श्री भगवानुवाच:-
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थान अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥ 4/7
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ॥ 4/8
अर्थात- जब जब धर्म की ग्लानि होती है और अधर्म वृद्धि को पाता है । तब मै स्वयं जन्म लेता हूँ। साधू-संतों की भी रक्षा करने, दुष्टों काविनाश करने तथा एक सम्पूर्ण धर्म की स्थापना हेतु मै आता हूँ।
तो क्या धर्म की ग्लानि हो नहीं रही हैं ? क्या अनेक धर्म आपस में टकरा नहीं रहे हैं ? क्या धर्म के नाम पर अनेक भ्रष्टाचार हो नहीं रहे हैं ? तो क्या अपने वचन अनुसार परमात्मा को क्या इस सृष्टि में आना चाहिए ? या मनुष्यों की भाँति परमपिता परमात्मा भी झूठा है ? नहीं !!! “अपने वचन अनुसार परमपिता परमात्मा अनेक धर्म का विनाश कर एक सम्पूर्ण धर्म की स्थापना करने हेतु इस सृष्टि पर अवतरित हो चुके हैं जिनके पास हम आज तक मार्गदर्शन हेतु भटकते रहे, उन धर्म गुरु, साधू-संतों की रक्षा एवं उद्धार जब एक परमपिता परमात्मा से होना है, तो सीधे उस परमपिता परमात्माको जानने का प्रयास क्यों न करें। उस परमपिता परमात्मा के अवतरण को नाम,रूप, देश, काल, धाम, गुण से जानने हेतु संपर्क करें –आध्यात्मिक विश्वविद्यालय