संगठन क्लास –16.07.2023 | Vcd 517 | मुरली ता.–01.05.1967 | आध्यात्मिक विश्वविद्यालय

संगठन क्लास –16.07.2023 | Vcd 517 | मुरली ता.–01.05.1967 | आध्यात्मिक विश्वविद्यालय

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संगठन क्लास –16.07.2023 | Vcd 517 | मुरली ता.–01.05.1967

गंगाजल का कितना मान रखते हैं और उस गंगाजल मे कितना गंद पड़ता रहता है। दुनिया वालों के लिए जड़ गंगाजल की बात है और ब्राह्मणों की दुनिया के लिए चैतन्य गंगाजल की बात है चैतन्य गंगा जब चैतन्य ज्ञान सागर के साथ हैं तो पतित पावनी हैं क्योंकि पतित पावन बाप की सहयोगी हैं और जब गंगा नदी का कनेक्शन सागर से टूट जाता है तो उस गंगा में कीचड़ा पड़ता है। पानी में गंद पड़ता रहता है। तुम बच्चों को अभी ये खुशी रहनी चाहिए कि हम ज्ञान सागर के पास जाते हैं कोई कीचड़े वाली नदी के पास नहीं जाते हैं। कितना फर्क पड़ जाता है।
-मु.ता.01.05.1967 Vcd527

vcd 517

जानवर को सुधारने के लिए नहीं आता हूँ मैं तो मनुष्यों को देवता बनाने आता हूँ..

कभी कभी बाबा सोचते हैं कि शिवबाबा क्या करें? जो ये बाबा बड़ा आदमी दिखाई देवे! संन्यासियों के कपडें तो हम पहन नहीं सकते बाप कहते हैं मैं साधारण तन लेता हूँ अब बताओ मैं तुम ही बताओ मैं क्या करू! इस रथ को कैसे शिंगारू? वो मुसलमान तो हुसैन की घोड़ी निकालते हैं उस घोड़ी को कितना शृंगार करते हैं! यहाँ ये शिवबाबा का रथ हैं उन्होंने फिर बैल बना दिया है। बैल के मस्तक में फिर शिव का चित्र बनाई देते हैं। अब शिव बैल पर कैसे आवेगा? बैल के मस्तक में शिव का चित्र दिखाई देते हैं अब भला मंदिर में बैल कैसे रहेगा? वास्तव में मैं कोई जानवर बैल में नहीं आता हूँ! जानवर को सुधारने के लिए नहीं आता हूँ मैं तो मनुष्यों को देवता बनाने आता हूँ ये तो सब भक्ति मार्ग में बातें दिखाई हैं बाप कहते हैं ये भक्ति मार्ग ड्रामा में नूंध हैं।
-मु.ता.01.05.1967 Vcd527

शिवबाबा तो हैं बुद्धिमानों कि बुद्धि!

वास्तव में ऊंच ते ऊंच धाम हैं शांतिधाम फिर हैं सुखधाम और लास्ट में होता है दुखधाम। तुम्हारी बुद्धि में ये ज्ञान पहले नहीं था कि कैसे तीन नाम है अभी तुम समझते हो हर कल्प कल्प हमने अनेक बार ये ज्ञान लिया है। आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट नूंधा हुआ है ये बहुत बड़ा वंडर हैं फिर इसको कुदरत ही कहा जाता है कितनी छोटी छोटी बिंदी आत्माएं हैं और पार्ट बजाने के लिए उनको शरीर कितना बड़ा मिलता है। वंडरफुल बात है ना ये ज्ञान भी वंडरफुल हैं देने वाला भी वंडरफुल हैं महिमा कितनी बड़ी करते हैं और लिंग कितना बड़ा बनाते हैं। जैसे पाडवों के चित्र बहुत बड़े बड़े बनाई दिये अब ऐसे लंबे चौड़े मनुष्य होते थोड़े ही है! तो बड़े बड़े चित्र क्यों बनाय दिये? शिव का लिंग भक्ति मार्ग में इतना बड़ा क्यों बनाते हैं? कोई तो कारण होगा? भक्ति मार्ग में जो भी दिखाया जाता है वो यादगार मात्र है संगम युग की याद है जो बड़ी महिमा का कार्य किया है उसको बड़ा कैसे दिखावे? जरूर पांडव इतने बड़े बुद्धिमान थे उनकी बुद्धि को बड़ा दिखाने के लिए उनके चित्र को बड़ा दिखाया है और शिवबाबा तो हैं बुद्धिमानों कि बुद्धि!
-मु.ता.01.05.1967 Vcd527

इस वंडरफुल ज्ञान को देने वाला भी वंडरफुल!

 जैसे पांडवों के चित्र इतने बड़े नहीं होते हैं प्रेक्टिकल में तो मनुष्य जितने ही होते होंगे ऐसे भुजाओं वाली देवियाँ होती नहीं है फिर इतनी भुजाएँ क्यों दिखा दी है? जरूर इनकी सहयोगी शक्तियां बनती है। ब्रह्मा को ही देखो कितनी भुजाएं दे देते हैं हजार भुजा वाला ब्रह्मा दिखाते हैं तो अभी तुम ब्रह्मा के ढेर बच्चे हो ना! सहयोगी बनते हो ना!
-मु.ता.01.05.1967 Vcd527

मनुष्य तो समझते हैं अभी तो हजारों वर्ष पड़े हुए हैं इसको कहा जाता है घोर अंधियारा

तुम बच्चों को बहुत खुशी होनी चाहिए कि हम बाबा के द्वारा विश्व के मालिक बनते हैं ऐसे विश्व के मालिक बनाने वाले बाप को याद करना चाहिए। बाबा बार बार कहते हैं सदैव बुद्धि मे स्मरण करते रहों बाप को याद करना पड़ता है कि हमारे विकर्म विनाश हो जाए इसमें मेहनत बहुत लगती है क्योंकि बार बार तुम भूल जाते हो। तुम बच्चे जानते हो हम पवित्र बन गए है फिर हम नईदुनिया मे चले जावेंगे अब ये पुरानी दुनिया हैं। मनुष्य तो समझते हैं अभी तो हजारों वर्ष पड़े हुए हैं इसको कहा जाता है घोर अंधियारा! ये सब कुंभकर्ण की नींद में सोये हुए हैं जो समझते हैं दुनिया अभी बहुत लंबी चलेगी! वास्तव में आग लगेगी और ये सब हाय हाय करके भस्म हो जायेंगे! आज इतने करोड़ों मनुष्य हैं कल सब खंड विनाश हो जायेंगे सिर्फ भारत ही रहेगा।
-मु.ता.01.05.1967 Vcd527

रथयात्रा निकालते रहते हैं। रथ माना क्या?

वहाँ तो मीठी मीठी नदियों के उपर रहते हैं प्रकृति भी तुम्हारी दासी हो जाती है दुनिया तो वोही हैं सतोप्रधान से तमोप्रधान बनती है तमोप्रधान से सतोप्रधान बनती है तो भक्ति मार्ग में ये सब अंधश्रद्धा की बातें हैं! जानवरों से भी बदतर बनाय दिया है। तुम भी अभी समझते हो कि हम बंदर थे डर्टी थे रो रो नरक में थे अभी बाप हमको पावन बनाने के लिए आये हुए हैं तुम्हारी ये बुद्धि योग की ये यात्रा हैं उन्होंने जिस्मानी यात्रा समझ ली है। बाबा ने तो रूहानी यात्रा सीखाई वो फिर रथयात्रा निकालते रहते हैं। रथ माना क्या? रथ माना शरीर। बाप जिस मुकर्रर रथ में आते हैं उसकी बात है कि ईश्वरीय सेवा के लिए रथ को चक्कर लगाने पड़ते हैं उन्होंने फिर स्थूल रथ बनाय दिया है वो कथा कथित ब्राह्मण यात्राएं निकालते रहते हैं। बाप तो कहते हैं इन जिस्मानी यात्राओं से कुछ लेना देना नही है बाबा ने तो हमें रूहानी यात्रा करना सिखाया है सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो तो अंत मते सो गते हो जायेगी! याद करते करते आत्मा पवित्र बना शरीर को छोड़ देगी! सतयुग में भी बैठे बैठे आत्मा शरीर छोड़ देती है रोने करने अथवा वहाँ पीटने का नाम नहीं होता है।
-मु.ता.01.05.1967 Vcd527

अमरकथा

भारत तो अमरलोक था ये भी किसीको पता नहीं है समझते हैं शंकर ने पार्वती को अमरकथा सुनाईं! अब एक पार्वती को अमरकथा सुनाई होगी क्या? किसीको भी पता नहीं है कि यही मृत्युलोक है तुम्हारे भी बहुत बच्चे भूल जाते हैं अमरलोक याद ही नहीं आता है! हम जानते हैं अब हमको जाना है अमरलोक वाया शांतिधाम तो तुम बच्चों को अथाह खुशी होनी चाहिए। बाबा भगवान उनको पढ़ाते हैं और एक की ही पढ़ाई हैं उसमें भी पहले पहले मुख्य बात है याद की। वो स्फूरणा लगा रहे कि हम पतित से पावन कैसे बने। शिवबाबा के पास आये हो तुम जानते हो बाबा हमको फिर से पढ़ाने आये हैं। -मु.ता.01.05.1967 Vcd527

भारत अविनाशी खंड हैं। कैसे?

 अविनाशी खंड हैं और दूसरे खंड विनाशी हैं दूसरे धर्म भी विनाशी हैं अविनाशी खंड की स्थापना जरूर अविनाशी बाप ने कि होगी उसको कहते है सदाशिव सदैव कल्याणकारी हैं जो कल्याणकारी हैं वोही सत्य है और जो सत्य है वो अमिट होता है उसका कभी मिटना नहीं होता विनाश नहीं होता और वो सत्य बाप भारत में आते हैं दूसरे धर्म खंडो मे नहीं आते हैं! क्यों नहीं आते हैं? क्योंकि वहाँ झूठ का बोलबाला है और भारत खंड भल सब खंडो के मुकाबले पतित बन जाता है तो भी यहाँ पवित्रता का बड़ा मान हैं इसलिए शिवबाबा को भी पतित धर्मखंड मे आना पड़े। पवित्र होता नहीं है लेकिन पवित्रता को मान होता है दूसरे धर्मखंडो मे पवित्रता का इतना मान नहीं है तो बाप भगवान भी वहाँ नहीं आते तो तुम्हारा धर्मखंड भारत खंड हैं। विनाश होगा तो सब धर्मखंड विनाश को पावेंगे क्योंकि इन धर्मखंडो के स्थापना के निमित्त विनाशी आत्माएं बनती है जिनके पार्ट का विनाश हो जाता है वो 84 जन्म पार्ट नहीं बजाती और भारत वासी पूरे 84 जन्म पार्ट बजाते हैं। असत्य का विनाश होता है। सत्य का विनाश नहीं होता। गॉड फादर को ट्रूथ फादर कहा जाता है सत्य को ही ज्ञान कहा जाता है तो बाप आकर सत्य धर्म की स्थापना करते हैं जिस धर्मखंड मे सतधर्म की स्थापना होती है वो भारत खंड अविनाशी खंड हैं।
-मु.ता.01.05.1967 Vcd527

साक्षात्कार से कोई मुक्ति जीवन मुक्ति नहीं मिल सकती

तुम्हारा 21 जन्म तक राज्य रहेगा दूसरा कोई भी राज्य नहीं होगा। आत्मा का भी समझाया हैं कि आत्मा कैसी बिंदी हैं कोई को बिंदी का साक्षात्कार हो जावे तो कोई समझेंगे नहीं। समझो किसीको कृष्ण का साक्षात्कार हुआ अल्पकाल के लिए खुशी हो जाती है उस साक्षात्कार से कोई मुक्ति जीवन मुक्ति नहीं मिल सकती। ये तो तुम्हारी एम ओब्जेक्ट हैं कि तुमको नर से प्रिंस अथवा नर से नारायण बनना है ये नर से नारायण बनने की पढ़ाई हैं उठते बैठते बाप को और चक्र को याद करो इसमें साक्षात्कार दीदार आदि की बात नहीं है जिनको ज्ञान दीदार की आश रहती है समझो उनकी बुद्धि मे ज्ञान नहीं बैठा है वो अल्पकाल की खुशी होती है और तुम्हारी बुद्धि मे ज्ञान बैठा है तो तुमको सदाकाल की खुशी मिलती है।
-मु.ता.01.05.1967 Vcd527

ऊंच पद कैसे पाएंगे ?

कोई सर्वीस समाचार होता है तो सुनाया जाता हैं। सर्वीस समाचार सुनने से बच्चों के अंदर उमंग उत्साह भरता है। नया ज्ञान हैं नयी सेवा हैं तो लोगों की बुद्धि मे जल्दी बैठता नहीं है अगर कोई की बुद्धि मे बैठता है तो कहते है सेवा हुई अपने ब्राह्मण धर्म वाले जो होंगे उनको तो बहुत खुशी होगी ये नयी नयी बातें सुनने से। ब्राह्मण धर्म का नहीं होगा दूसरे धर्म में कन्वर्ट होने वाला होगा तो उनको इतना खुशी नहीं होगी। बाप कोई ज्यादा तकलीफ नहीं देते हैं बाप को रहम दिल कहा जाता है बाप तो आते ही है बिचारी अहल्याएं कुब्जाएं आदि हैं पत्थर बुद्धि हैं उनको आकर उठाते हैं। बाप समझते हैं कि सारी दुनिया को सदगति मिलनी हैं ऐसा एक भी मनुष्य नहीं बचेगा इसको कम से कम एक जन्म की सदगति न मिले बाकी तुमको अनेक जन्मों की सदगति मिलती है। जो यहाँ पढ़ते हैं पहले पहले पढ़ते हैं जास्ती पढ़ते हैं वो पहले शांतिधाम मे जाके सुखधाम में आवेंगे क्योंकि उन्होंने ईश्वरीय पढ़ाई का कदर किया। पहले पढ़ाई पढ़ते हैं तो पहले नईदुनिया मे जावेंगे जास्ती पढ़ाई पढ़ते हैं तो जास्ती धनवान बनेंगे। पढ़ाई बुद्धि में बैठी होगी। पहचान बुद्धि मे बैठी होगी तो बाप को खूब याद करेंगे। बाप से जितना जास्ती लव बढ़ेगा प्यार बढ़ेगा तो ईश्वरीय सेवा में तन मन धन लगाते रहेंगे तो जरूर ऊंच पद पावेंगे।
-मु.ता.01.05.1967 Vcd527

जिनको पढ़ना होगा वो आपे ही आवेंगे उनको बार बार बुलाने करने की दरकार नहीं है।

तुम यहाँ आये ही पढ़ने के लिए जिनको पढ़ना होगा वो आपे ही आवेंगे उनको बार बार बुलाने करने की दरकार नहीं है। तुमको बस यही तात लगी रहे कि हम सतोप्रधान कैसे बने? हम सतोप्रधान बनेंगे तो हमारे संसर्ग संपर्क में आनेवाली जो भी आत्माएं होगी वो ऑटोमेटिक सतोप्रधान बनेगी बहुत बोलबोल करने की भी दरकार नहीं पड़ेगी उनको कहीं धक्के खिलाने की भी बात नहीं। तो ये तात लगी रहे कि हम पहले पहले विष्णु पुरी का मालिक कैसे जाके बने। दुनिया भर में ओर किसीको ये तात नहीं लगी हुई है। तुम बच्चों को ऐसी पढाई मिल रही है जो तात लगी हुई हैं।
-मु.ता.01.05.1967 Vcd527

बाप तो कहते हैं गली गली में स्वर्ग आश्रम खोलों

तुम समझते हो कि धीरे धीरे ब्राचींस ढेर कि ढेर बनती जावेगी। बाप तो कहते हैं गली गली में स्वर्ग आश्रम खोलों हर गली में स्वर्ग आश्रम बना हुआ हो। जब विनाश होगा करफ्यू लगेगा दूर दूर आने जाने नहीं देंगे हर गली में आश्रम होगा तो एक दरवाजे से निकले और दूसरे दरवाजे में घुस गए सबका क्लास कंटिन्यू बने रहेगा तुम्हारी पढ़ाई टूटेगी नहीं।
-मु.ता.01.05.1967 Vcd527

ब्रह्मा का चित्र भी नहीं रखना है क्यों ?

हम पुरुषार्थ करते हैं पुरानी दुनिया से मरने के लिए! और जीते जी मरते हैं। तुम बच्चे जानते हो कि हम शिवबाबा के बने हैं हम ओर कोई कि सुनने वाले नहीं है हमारे लिए एक शिवबाबा दूसरा न कोई! ऊंच ते ऊंच बाप जैसी गोद ओर कोई कि नहीं हो सकती तो ऐसे बात की गोद बच्चों को मिलनी चाहिए। शिवबाबा तो कहते हैं मैं तो निराकार हूँ निराकार तो गोद होती नहीं तो वो निराकार जिस तन में प्रवेश करता है मुकर्रर रूप से पार्ट बजाता हैं उस गोद के तुम बच्चे बनते हो। मैं निराकार किसीको गोद कैसे लूंगा! ये भी टेंपररी शरीर लिया है.. कौन सा? ब्रह्मा का भी टेंपररी शरीर लिया है आज हैं कल? कल नहीं रहेगा। तुम तो कहेंगे हम शिवबाबा की गोद में जाते हैं। क्या समझना हैं? ब्रह्मा की गोद में आये हो या शिवबाबा की गोद में आये हो? अगर समझते हैं ब्रह्मा की गोद में आये हैं तो ब्रह्मा का ही संग का रंग लगेगा। जो ब्रह्मा की गति होती है वो गोद लेने वाले कि भी गति बन पड़ेगी! ब्रह्मा का हार्ट फेल हुआ तो गोद लेने वालों को भी ब्रह्मा की गोद याद आवेगी उनका भी हार्ट फेल्योर हो जाता है इसलिए बोला ये ब्रह्मा का चित्र भी नहीं रखना है।
-मु.ता.01.05.1967 Vcd527

तुम्हारा हैं ये बेहद का भी संन्यास देह का भी संन्यास...

घर गृहस्थ में रहते हुए संन्यास चाहिए और तुम्हारा हैं ये बेहद का संन्यास देह का भी संन्यास! ये देह भी ईश्वरीय सेवा में इतनी स्वाहा करना है कि देह देह महसूस न हो ये भी मेहनत हैं सारा मदार योग पर हैं याद अच्छी होगी तीखी याद होगी तो भल शरीर कैसा भी हो आत्मा जो पावरफुल बनेगी तो पावर की स्टेज सारी सेवा कराती रहेगी।
-मु.ता.01.05.1967 Vcd527

अभी तुम जो ज्ञान पाते हो वो ज्ञान बाद में भूल जावेगा! ज्ञान क्यों भूल जावेगा?

 ज्ञान भूल जावेगा फिर याद क्या रहेगा? ज्ञान तो साधन है पतितों को पावन बनाने के लिए परमात्मा बाप का परिचय देने के लिए परमात्मा बाप जो पतित पावन हैं उसे याद करने के लिए। जब परमात्मा बाप से बुद्धि योग टिक जाता है तो फिर ज्ञान की दरकार नहीं प्रेक्टिस पक्की हो गई एक बाप दूसरा न कोई!
-मु.ता.01.05.1967 Vcd527

आत्मा की शक्ति

तो संस्कार आत्मा में भरे हुए हैं आत्मा कहेगी ये मेरा शरीर हैं क्योंकि आत्मा ही शरीर की मालिक है शरीर कोई आत्मा का मालिक नहीं है। परंतु अज्ञानता के वश शरीर की कर्मेन्द्रियाँ आत्मा को अपने तरीक़े से चलाती है क्योंकि आत्मा को स्वयं का ज्ञान नहीं है 63 जन्म की रग पड़ी हुई है कि हम शरीर हैं हम देह हैं तो अपन को देह समझने से विकृतियां पैदा होती रहती है। शरीर तो विनाशी हैं अपन को विनाशी शरीर समझने से आत्मा में भी विकृतियां आती हैं। आत्मा भूल गई कि अपने शरीर रूपी राज्य का राजा हूँ! तो इन्द्रियों ने आत्मा के उपर कन्ट्रोल कर लिया। इन्द्रियों के उपर मन ने कन्ट्रोल कर लिया। मन को सशक्त ग्यारहवीं इन्द्रिय कहा जाता है। अभी बाप ने समझाया हैं ये दस इन्द्रियाँ शरीर का अंग है इन इन्द्रियों को अभी मन अपने अनुकूल चला रहा है आत्मा भूलीं हुई है कि मैं मनबुद्धि संस्कार सहित आत्मा हूँ!सबसे पावरफुल आत्मा की शक्ति है बुध्दि। मनुष्य जब जन्म लेता है तो हर मनुष्य को अपने पूर्व जन्मों के संस्कार के अनुसार बुद्धि की दात मिलती है। ये बुद्धि की शक्ति का उपयोग करना चाहिए परन्तु मन और बुद्धि और आत्मा इनसे कैसे कनेक्टेड हैं कैसे मनबुद्धि आत्मा की कार्यकर्ता हैं ये कोई की बुद्धि मे रहता ही नहीं! बाप आकर के समझाते हैं कि मन बुद्धि और संस्कार शक्ति है। ये आत्मा की तीन शक्तियां हैं ये तीन शक्तियों के द्वारा आत्मा हर कार्य करती है बाप आते हैं आत्मा को ऐसी पढ़ाई पढ़ाते हैं कि पतित आत्मा पावन नारायण बन जाए तो आत्मा की बुद्धि में बैठता है कि मैं ही बोलती हूँ! मैं ही सब कार्य करती हूँ ये शरीर के ओरगन्स के द्वारा।आत्मा में हर प्रकार के संस्कार होते हैं।
-मु.ता.01.05.1967 Vcd527

किसको याद करना है?

जिसको याद करेंगे वैसी ही गति बन जावेगी अंत मते सो गते! तो याद बहुत पक्की होनी चाहिए इसलिए कहा जाता है कि न निराकार ज्योतिबिंदु को याद करना है न साकार को याद करना है ना आकारी को याद करना है! फिर किसको याद करना है? उस साकार जो ऊंच ते ऊंच पार्टधारी हैं उसमें आये हुए निराकार बाप को याद करना है जिसकी ऊंच थे ऊंच मत हैं। ऊंच ते ऊंच को याद करेंगे तो उसके प्रति हमारा लव बढ़ता जावेगा। लव इतना बढ़ना चाहिए कि लवलीन अवस्था हो जावे। आत्मा परमात्मा बाप के लव मे लवलीन हो जावे! शास्त्रों में लिख दिया है आत्मा परमात्मा में लीन हो गई! ये कहां कि यादगार हैं? संगम युग में ही हम बच्चों का संपूर्ण स्टेज का यादगार हैं।
-मु.ता.01.05.1967 Vcd527

बाप कहते हैं कि दुखों के पहाड़ गिरेंगे

84 जन्म लेने वाली आत्मा जो पक्का आत्मा का पार्ट बजाने वाली है वो परमात्मा बाप की याद में ऐसी लवलीन हो जाती है कि उन्हें ये पता भी नहीं लगता कि घोर दुखों की दुनिया आनेवाली हैं वो कब खलास हो गई! नहीं तो दुख के समय में टाइम लंबा हो जाता है या शोर्ट हो जाता है? लंबा हो जाता है। और सुख के समय मे टाइम छोटा होता है। गीत भी बनाए हुए हैं समय तूं जल्दी जल्दी बीत सुख में तूं पलभर नहीं ठहरे लाख बिताएं तूझ पर पहरे फिर भी खिसक जाता है और दुख में तू बिल्कुल रूक जाए कैसी तेरी रीत! समय तू जल्दी जल्दी बीत! तो समय का ये वंडरफुल खेल है। समय को काल कहा जाता है वो काल तो 84 जन्म खाता है और अभी तो कालों का काल महाकाल आया हुआ है दुखों का समय अभी तो आनेवाला हैं। बाप कहते हैं कि दुखों के पहाड़ गिरेंगे! एक पत्थर उपर से निचे गिर जाता है तो सर के उपर गिरे तो क्या हाल होता है और यहाँ तो कहते दुखों के पहाड़ गिरेंगे!
-मु.ता.01.05.1967 Vcd527

गंगाजल का कितना मान रखते हैं और उस गंगाजल मे कितना गंद पड़ता रहता है।

 दुनिया वालों के लिए जड़ गंगाजल की बात है और ब्राह्मणों की दुनिया के लिए चैतन्य गंगाजल की बात है चैतन्य गंगा जब चैतन्य ज्ञान सागर के साथ हैं तो पतित पावनी हैं क्योंकि पतित पावन बाप की सहयोगी हैं और जब गंगा नदी का कनेक्शन सागर से टूट जाता है तो उस गंगा में कीचड़ा पड़ता है। पानी में गंद पड़ता रहता है। तुम बच्चों को अभी ये खुशी रहनी चाहिए कि हम ज्ञान सागर के पास जाते हैं कोई कीचड़े वाली नदी के पास नहीं जाते हैं। कितना फर्क पड़ जाता है।
-मु.ता.01.05.1967 Vcd527

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