संगठन क्लास 09.07.2023 | Vcd 379 | मुरली ता. 27.01.1967 | आध्यात्मिक ज्ञान

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संगठन क्लास 09.07.2023 | Vcd 379 | मुरली ता. 27.01.1967

संगठन क्लास 09.07.2023 | Vcd 379 | मुरली ता. 27.01.1967 | आध्यात्मिक ज्ञान

सभी बच्चे नंबरवार है जिनको धारणा होती है। कोई तो बिल्कुल नहीं समझाय सकते क्योंकि खुद ही धारण नहीं होती तो दूसरों को भी समझाय नहीं सकते! कहते है हम मित्र संबंधी आदि को समझाते हैं। मित्र संबंधी आदि को समझाना वो भी तो अल्प ज्ञान हो गया ना! ओरों प्रदर्शनी आदि में थोड़ी समझाते हैं सिर्फ मित्र सबंधी आदि को क्यों समझाते हैं? अल्प ज्ञान क्यों हो गया? जो अज्ञान हो गया क्योंकि वो रथ के संबंधी हैं स्वार्थ के.. वो उनका कल्याण तो बुद्धि में रहता है लेकिन विश्व कल्याण बुद्धि में नहीं रहता। तो बाबा पूछते हैं कि प्रदर्शनी आदि में क्यों नहीं समझाते? अपने संबंधी आदि को क्यों समझाते हैं? पूरी धारणा नहीं होती हैं! किस बात की धारणा? ये ज्ञान विश्व कल्याण का ज्ञान हैं ये धारणा उनकी बुद्धि में नहीं होती। अपने को मुंह मियाँ मीठु तो नहीं समझना चाहिए। सर्वीस का शोख हैं तो जो अच्छी रीति समझाते हैं उनको लाकर के सुनना चाहिए।
मु.ता.21.01.1967

बाप आये ही है ऊंच पद प्राप्त कराने के लिए! पद क्या हैं? विश्व का मालिक बनना या किसी स्टेट का मालिक बनना? नहीं.. बाप तो ऊंचे ते ऊंचा बाप हैं और ऊंचे ते ऊंचा लक्ष्य बच्चों को देता है। परंतु तकदीर में नहीं है तो बाप जो श्रीमत देते हैं उसको मानते नहीं! क्या? बुद्धि सीमा में अटक जाती हैं बाप तो असीमज्ञान देते है सारे विश्व के कल्याण का ज्ञान देते हैं लेकिन उनकी बुद्धि में सीमाएं खींच जाती है। श्रीमत को नहीं मानते हैं तो पद भी भ्रष्ट हो जाता है।
मु.ता.21.01.1967

राजधानी तो स्थापन हो रही है ना! कौन सी राजधानी? हें? अरे सारे विश्व को कन्ट्रोल करनेवाली राजधानी स्थापन हो रही है या कोई देश विदेश की राजधानी स्थापन हो रही है? कोई देश विदेश की राजधानी स्थापन नहीं हो रही है.. ऐसी राजधानी स्थापन हो रही है जिस राजधानी में जिस शहर में सारे धर्म वालों ने राज किया और उसको हिलाया हैं उस गद्दी को हिलाया हैं वो जो गद्दी हिलती रही विधर्मियों के द्वारा उस गद्दी को अभी बाप आकर के स्थिर्यम करते हैं स्थापना कर रहे हैं स्थायी कर रहे हैं। तो उस राजधानी में हर प्रकार के चाहिए ना सिर्फ सूर्यवंशी ही चाहिए क्या? इस्लाम वंशी ही चाहिए क्या? सूर्यवंशी ही चाहिए क्या? सब धर्म के चाहिए तब कहेंगे विश्व की बादशाही! अरे विश्व धर्मों की चुनी हुई आत्माएं श्रेष्ठ आत्माएं वहाँ हिस्सा अपना ले तभी तो कही जाए विश्व की बादशाही! तो हर प्रकार की चाहिए ड्रामा प्लान अनुसार राजाई स्थापन हो रही है।
मु.ता.21.01.1967

21 जन्मों की राजाई के आधार पर 63 जन्मों का हिसाब भी बन जाता है। जिनके तीव्र पुरुषार्थ करने के संस्कार पड़ते हैं वो 63 जन्म में भी तीव्र पुरुषार्थी होते हैं। 63 जन्म में यहाँ का पुरूषार्थ वहाँ नहीं जायेगा लेकिन क्या जायेगा? यहाँ के जो पुरुषार्थ करने के जो संस्कार हैं तीव्रता के वो तीव्र पुरुषार्थ के संस्कार वहाँ जायेंगे। यहाँ अलबेले पन के संस्कार होंगे वहाँ भी जावेंगे। यहाँ अवज्ञा करने के संस्कार होंगे तो वहाँ भी राजाओं की अवज्ञा करेंगे! महाराजा की अवज्ञा करेंगे तो महाराजा पद से गिरा देगा।
मु.ता.21.01.1967

जगन्नाथ के मंदिर में सबको ताज दिखाया है!क्या? श्रीनाथ के मंदिर की बात नहीं बताई! सबको ताज दिखाया है सबको जिम्मेवारी का ताज हैं। वहाँ स्थूल ताज होगा और यहां जिमेवारी का ताज तो जगन्नाथ के मंदिर में सबको जिम्मेवारी का ताज हैं जो जितनी बडी जिमेदारी उठाता है उतना बड़ा पद पाता है। प्रजा को तो ताज नहीं होगा। ताज वाले राजाएं भी फिर विकार में दिखाते हैं! ये तो बहुत अच्छा पॉइन्ट हैं! क्या? कि जगन्नाथ के मंदिर में सबको ताज दिखाया है श्रीनाथ के मंदिर में सबको ताज नहीं दिखाया! तो संपत्ति तो जो विकारी राजाएं होते है उनको भी बहुत होगी। सुख जास्ती होता है ना! संपत्ति होगी तो सुख होगा संपत्ति ही नहीं होगी तो सुख कहां से होगा? सतयुग के आखरी नारायण उसको संपत्ति होती हैं?हें? उसको संपत्ति नहीं होती क्योंकि शूटिंग पिरियड में गुलछर्रे उडाता रहा! हवाई जहाज में घुमता रहा! जो मनन चिंतन मंथन ज्ञान का करना था मुरलियों का वो मुरलियों का मनन चिंतन मंथन नहीं किया और राम वाली आत्मा ने मनन चिंतन मंथन किया। तो जिसने मनन चिंतन मंथन किया यहाँ के ज्ञान रतन वहाँ के स्थूल रतन बन जायेंगे। राम वाली आत्मा राम बाप के रूप में प्रजापिता के रूप में सन 76 मे क्यों प्रत्यक्ष हो गई? बाप का प्रत्यक्षता वर्ष जो मनाया गया उसमें बाप के रूप में वो आत्मा पहले नंबर में क्यों प्रत्यक्ष हो? क्योंकि ज्ञान का मनन चिंतन मंथन करने का अव्वल नंबर पुरुषार्थ करके दिखाया! तो साहुकार बन गई ज्ञान रतनों का।
मु.ता.21.01.1967

हीरे के महल और चांदी के महल में फर्क तो होता है ना! हीरे माना हीरे जैसी श्रेष्ठ आत्माएं हीरो पार्ट बजाने वाली आत्माएं और फिर चांदी जैसी पार्ट बजाने वाली आत्माएं। चांदी तो सोना से भी कम मूल्यवान होता है। सतयुग में सोने जैसी आत्माएं निचे उतरेगी और त्रेता में चांदी जैसी आत्माएं निकलेगी उपर से आयेगी चांदी जैसी आत्माएं उनकी क्वालिटी कम होगी और जो उपर से चांदी जैसी आत्माएं उतरेगी आठ करोड़ की संख्या वाली वो दो करोड़ की जो सतयुग की सोने जैसी है उनमें मिक्स हो जायेगी! तो सोने में काहे की खाद पड़ गई? चांदी की खाद ढेर सारी पड़ गई! तो जो सोने जैसी आत्मा थी उनका भी मूल्य चांदी के रंग से कम होता जाता है।
मु.ता.21.01.1967

तो बाप बच्चों को कहेंगे कि तुम अभी अच्छा पुरुषार्थ करो! क्या? कोई के संग के रंग में मत आवो कोई से प्रभावित मत होवो एक बाप दूसरा न कोई! एक बाप की ही बात सुननी हैं ओर किसीकी बात नहीं सुननी हैं ओरों ओरों से ज्ञान सुनते रहे तो व्यभिचारी ज्ञान हो जावेगा और ज्ञान व्यभिचारी हो गया तो जो धन संपत्ति मिलेगी ना वो भी काली कमाई की मिलेगी! ब्लेक मार्केटिंग करनी पड़ेगी! जैसे अभी वो तो साहुकार बनकर के ऊंचा सर करके भगवान बाप से डायरेक्ट सन्मुख सुनकर के ज्ञान लेते हो अव्वल नंबर का ज्ञान तुम लेते हो और जो सन्मुख नहीं रहते हैं वो भी ब्राह्मण हैं ब्रह्मा की औलाद तो हैं लेकिन सन्मुख आने का काम नही करते तो वो ब्लेक मार्केटिंग करते हैं चोरी छुपे छुपे केसेट वीसीडी डीवीडी लिटरेचर पढ़ते रहते हैं। दरवाजा बंद कर लेंगे और एक दो जिनसे दिल लगा हुआ है उधर बैठकर के पढ़ लेंगे!तो चोर बाजारी हुई ना! चोर बाजारी करनी पड़ती है। तो फर्क तो हो गया ना! तो बाप बच्चों को कहेंगे अभी अच्छा पुरुषार्थ करके खुद पद पाओ।
मु.ता.21.01.1967

राजाओं को सुख जास्ती होता है!क्या? आधा में जाम आधा में रैयत! सतयुग में भी ऐसे होता है और द्वापर कलियुग में भी ऐसे ही होता है भले कहा जाता है यथा राजारानी तथा प्रजा! फिर भी मर्तबा तो ऐसे होता है ना! मर्तबा तो नंबरवार होता ही है।बाप सदैव कहते हैं कि पुरुषार्थ करते रहों। क्या करते रहों? पुरुषार्थ करते रहो पुरुषार्थ माना? पुरूष माने आत्मा। पुरू माना पुरी शरीर रूपी पुरी और उसमे आराम करनेवाली आत्मा उसको कहते हैं पुरूष षार्थ माना सेते सोनेवाली आराम करनेवाली! तो जो आत्मा इस शरीर रूपी पुरी में पुरूष बनकर रह रही है वो पुरुषार्थी जब तक नहीं बनेंगी क्या बने? पुरूष के अर्थ कार्य करने वाली पुरूष माने आत्मा। आत्मा के अर्थ कार्य करने वाली।
मु.ता.21.01.1967

सुबह से लेके शाम तक धंधा दोरी करते हैं ग्यारह बारह बजे दुकान बंद करते हैं तो काहे के लिए करते हैं? रथ के पोषण के लिए करते हैं ना! या आत्मा के पोषण के लिए करते हैं? अगर उनको आत्मा की पोषण याद हो तो फिर बारह बजे तक दुकान क्यों चलाये तो उनकी बुद्धि में रहेगा अमृतबेला सुहाला करना हैं जल्दी जल्दी झटपट सात बजे दुकान बंद करें और फटाक से जल्दी घर में जाके सो जाए और सवेरे को अमृतबेला जरूर हों ठोक पुरुषार्थ हैं जरूर करें! लेकिन उनकी बुद्धि धन कमाने में विनाशी धन कमाने में लगी हुई है तो बाबा कहते है जिनकी विनाशी धन कमाने में लगी हुई है उनकी किस्मत फूटी हुई है!
मु.ता.21.01.1967

अपनी सदगति के लिए फिर श्रीमत पर चलना पड़े!क्या? स्लोगन बाप ने क्या दिया है? श्रीमत से सदगति और मनुष्य मत से दुर्गति! एक एक कदम पर देखना है जो भी कदम हम उठाए काम करने के लिए उसको ये देखना कि ये कदम हमारा काम करने के लिए हम कदम उठा रहे हैं वो श्रीमत पर हैं? श्रीमत के विपरीत तो नहीं है अगर श्रीमत के विपरीत है तो वो काम नहीं करना चाहिए वो कदम नहीं उठाना हैं!बाप के कदम के उपर कदम रखकर के चलना है। बाप जो रास्ता बताते हैं उस रास्ते पर चलने से कभी भी घाटा नहीं हो सकता।
मु.ता.21.01.1967

नास्तिक बनते हो तो जाओ अपने घर! नास्तिक माने? जिसको ऊंच ते ऊंच बाप पर आस्था न हो! माना जो बाप को नहीं जानता है वो हैं नास्तिक और जो बाप को जानता है वो हैं आस्तिक। तो जो ब्रह्मा से पैदाइश हुए ब्रह्मा मुख से पैदाइश हुए जितने भी ब्रह्मा कुमार कुमारी हैं लाखो की तादात में दुनिया में उनमें कौन से ऐसे है जो मत पर चलते हैं? और बाप को जानते नहीं! जानेंगे तभी तो मत पर चलेंगे। किसकी मत पर? ऊंच ते ऊंच बाप की मत पर। जानेंगे तो ऊंच ते ऊंच बाप की मत पर चलेंगे और जानेंगे ही नहीं तो मत पर चलेंगे भी नहीं! जानेगे इसका मतलब ज्ञानी तू आत्मा मुझे विशेष प्रिय हैं! और जानने की इच्छा ही नहीं होगा कोई बाप वाप! हम जिस रास्ते से चल रहे हैं हम उस एक रास्ते पर ही चलेंगे हमें कोई मतलब नहीं है! ये ब्रह्मा का ज्ञान हैं शिवबाबा का ज्ञान हैं गीता का भगवान कृष्ण हैं कि शिवबाबा है! शिवबाबा को याद करना हैं!
मु ता.21.01.1967

याद ही करना है तो चैतन्य आत्मा को याद करो आत्माओं के बाप को याद करों। किसी देह को याद न करों। आत्मा तो अविनाशी हैं आत्मा के जो शरीर मिलते हैं वो तो सब विनाशी हैं वो भी तो मिट्टी के बने हुए हैं ना! बाप कहते हैं वो तो सब ड्रामा मे नूंध हैं आत्मा भी शरीर धारण करती है जन्मजन्मांतर वो सब ड्रामा में नूंधा हुआ है। अभी तुमको मैं पूजारी से पूज्य बनाता हूँ। किसीके भी शरीर को याद नहीं करना है! क्या? कोई तो ऐसे हैं अपनी जेब में दीदि दादाओं के फोटोज अपनी जेब में रखते हैं! किसलिए रखते हैं? याद करने के लिए रखते हैं। आत्मा पावन बन जावेगी तो शरीर भी पावन बनेगा। अभी शरीर तो पावन नहीं है पहले आत्मा तो सतोप्रधान बने! क्या? पहले कौन सतोप्रधान बनेगा? आत्मा सतोप्रधान बनेगी तो उसकी निशानी क्या होगी? हां जो मनन चिंतन करेगा वो सत संकल्प वाला हो जायेगा। ज्ञान युक्त संकल्पों का मनन चिंतन चलेगा। अज्ञान का ऐसा कोई संकल्प नहीं चलेगा जो शिवबाबा की श्रीमत से बरखिलाफ हो। विकल्प नहीं चलेगा सत संकल्प चलेगा चलेगा विकल्प नहीं चलेगा। तो अभी तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन रहे हों। अभी तुम्हारा शरीर चेंज होता जावेगा ये बहुत समझने की बातें हैं।
मु.ता.21.01.1967

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