-मु.ता.16.05.1967 VCD-513

ये तो बता दिया कि हंस बगुले इकठ्ठे रह न सके! फिर इकठ्ठे रहते क्यों है?

 लेकिन बाबा ने तो कहा है लौकिक और अलौकिक में बेलेंस रखना है! हां लौकिक दुनिया हैं और जो अलौकिक दुनिया हैं उसमें बेलेंस रखना है ये बाबा ने तो कहा है! अरे बेलेंस तो रखना है। दो नांवे चल रही है एक नारकीय दुनिया की नांव चल रही है और स्वर्ग में ले जाने वाली दुनिया की नांव चल रही है बेलेंस तो रखना है एक पांव तो इस दुनिया में है!क्या? हम संगम युग के वासी हैं ना! कहां के वासी हैं? संगम युग के वासी हैं। एक पांव हमारा नारकीय दुनिया में भी है एक पांव स्वर्ग की दुनिया में भी है लेकिन ज्यादा वजन कौन से पांव में रखना चाहिए? अगर दोनों बराबर बराबर बेलेंस रख देंगे बुद्धि का योग उसी दुनिया में रखेंगे और इस दुनिया में भी रखेंगे तो टांगें चीर जायेगी। भला तन भी हमारा जाए उस दुनिया में धन भी रहे धन का भी थोड़ा सहयोग दे रहे हैं लेकिन बुद्धि योग सारा कहां रहना चाहिए? जो नईदुनिया आने वाली है वहां बुद्धि योग &रहना चाहिए हम बुद्धि से वहां सरेंडर होकर रहे जो बुद्धि से मान्य योग्य बात है वो हम भगवान की मानें। बुद्धि किसको सरेंडर करें? भगवान को सरेंडर करें तो बुद्धि अगर सरेंडर होगी तो मन सरेंडर होगा। जहाँ हमारा मन होगा वहाँ हमारा तन होगा जहाँ हमारा मन हो गया वहाँ  हमारा धन भी होगा।
-मु.ता.16.05.1967 VCD-513

ब्राह्मण बन तो गए हैं लेकिन किस कोटि के ब्राह्मण बने हैं? कैसे पता चलेगा ?

 ये अव्वल नंबर के ब्राह्मण हैं या गिरी हुई कास्ट के ब्राह्मण हैं? पूरे श्रीमत पर चलने वाले हैं या श्रीमत को बीच बीच में तोडफ़ोड़ के चलते हैं? ब्राह्मण संप्रदाय हैं ब्राह्मण संप्रदाय में नौ नौ कुरीयां हैं सब कुरीयां एक जैसी होती है क्या? नहीं। कोई बहुत ऊंची कास्ट के ब्राह्मण हैं अरे वो तो सोचते हैं कि हम तो ऊंची कास्ट के हैं हमारा नाम बदनाम हो जायेगा ऐसे यहाँ हम भी सूर्यवंशी बाप के सूर्यवंशी बच्चे हैं। सूर्यवंशी बच्चों को घड़ी घड़ी ये देखना है कि हमारे सूर्यवंश में कहीं टूट फुट तो नहीं होती जा रही है टूट फूट होती हैं तो जरूर हमारे में कमी है हमारी उनकी फूट रही है माने हमारी प्यूरिटी कम होती जा रही है! तो मेनटेन करने की कोशिश क्या करना है ज्यादा से ज्यादा तबज्जो देना है कि हम आत्मिक स्थिति में स्थित रहे! ऐसे नहीं अरे हम उनको छूएंगे भी नहीं हम उनके हाथ का खायेंगे भी नहीं! जब हमें आँखों से ऐसी चीज नहीं देखने में आ रही है जिसका ये प्रूफ मिले कि ये पतित बन गए हैं तो हम उनको धक्का क्यों मारे! उनके साथ रहे खानापीना आचार व्यवहार सब हो रहा है लेकिन फिर भी उनको नफरत की दृष्टि से न देखें। नफरत की दृष्टि से न देखे उनके साथ सामान्य व्यवहार रखें लेकिन खुद अपने को खुद अपने को देखे हम आत्मिक स्थिति में है? आत्मिक स्थिति में हम स्थित होंगे स्टार आत्मा याद होगी तो भले हम दृष्टि से किसीको देखेंगे भी तो संग का रंग दृष्टि का नहीं लगेगा। टच भी करेंगे अगर आत्मिक स्थिति पक्की हैं तो टच करने का जो विकर्म बनता है आत्मा की शक्ति जो क्षीण होती है टच करने से वो क्षीण नहीं होगी!
-मु.ता.16.05.1967 VCD-513

कुमार -कुमारी के सन्दर्भ में ..

अभी हम सूर्य की रहबरी में पल रहे हैं हमने समझ लिया है कि हमको ज्ञानसूर्य बाप मिल गया है घड़ी घड़ी जो भी कदम बढ़ाए उस कदम में हम देखें ये जो कदम हमने बढ़ाया वो श्रीमत के अनुकूल बढ़ाया बाप की श्रीमत पर हम चले कहीं ऐसा तो नहीं बाप इस कदम को स्वीकार करेगा या नहीं करेगा? कदम बढ़ते हैं ना कोई काम करते हैं तो? नहीं बढ़ते?हें? एक कदम बढ़ रहा है तो वेश्या का घर हैं! कुमार का जीवन हैं कुमार की इच्छा है एक इच्छा और गृहस्थियों की नौ हजार नौ सौ इच्छाएं एक इच्छा उसकी प्रबल हो जाती है नौ हजार नौ सौ गृहस्थी की चिंताएं उनका पल्ला ऊंचा हो जाता है तो कुमारों में जो कामना है वो काम विकार की कामना बहुत तीखी रहती है! जो कामना इतनी भरी हुई है उस कामना को अंदर से चेक तो कर सकता है कि हमारे अंदर ये कमी है! फिर उस कमी की पूर्ति के लिए बाप ने बहुत बड़ा वरदान भी दिया हुआ है! क्या वरदान दिया है? अधर कुमारों को वरदान नहीं दिया कुमारियों को वो वरदान नहीं दिया है अधर कुमारियों को भी नहीं दिया कुमारों को वरदान दिया है! क्या? कुमार जो चाहे सो कर सकते हैं! क्या? सारी दुनिया का विनाश करना चाहे तो विनाश भी कर सकते हैं कुछ नहीं बिगड़ेगा! इतना पुरुषार्थ तीखा कर सकते हैं और निर्माण करना चाहे तो निर्माण भी कर सकते हैं! वो कुमारों में ताकत है। तो बुद्धि जो कदम बढ़ रहा है देख रहे हैं कि कदम जो बुद्धि रूपी पांव वैश्या की घर की तरफ बार बार जा रहा है बार बार आकर्षित कर देती है और दूसरी तरफ कोई सच्ची ब्रह्मा कुमारी हैं सच्ची ब्रह्मा कुमारी अर्थात जिसका बुद्धि योग बाप की ही तरफ हैं कभी भी कोई कुमार को अपनी तरफ आकर्षित नहीं करती है तो दोनों तरह से मेल होता है या एक तरफ से मेल होता है? दोनों हाथों से ताली बजती हैं या एक हाथ से ताली बजती है? दोनों हाथों से ताली बजती हैं तो जो कुमारी सौ कुमारी से उत्तम है उस तरफ कदम बढ़ाना चाहिए उसका संग का रंग लेनी की इच्छा रखनी चाहिए या जो हमारा बुद्धि योग खिंचने वाले हैं उस तरफ बुद्धि का योग जाना चाहिए? अब वेरिफाई करें अपनी बुद्धि से नहीं समझ पाते तो बाप से वेरिफाई करें! हम किसका संग का रंग करें? तो बाप हमें श्रीमत देंगे कि इस रास्ते से जायेंगे तो ऊंचे उठेंगे और इस रास्ते से जायेंगे तो हम नीचे गिरेंगे तो कदम कदम पर जो भी कदम बढ़ रहे हैं उसमें बाप की श्रीमत लेकर के चले या तो अंदर से ये देखे के ये जो हम कदम बढ़ा रहे हैं वो श्रीमत के प्रमाण है? पक्का बुद्धि में बैठ रहा है पक्का श्रीमत के प्रमाण है इसमें कोई बात की कमी है नहीं..तो आगे बढ़ जाना चाहिए तो कदम कदम पर श्रीमत पर चलेंगे बुद्धि योग बाप को देकर के चलेंगे उनकी विजय न हो ये हो नहीं सकता!क्या? अंत में किसकी विजय होनी है? सत्य की विजय होनी है और हम सत्य बाप के आधार पर चल रहे हैं तो विजय न होने का सवाल ही नहीं!!
-मु.ता.16.05.1967 VCD-513

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