गीता जयंती 2024 -आध्यात्मिक ज्ञान

geeta jyanti 2024- adhyatmik gyan

               श्रीमद् भगवद्गीता’ सम्पूर्ण विश्व में मानवजाति के लिए भगवान का वर्बली दिया हुआ भारतीय अमूल्य उपहार है। भगवद्गीता ही एक ऐसा शास्त्र है जिसको ‘सर्वशास्त्र शिरोमणि’ कहा गया है। ऐसी विलक्षण रचना है, जिसको ही ‘भगवानुवाच’ की मान्यता प्राप्त है। जो महर्षि वेदव्यास द्वारा लिखी गई है। गीता (18/75) में बताया है- “व्यासप्रसादात्” अर्थात् व्यास की प्रसन्नता से यह गीता-ज्ञान हमको मिला है। यह शास्त्र अन्य शास्त्रों की तरह सिर्फ़ धर्म उपदेश का साधन नहीं; अपितु इसमें अध्यात्म के साथ-2 राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक और व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान भी है।

               द्वापर के आदि से वो भारत ऐसी ज्ञान की रोशनी का ग्रन्थ रचता है, जिसका नाम पड़ता है सर्वशास्त्र शिरोमणि भगवतगीता। वह एक भवतगीता ही है जिसका लोहा सभी धर्म के फॉलोअर्स ने माना है और वही ज्ञान की गीता, जब मैं इस सृष्टि पर आता हूं, मुकरर उस रथ में प्रवेश करता हूं तो उसी गीता का क्लेरिफिकेशन मैं सुनाता हूं। जो भारतवासी कलयुग के अंत में आकर के अपने धर्म का नाम भूल जाते हैं, क्या नाम बताते हैं? हिंदू धर्म ! कोई पूछे धर्मपिता के नाम पर धर्म का नाम पड़ता है क्या? क्राइस्ट के नाम पर क्रिश्चियन धर्म, बुद्ध के नाम पर बौद्ध धर्म, मोहम्मद के नाम पर मुस्लिम, तो हिंदुओं के धर्मपिता का नाम भी होना चाहिए ना? कोई नहीं बता सकेंगे । अपने धर्मपिता को भूल गए, धर्म ग्रन्थ को भूल गए, धर्म ग्रन्थ में बताई हुई बातों को भूल गए, क्या मुख्य बात उल्टी कर दी है- भगवान सर्वव्यापी है, गीता में लिखा हुआ है श्लोक है पूरा- जहां में रहता हूं….न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः। यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम।। अध्याय 15. श्लोक 6

     अर्थात जहाँ का मैं रहने वाला हूँ वहां ना सूर्य का प्रकाश पहुंचता है, ना चंद्रमा का प्रकाश पहुंचता है, तारा का भी प्रकाश नहीं पहुंचता, वो परम धाम मेरा धाम है। उससे बड़ा धाम परमधाम और कोई भी नहीं होता है। देखो पूरा का पूरा श्लोक दिया हुआ है की मैं कहां का वासी हूं.. और भारतवासी ही नही भारतवासियों की पतित बुद्धि बनने के बाद सारी दुनिया के धर्म के फॉलोअर्स क्या कहने लगे? कहने लगे वो एक धाम वासी नही है सर्वव्यापी है।

     अब बताओ एक व्यापी को अगर हम पहचाने तो बुद्धि एकाग्र होगी या अनेकों में व्यापक मान लें कीट, पशु, पक्षी, पतंगें तो बुद्धि एकाग्र होगी? सारी दुनिया की बुद्धि को भटका दिया अभी बाप कहते हैं कि मैं तो पतितों को पावन बाद में बनाऊं, राजधानी की स्थापना भी बाद में होगी, पहले क्या करना है? पहले तो मुझे बाप को पहचाना है, जो सर्वव्यापी नहीं है, सर्वव्यापी होकर नहीं आता है। एक मुकरर रथ में आता है। जिस मुकरर रथ में आता है। उसका नाम मैं क्या देता हूं? जिसमें आता हूं उसका नाम ब्रह्मा रखता हूँ ।

                जरा विचार कीजिए… सवाल तो अभी भी है। गीता ज्ञान सुनने के बाद अर्जुन ने एक साधारण मानव में ईश्वर को पहचान लिया और हम सदियों से गीता पढ़ते आ रहे हैं, सुनते चले आ रहे हैं, परन्तु आज समाज दिन प्रतिदिन और ही अधर्मी होता चला जा रहा है, तो जरुर हमारे दृष्टिकोण में और अर्जन के दृष्टिकोण में कुछ तो अंतर रहा होगा ज्ञान उठाने में ! भगवद गीता एक सरल और सहज कविता है तो साथ ही रहस्यो से भरी पहेली भी। इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्गुह्यतरं मया… आखिर गीता हमें ऐसा क्या गुह्य ते गुह्य राज बताना चाहती है जो हम सदियों से नहीं समझ पा रहे हैं, तो चलिए इस गीता जयंती पर श्रीमद् भागवत गीता को एक नए नजरज़िए से समझने का प्रयत्न करें जैसे अर्जुन ने समझा था, 

     सत्य का स्वभाव होता है कि वह जितना तटस्थ होता है उतना ही संवेदनशील भी। ठीक उसी तरह से शब्दों की कठोरता में सत्य के मर्म को, उसके भाव को और विषय की गंभीरता को समझने का अधिक प्रयास किया जाए, यही हमारा नम्र निवेदन है।

     तो गीता जयंती के शुभ अवसर पर गीता का महत्त्व और वास्तविक गीता-ज्ञान-दाता के बारे में जानने के लिए अवश्य पधारें- आध्यात्मिक विश्वविद्यालय

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 Online Session में join होने के लिए पहले WebEx App install करे फिर उपर दिए गए👆लिंक को टच करे।

Timing….. 

हिन्दी -11.12.24 सायं 07:00 से 08:00 तक 

इंग्लिश -12 .12.24 सायं 07:00 से 08:00 तक 

तेलुगू  -13.12.24 सायं 07:00 से 08:00 तक 

Keypad Phone से जुड़ने का तरीका 🤳
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Meeting ID – 25168673051#
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ॐ शांति