श्रीमद्भगवद्गीता -अध्याय 1 ( अर्जुनविषादयोग ) | Bhagwat Geeta Chapter 1 ArjunVishadayog (Complete In Hindi)

श्रीमद्भगवद्गीता -अध्याय 1 ( अर्जुनविषादयोग ) | Bhagwat Geeta Chapter 1 ArjunVishadayog (Complete In Hindi)

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श्रीमद्भगवद्‌गीता
अध्याय 1- श्लोक 01 से 11

धृतराष्ट्र उवाच-

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः। मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय ।। 1/1

     अर्थात – {धृत+राष्ट्र-जिसने शिव पण्डा अर्थात् पाण्डु के पाँच उंगलियों में गण्य अल्पसंख्यक 5 पाण्डवों की राज्य-संपत्ति को नोटों से वोटों वाली बेकायदे प्रजातंत्र सरकार द्वारा धर लिया है, ऐसे अन्याय से एकत्रित हुए धन, पद, मान-मर्तबे और जनबल के मद में अज्ञानान्धकार में पूरे ही अंधे हुए पूंजीवादी राजा बने} धृतराष्ट्र ने कहा- हे संजय! {सं+जय=अर्थात् हे संपूर्ण विश्वविजयी संजय!} {इस तमोगुणी तामसी कलियुग-अंत में चल रहे हिंदू-मुस्लिमादि “सर्वधर्मान् परित्यज्य” (गीता 18-66) के अनुसार ढेरों साम्प्रदायिक} धर्मों के युद्धक्षेत्र में {और उन धर्मों के आधार पर आडम्बरित-मुर्दा जलाना, जमीन में दफनाना आदि ढेरों} कर्मकाण्डों के कर्मक्षेत्र में,{उन मठ-पंथ-संप्रदायों के रूप में} एकत्रित हुए {तामसी बुद्धि वाले बड़े-2 बाहुबल की एटॉमिक हिंसा पर उतारु और} युद्ध के लिए उत्कंठित मेरे {हठी-क्रोधी} पुत्रों और पाण्डु के पुत्रों {पाण्डवों} ने क्या {फैसला} किया ?

श्लोक से संबंधित मुरली के महावाक्य

• धर्मक्षेत्रे कर्मक्षेत्रे। कुरुक्षेत्रे माने कर्मक्षेत्रे। इस समय की बात, भगवानुवाच- ये धृतराष्ट्र, अंधे के औलाद और सजे के औलाद क्या करत भये? (साकार मुरली तारीख 19.6.66) 

• इस धर्म के क्षेत्र में, धर्म के अखाड़े में, कर्मक्षेत्रे कर्म के अखाड़े में, कर्म की भूमि में युद्ध की इच्छा वाले कोई अच्छे कर्म करने वाले थे, कोई बुरे कर्म करने वाले थे, कोई असुरों की मत पर चलने वाले, कोई ईश्वर की मत पर चलने वाले। (वी.सी.डी.186) 

• पाण्डव और कौरव यह है संगमयुग पर। तुम पाण्डव संगमयुगी हो, कौरव कलियुगी हैं। (मुरली तारीख 19.6.70 पृ.1 अंत) 

● गायन भी है – एक है अन्धे की औलाद अन्धे और दूसरे है सज्जे की औलाद सज्जे। धृतराष्ट्र और युधिष्ठिर नाम दिखाते हैं। (मुरली तारीख 17.2.90 पृ.1 आदि)

अध्याय -1/1 ( श्लोक उच्चारण )

शब्दार्थ सहित विस्तृत हिंदी व्याख्या

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संजय उवाच-

दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनः तदा। आचार्यं उपसङ्गम्य राजा वचनं अब्रवीत्।। 1/2

        अर्थात – व्यूहाकार, {व्यवस्थित, संगठित व नियंत्रित} पांडवों की सेना को देखकर अब  {स्वभाव से दुष्टयुद्धकर्ता} राजा दुर्योधन ने तब {घड़े जैसी बुद्धि के विद्वान} आचार्य द्रोण के {सामने ही} पास जाकर {बड़े गर्व से 1 बड़े राजा की तरह अपने गुरु से } यह वचन बोला-

श्लोक से संबंधित मुरली के महावाक्य

● पाण्डव सेना हो ना। सेना अलबेली रहती है या अलर्ट रहती है? सेना माना अलर्ट, सावधान, खबरदार रहने वाले। अलबेला रहने वाले को सेना का सैनिक नहीं कहा जाएगा। (अव्यक्त वाणी 21.11.92 पृ.80 आदि)

• द्रोणाचार्य कौन है? द्रोण माना क्या? द्रोण माने घड़ा, आचार्य माना आचार्य। घड़ा कलश को कहा जाता है अर्थात् ज्ञानकलश का आचार्य। (वी.सी.डी 1454)

अध्याय -1/2 ( श्लोक उच्चारण )​

शब्दार्थ सहित विस्तृत हिंदी व्याख्या

पश्य एतां पाण्डुपुत्राणां आचार्य महतीं चमूं। व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता।। 1/3

     अर्थात – {विकारी मानवनिर्मित ढेर शास्त्रों के प्राचार्य माने जाने वाले} हे आचार्य! अपने बुद्धिमान {बने} शिष्य  द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा व्यूहरूप में सजाई गई पाण्डु-पुत्रों की इस { थोड़े समय में इतनी शीघ्रता से निर्मित} विशाल {ज्ञानशस्त्र सज्जित, पर्वताकार } सेना को देखिए ।

श्लोक से संबंधित मुरली के महावाक्य

हमारी ये पाण्डव सेना है। क्या? कोई राज्य लेना होता है तो किसका सहारा लेते हैं ? सेना बनाते हैं। संगठन तैयार करते हैं। तो ये हमारी पाण्डव सेना है। (वी.सी.डी. 1149)

• पाण्डव के महारथी जिनको कहा जाता है, उनकी भी सेना है। (साकार मुरली तारीख.2.1.63)

• पांडव सेना है ज्ञानी तू आत्मा। (अव्यक्त वाणी 16.10.69 पृ.120 अंत)

• बच्चों ने समझा है हमारी पाण्डव सेना रुहानी सेना है। रुहानी बाप के द्वारा बच्चों को रुहानी ज्ञान मिलता है। (वी.सी.डी. 1652)

अध्याय -1/3 ( श्लोक उच्चारण )​

शब्दार्थ सहित विस्तृत हिंदी व्याख्या

अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि। युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः।। 1/4

      अर्थात – अत्र युधि यहाँ {इस धर्मयुद्ध की पाण्डवीय सेना में धृष्ट्युम्न’ ही नहीं, बल्कि} युद्ध में {सभी कौरवों-कीचकों-राक्षसों के बीच भीमार्जुनसमा महेष्वासा {भयंकरकर्मी} भीम’ और अर्जुन’ के समान महाधनुर्धारी {गदाधारी, शस्त्रधारी व महान}, शूरा युयुधानो शूरवीर {सत्य नारायण जैसा सदा युद्ध-इच्छा के साथ सत्यार्थ युद्धकर्ता विजयी सात्यकि} ‘युयुधान और {आम्र के प्रवृत्तिमार्गी द्विदलीय बीज विष्णु जैसा मत्स्यदेश का बंगाली बीजरूप राजा} विराट तथा {द्रौपदी यज्ञकुण्ड का निर्माता} महारथी ‘द्रुपद है। {जिसका पहले से ही ऊँचा & ध्रुव+पद है}

श्लोक से संबंधित मुरली के महावाक्य

• पाण्डव के महारथी जिनको कहा जाता है उनकी भी सेना है और उनके भी यादगार मन्दिर हैं। (वी.सी.डी. 1697)

अध्याय -1/4 ( श्लोक उच्चारण )

शब्दार्थ सहित विस्तृत हिंदी व्याख्या

धृष्टकेतुः चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्। पुरुजित् कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङ्गवः।। 1/5

      अर्थात –धृष्टकेतुश्च चेकितानश्च वीर्यवान् धृष्टकेतु’ और {एक ही सुर का वक्ता} ‘चेकितान तथा बलवान {अमोघवीर्य शिव की नगरी} काशिराजः पुरुजित् कुन्तिभोजः काशी का ‘राजा, {अनेक नगरों का विजेता} पुरुजित्”, {यदुवंशी/यादव} “कुन्तिभोज च नरपुंगवः शैब्यः और {मननशील} मनुष्यों में श्रेष्ठ {सदा शिवज्योति भगवान का पुत्र पुरुषोत्तम जैसा} “शैब्य {है}

श्लोक से संबंधित मुरली के महावाक्य

• महाभारी लड़ाई में मेल्स का नाम है। (मुरली तारीख 25.1.67 पृ.2 अंत)
• ये महारथियों के नाम दिए हैं। उन महारथियों में एक नरपुंगवः भी बताया है। “शैब्यश्च नरपुंगवः” जो शिव को फॉलो करने वाले वो शैव। मनुष्यो में कुछ ब्रह्मा को फॉलो करते हैं, कुछ विष्णु को फॉलो करते हैं, कुछ शिव को फॉलो करते हैं। उन फॉलो करने वालों में श्रेष्ठ मनुष्य कौन हैं? जो शिव को फॉलो करते हैं (रुद्रगण)। (वार्तालाप-1560)
• बापदादा अपनी सेना के महावीरों को, अस्त्रधारी आत्माओं को देख रहे थे कि कौन-कौन ऑलमाइटी अथार्टी की पाण्डव सेना में मैदान पर उपस्थित हैं। क्या देखा होगा? कितनी वण्डरफुल सेना है! दुनिया के हिसाब से अनपढ़ दिखाई देते हैं लेकिन पाण्डव सेना में टाइटल मिला है – नॉलेजफुल। (अ.वा.17.3.82 पृ.296 मध्य)

अध्याय -1/5 ( श्लोक उच्चारण )

शब्दार्थ सहित विस्तृत हिंदी व्याख्या

युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्। सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः।। 1/6

अर्थात – {युद्धकला में माननीय महापराक्रमी} विक्रमी “युधामन्यु तथा वीर्यवान/बलवान {महादेव जैसा उत्तम ओज वाला} उत्तमौजा ‘और {रुद्र-भगिनी} सुभद्रा का पुत्र {मामाभिमानी अभिमन्यु } और द्रौपदी के {पाँचों} पुत्र-{ये} सब ही देहाभिमानी हाथी पर सवार जैसे} महारथी हैं।

श्लोक से संबंधित मुरली के महावाक्य

• जो सच्चे महारथी हैं अर्थात् सत्यता की शक्ति से चलने वाले महारथी हैं। (अ.वा. 27.2.96 पृ132 अंत)
• सदा अपने को कर्मक्षेत्र पर कर्म करने वाले योद्धे अर्थात् महारथी समझो। जो युद्ध के मैदान पर सामना करने वालेहोते हैं, वह कभी भी शस्त्रों को नहीं छोड़ते हैं। सोने के समय भी अपने शस्त्रों को नहीं छोड़ते हैं। (अव्यक्त वाणी 31.5.72 पृ.295 आदि) • अभिमन्यु अभिमान की औलाद है, उसमें कूट-2 के अभिमान भरा हुआ है। क्या अभिमान भरा हुआ है? मैं भगवान का शिष्य हूँ, मेरे को पढ़ाई पढ़ाने वाला बचपन से कोई भी नहीं है, कौन हैं? खुद भगवान मेरे को बचपन से पढ़ाई पढ़ा रहा है, मैं किसी गुरु को नहीं मानता। अब यह नहीं देखेगा कि वो पढ़ाई विधिवत पढ़ करके पूरी की है या नहीं की है? विधि से सिद्धि मिलेगी या विधि को छोड़ करके सिद्धि लेंगे? विधिवत पढ़ाई पढ़नी चाहिए। फिर दूसरा अभिमान है मेरे को जन्म देने वाला ऊँचे-ते-ऊँचा पुरुषार्थी जिसके शरीर रूपी रथ को भगवान डायरेक्ट कंट्रोल करता है, वो मेरा बाप है, वो मेरा जन्मदाता है। ये दो अभिमान पतन के गर्त में ले जाने वाले हैं, देह अहंकार के सूचक हैं। भगवान को कोई मानता हो; लेकिन भगवान की बातों को ना मानता हो। मुरलीधर को मानता हो और मुरली से प्यार ना हो, मुरली रोज सुनता ना हो। जहाँ मुरली का संगठन क्लास चलता है, वो भी अटैंड न करता हो तो प्रैक्टिकल जीवन में पास होगा या फेल होगा? फेल हो जाता है। (वार्तालाप 737 )

अध्याय -1/6 ( श्लोक उच्चारण )

शब्दार्थ सहित विस्तृत हिंदी व्याख्या

अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम। नायका मम सैन्यस्य सञ्ज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते ।। 1/7

    अर्थात –द्विजोत्तम त्वस्माकं ये विशिष्टा हे द्विजन्मा {मानवीय गीता-ज्ञानी} ब्राह्मणों में उत्तम! हमारे जो विशिष्ट {योद्धा} हैं, तान्निबोध मम सैन्यस्य नायका उन्हें {भी सेनापति होने योग्य आप} जान लीजिए। वि} मेरी {कौरव} सेना के नायक हैं। तान् ते संज्ञार्थं ब्रवीमि उन्हें {पहले ही} आपके परिज्ञानार्थ बताता हूँ; {क्योंकि पितामह के बाद आप ही महारथी हैं।}

श्लोक से संबंधित मुरली के महावाक्य

महारथी हैं और कौरव सेना में कौन-कौन महारथी हैं। तुम दोनों सेनाओं को जानते पाण्डव सेना में कौन-कौन हो न। (मुरली तारीख 18.4.73 पृ.4 आदि)
• उसमें मुख्य एक्टर्स डायरेक्टर्स कौन हैं, वह जानते हैं। इसलिए तुम पूछते हो यह बेहद का नाटक है। इसमें कौन-2 मुख्य हैं। शास्त्रों में तो लिख दिया है कौरव सेना में कौन बड़े हैं, पांडव सेना में कौन बड़े हैं। (मुरली तारीख 19.8.72 पृ.1 मध्य)

अध्याय -1/7 ( श्लोक उच्चारण )

शब्दार्थ सहित विस्तृत हिंदी व्याख्या

भवान् भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः। अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च ।। 1/8

     अर्थात –आप (स्वयं आचार्य हैं ही} और पितामह भीष्म {जिनकी माहिती शब्दार्थों में है, } ऐसे ही कर्ण और {आदि ना० की ज्यों सारे संसार में कभी न हारने वाला, सदाकाल युद्ध में विजयी} समितिंजय, कृपः च तथा एव {कुरू-राजपरिवार में निस्वार्थ (?) सेवा वाले बड़े कृपालु?} कृपाचार्य, और उसी तरह {आपका प्रिय पुत्र} {मन रूपी सर्पमणि का धारणकर्ता} अश्वत्थामा, {दुर्योधन के सामने ही निडर होकर कटाक्षकर्ता और} {चापलूस कर्ण और दुःशासन के भी विपरीत स्वभाव वाला} विकर्ण और {इस चापलूसी संसार में} {शीतल ज्ञान कृष्णचंद्र उर्फ सतयुगी 16 कला नारायण की तीसरी पीढ़ी के नारायण में प्रविष्ट, भूरि-2 प्रशंसनीय महात्मा बुद्ध ही} सोमदत्त-पौत्र भूरिश्रवा है। {इस बात के संज्ञानार्थ AIVV का एडवांस कोर्स अनिवार्य है।}

श्लोक से संबंधित मुरली के महावाक्य​

• धृतराष्ट्र के बच्चे यानी अंधे की औलाद, उनकी सेना में कौन-2 थे? देखो आते हैं ना- भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा। ये किसकी सेना में थे? धृतराष्ट्र की। अंधे की औलाद अंधे। (साकार मुरली तारीख 04.06.1965)
• भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा- ये सभी किसके थे? कौरव की सेना में थे। (साकार मु.ता.27.2.66)
• अश्व स्था मा । कैसी माँ? जो अश्व में स्थित है। “अश्व” माने चंचल मन रुपी घोड़ा तो मन रुपी घोड़े में स्थिर रहना अच्छा है या बुद्धि में स्थिर रहना चाहिए मन चंचल है, तो जो भी मन में आया सो ही किया। पाप-पुण्य कुछ भी नहीं देखा। मन में आया। भले क्रोध आ गया। तो 5 पांडवों की हत्या करने के लिए चल पड़े। ये भी नहीं देखा कि जिनकी हम हत्या कर रहे हैं वो छोटे-2 बच्चे हैं पांडवों के या पांडव हैं। बस, धड़ाधड़ हत्या कर दी। तो मनमाना काम करना, मनमत पर चलना वो अश्वत्थामा का काम है। मन कौन है? ब्रह्मा मन है। मनमत के आधार पर जो काम किए जाते हैं या कराए जाते हैं वो अश्वत्थामा के कार्य हैं। (वीसीडी 1574) 
• यह साधु लोग आदि सब (कौरव सम्प्रदाय) हैं।भीष्म-द्रोणाचार्य आदि सब ही हैं साधुओं के नाम। (मुरली तारीख 23.11.66 पृ.1 अंत)

● भीष्मपितामह अर्थात् बालब्रह्मचारी द्रोणाचार्य अश्वत्थामा आदि। यह सभी विद्वान पंडितों के नाम हैं। (मुरली तारीख 18.2.72 पृ.1 मध्य)
• तुम्हारी धर्मयुद्ध हुई है विद्वान पंडितों के साथ। धर्मयुद्ध को लड़ाई नहीं कहा जाता। (मुरली तारीख 22.5.64 पृ.3 आदि)

अध्याय -1/8 ( श्लोक उच्चारण )

शब्दार्थ सहित विस्तृत हिंदी व्याख्या

अन्ये च बहवः शूराः मदर्थे त्यक्तजीविताः । नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः।। 1/9

     अर्थात –और भी अनेक {कौरवपक्ष के} शूरवीर हैं {जो विशेष रूप से} मेरे लिए अपने जीवन का {भी मन मारकर} त्याग करने वाले हैं। {वे} सभी अनेक {छल-छिद्र वाले ज्ञान-अज्ञान} -शस्त्रों से {मेरी मनमत से } प्रहार करने वाले हैं {तथा झूठी और आतताई हिंसक) – युद्धकला में निपुण हैं।

श्लोक से संबंधित मुरली के महावाक्य

• यह (हिंसक युद्ध वाली) है ही झूठी दुनिया। (शास्त्रों में) झूठ मिरई झूठ। सच्च की रती नहीं। (मुरली तारीख 12.2.71 पृ.3 आदि)
• कौरवों में भी मुख्य-2 जो हैं, उनका नाम बाला है ना! यूरोपवासी यादव भी कितने हैं। सभी के नाम हैं। अखबार में नाम पड़ते हैं, जो नामीग्रामी हैं। सभी की परमपिता परमात्मा साथ विपरीत बुद्धि है। (मुरली तारीख 25.3.72 पृ.2 मध्यांत)

अध्याय -1/9 ( श्लोक उच्चारण )

शब्दार्थ सहित विस्तृत हिंदी व्याख्या

अपर्याप्तं तत् अस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितं । पर्याप्तं तु इदं एतेषां बलं भीमाभिरक्षितं ॥ 1/10

     अर्थात –{समाज व सरकार में महासम्माननीय निवृत्ति मार्गी} भीष्म से रक्षित वह हमारी सेना अपार है, और यह {भेड़िए जैसे खदूस, राक्षसी वृत्ति के लम्बे-चौड़े } भीम द्वारा रक्षित इन {पाँचों पांडु-पुत्र पाण्डवों} की {अल्पसंख्यक} सेना सीमित है। {अतः हमारी जीत निश्चित है।}

श्लोक से संबंधित मुरली के महावाक्य

• यादव कितने हैं, पांडव बहुत थोड़े हैं। गाया भी जाता है- राम (पाण्डू से पांडव) गयो, रावण (कुरु से कौरव) गयो और यादव (क्रिश्चंस) जिनकी बहुत सम्प्रदाय है। (मुरली तारीख 11.6.64 पृ.1आदि)
• अभी तो कौरव राज्य है। यह तो हिस्ट्रियों में भी (अभी की यादगार) लगा हुआ है कि पाण्डवों को कौरव बहुत हैरान करते थे; क्योंकि कौरव थे बहुत। पाण्डव थे थोड़े। शास्त्रों में तो बहुत बातें लिख दी हैं। तुम अभी प्रैक्टिकल में देखते हो। (मुरली तारीख 3.11.71 पृ1 अंत)
• कौरवों का है बड़ा झुण्ड; पाण्डवों का है छोटा झुण्ड। (मुरली तारीख 14.7.63 पृ.2 मध्य)

अध्याय -1/10 ( श्लोक उच्चारण )

शब्दार्थ सहित विस्तृत हिंदी व्याख्या

अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः। भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि।। 1/11

     अर्थात –इसलिए आप सभी लोग {जो भारतीय प्रजातंत्र राज्य के छोटे-बड़े पदाधिकारी रूप में शासक हैं,} स्वविभागों {डिपार्टमेण्ट्स} के अनुसार, सब पैदल-अश्व-गज-स्थादिक पुरुषार्थियों रूप अधिकारियों के} मोर्चों पर डटे हुए हैं, निःसन्देह {जन-धन-वैभव- बाहुबल या रिश्वतखोरी द्वारा अन्याय से भी}
{सब ओर से} भीष्म की ही रक्षा करें; {क्योंकि वोटदाता प्रजाजनों में इन संन्यासियों का बहुत मान है।}

श्लोक से संबंधित मुरली के महावाक्य

•भीष्मपितामह…होते ही हैं शंकराचार्य वाले लोग। (साकार मुरली तारीख 5.7.65)
•कहाँ से भी कोई संन्यासी पास करता देखेंगे तो उनको माथा ज़रूर टेकेंगे। हाथ जोड़ेंगे। कोई तो रास्त में ही पाँव पर पड़ जाते हैं। ऐसे भी भक्त होती हैं। गेरू कपड़े वाला देखा तो सिर झुकाया। अभी बाप समझाते हैं उन्हों को तुम बहुत खिलाते पिलाते हो ना। यह भी कितने ढेर संन्यासी हैं। उन्हों को तो तुम पाँव भी पड़ते हो, खाना भी देते हो। (मुरली तारीख 5.6.69 पृ.3 आदि)
• ये बड़े-बड़े सन्यासी-उदासी, विद्वान, पण्डित, आचार्य बगैरह-बगैरह। इस दुनियाँ में उनका कितना भी बड़ा मान हो, बड़े-बड़े देखो कितने भी बड़े हों। देखो क्या कहते है, वो तो कह देते हैं सर्वव्यापी है। (वी.सी.डी. 2839)

अध्याय -1/11 ( श्लोक उच्चारण )

शब्दार्थ सहित विस्तृत हिंदी व्याख्या

OM SHANTI

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