VCD 1758 | MURLI TEST PAPER -66 | QUES-ANS | AdhyatmikGyan.in

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     बच्चों को विचार सागर मंथन  करना चाहिए क्योंकि ज्ञान तुमको मिलता रहता है तो उसमें कहा जाता है विचार सागर मंथन करने से उनमें से कुछ अमृत निकलेगा मखन निकलेगा अगर विचार सागर मंथन नहीं करेंगे तो बाकी क्या मंथन करेंगे बाकी तो आसूरीय विचार सागर मंथन करेंगे और उस विचार मंथन से कचड़ा ही निकलेगा। तुम स्टूडेंट्स ईश्वरीय हो और ये जानते हो कि बाबा हमको पढ़ाते हैं वो दुनिया में कोई नहीं पढ़ाई सकता है कि मनुष्य से देवता बनने की पढाई सिर्फ बाप ही पढायेंगे और दुनिया के मनुष्य तो ये पढ़ाई पढ़ाय ही नहीं सकते। वो पढ़ाई पढ़ाकर के इन्जीनियर बनायेंगे बेरिस्टर बनायेंगे जज बनायेंगे लॉयर बनायेंगे मिकेनिक बनायेंगे परंतु मनुष्य से देवता कोई नहीं बनाई सकते। देवताएं भी ये पढ़ाई नहीं पढ़ाय सकते ना पढ़ेंगे। क्योंकि देवताओं को ज्ञान का सागर नहीं कहा जाता है ज्ञान का सागर सिर्फ एक को कहा जाता है दैवीगुण उनमें होते हैं ज्ञान से ही होते हैं परंतु ये ज्ञान जो तुम बच्चों  को अभी मिलता है वो सतयुग में नहीं होता है पिछे जो उनका फल है राज करना और जो दैवीगुण धारण करते हैं तो उनमें दैवीगुण हैं तुम बरोबर इनकी महीमा करते हो क्योंकि वो सर्वगुण संपन्न सोलह कला संपूर्ण, संपूर्ण अहिंसक मर्यादा पुरुषोत्तम ऐसे गाते हो ना! तो तुमको भी ऐसा ही बनना होता है ना!! अपने से पूछना चाहिए मेरे में सभी दैवीगुण हैं? या कोई आसूरी गुण भी है? आसूरी गुण है तो निकाल देना चाहिए। निकालते रहेंगे तभी देवता बनेंगे अगर नहीं निकालते हैं तो भले देवता बनते हैं पर कम दर्जे के! जैसे मनुष्य को कहते हैं कि ये कम दर्जे का मनुष्य हैं बातचीत से इनकी मालूम पड़ता है कि ये कम दर्जे के मनुष्य हैं।

     अभी तुम तो दैवीगुण धारण करते हो तुम जानते हो कि तुम बहुत अच्छी अच्छी बातें सुनाते हो ये भी जानते हो कि हम उत्तम दर्जे के बनने वाले हैं इस संगम युग को कहा ही जाता है पुरुषोत्तम संगम युग अर्थात पुरूषों में जो उत्तम है उनको पुरुषोत्तम कहा जाता है और पुरूषों में उत्तम तो नारायण को कहा जाता है ना! तो पुरुषोत्तम नारायण का संगम युग है सतयुग में भी नारायण तो होंगे परंतु उनको पुरुषोत्तम नहीं कहेंगे पुरू शरीर को कहा जाता है पुरू ष अर्थात शरीर रूपी पुरी में शयन करनेवाला आत्मा। और आत्माओं मे उत्तम पार्ट बजाने वाला हीरो पार्टधारी उनको कहा जाता है पुरुषोत्तम। उनका ये युग है पुरुषोत्तम संगम युग। क्योंकि तुम पुरुषोत्तम बन रहे हो और अच्छे दर्जे के बन रहे हो। तो तुम्हारा वातावरण अच्छा होना चाहिए तभी तुम अच्छे दर्जे के गिने जायेंगे! तुम्हारा वातावरण तुम्हारा वायब्रेशन अच्छा होगा तो जो तुम्हारी बात सुनेगा जो तुमको देखेगा तो उसकी बुद्धि में बैठेगा कि पुरुषोत्तम बनाने वाला बाप जरूर आया हुआ है। छी छी मुख से निकले जिसको झगड़ा टंटा कहा जाता है तो कहा जायेगा ये कम दर्जे का मनुष्य हैं तो ये वातावरण से ही मालूम हो जाता है! मुख से वचन निकले फिर भी देखते हैं किसको दुख देने वाले हैं तो ये कम दर्जे का मनुष्य हैं। उत्तम दर्जे का मनुष्य बनना है ये जो पुरुषोत्तम युग है उनमें ये उत्तम नहीं बनते हैं देखो पुरुषार्थ करनेवाले कितने होते हैं परंतु उत्तम नहीं बनते हैं कितना कम दर्जे मे चले जाते हैं तो बच्चों को फिर चाहिए उत्तम दर्जा बनने के लिए कि बाप का नाम भी तो बाला करना है ना! यहाँ बहुत आते हैं बाहर से भी आते हैं पर कम दर्जे का। मनुष्य होगा तो कुत्ते जैसा काट देगा! तो कहेंगे कि ये कम दर्जे का मनुष्य हैं!! नहीं तो तुम्हारा मुखड़ा सदैव हर्षित मुख होना चाहिए जो हर्षित मुख नहीं होते हैं तो फिर उनमें ज्ञान नहीं कहा जाता है जैसा जैसा हर्षित मुख क्योंकि तुम्हारे मुख से रतन निकलने का हैं।

            देखो इनके मुख से रतन निकलते निकलते कितना हर्षित मुख हो गए! किनके मुख से? ये लक्ष्मी नारायण के चित्र की तरफ इशारा किया। आत्माओं से रतन निकलते हैं ना! रतन सुनते थे रतन डालते थे क्योंकि रत्नों की लेनदेन का टीचर बनेगा तो देखो कितनी खुशी होगी फिर क्या खुशी होती है जो ज्ञान के रतन हम जो लेते हैं ये रतन फिर सच्चे रतन बन जाते हैं हीरे मोती जवाहरात बन जाते हैं ये नवरत्न की माला कोई हीरे लीरे की माला थोड़ी होती है वो कोई हीरो पार्टधारी नहीं होते हैं वो तो जड़ रतन हैं। नहीं ये रत्नों की माला हैं चैतन्य रतन हैं कोई उन जड़ रत्न नहीं है मनुष्य तो ये रतन समझकर अंगुठियां वगेरह पहन लेते हैं बाकी रत्नों की माला तो सभी संगम युग पर लगती हैं। वो जो रतन हैं वो थोड़े ही है और ये सच्चे रतन तो थोड़े ही बनते हैं उनका थोड़े ही माला वगैरा जेवर बनता है! नहीं। वो रतन हैं जो भविष्य 21 जन्म के लिए मालामाल बनते हैं क्योंकि वहाँ ढेर जेवर बन जाते हैं।- 

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